समर्थ इतिहास-४

 

सम्राट समुद्रगुप्त का जन्म जिस गुप्त वंश में हुआ, वह ‘गुप्त’ घराना वैदिक धर्म का अनुयायी एवं विष्णुभक्त था| समुद्रगुप्त स्वयं भी महाविष्णु के परमभक्त थे| नियमित रूप से गायत्रीमन्त्र पठण, विष्णुसहस्रनाम और पुरुषसूक्त का पाठ करने का उनका आजीवन व्रत था| समुद्रगुप्त और दत्तदेवी ने अपने साम्राज्य में जगह जगह महाविष्णु के विशाल मन्दिरों का निर्माण किया और वैष्णव धर्म का ज़ोरदार प्रचार एवं प्रसार किया| भक्तिप्रधान वैष्णवधर्म का आचरण, सम्राट समुद्रगुप्त के कारण समाजमानस का अविभाज्य घटक बन गया| समुद्रगुप्त द्वारा निर्मित सभी मन्दिरों में उन्होंने उस समय के अनुसार सभी प्रचलित विद्याओं के शिक्षाकेन्द्र शुरू किये| इन मंदिरों के ‘विमान’ नाम के विभाग में तथा ‘कुंडल’ नाम के विभाग में छात्रों का अध्ययन चलता रहता था| ‘विमान’ विभाग में व्यावहारिक विद्याओं का (उस समय के अनुसार विज्ञान) का प्रशिक्षण दिया जाता था; वहीं, ‘कुंडल’ विभाग में धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती थी| इन मन्दिरों के प्रांगण में ही छात्रों के रहने की व्यवस्था होती थी| प्रत्येक पाठशाला के प्रमुख आचार्य की ‘कुंडलाचार्य’ यह उपाधि (डिग्री) होती थी| साम्राज्य के सभी ‘कुंडलाचार्यों’ की त्रैवार्षिक सभा नियमित रूप से राजधानी में समुद्रगुप्त की उपस्थिति में ही होती थी| यहॉं पर शिक्षाक्षेत्र की समस्याओं के संदर्भ में सोच-विचार किया जाता था और निर्णय लिये जाते थे|

 

 

समुद्रगुप्त ने इन मन्दिरों की पाठशालाओं के साथ साथ मन्दिर और गॉंव के भी बाहर रहने वाले विशेष शिक्षासंकुलों का निर्माण किया था| इन शिक्षाकेन्द्रों को ‘व्यासमंदिरम्’ इस नाम से संबोधित किया जाता था| इन ‘व्यासमंदिरों’ में आयुर्वेद, चाणक्य का अर्थशास्त्र, रसायनशास्त्र, खगोलशास्त्र (अन्तरिक्ष विज्ञान), ज्योतिषशास्त्र इन शास्त्रों का अध्ययन किया जाता था| साथ ही यहॉं पर अनुसन्धान-रत, निरन्तर, प्रदीर्घ एवं गहराई से अध्ययन करते रहने वाले अध्यापकों को विशेष सहूलियतें एवं सहायता भी दी जाती थी| इस कारण से इस दौर में ही सारे शास्त्रों का भारत में उत्कर्ष हुआ| अनेक गणित-विशेषज्ञ, निपुण आयुर्वेदाचार्य एवं खगोल अध्ययनकर्ता इसी दौर में भारत में उत्पन्न हुए और इस दौर में बाकी की दुनिया को जिनका अल्पमात्र परिचय तक नहीं था, उन शास्त्रों में भारतीय आचार्यों ने बहुत ही प्रचण्ड प्रगति की थी| अंकगणित, बीजगणित और भूमिति, साथ ही आयुर्वेद एवं खगोलशास्त्र इन सभी क्षेत्रों में गहराई से अन्वेषण शुरू हो चुका था और धर्म उस अन्वेषण के आड़े नहीं आ रहा था यह बात सबसे महत्त्वपूर्ण है|

सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष

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