समर्थ इतिहास-१९
अगस्त्य मुनि का नाम लेते ही कथा-कीर्तनों में से एक ही कथा मुख्य रूप से बतायी जाती है और भारत का बच्चा बच्चा तक इस कथा को जानता है। समुद्र का पानी खारा क्यों है? इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यही कथा सर्वत्र बतायी जाती है। अगस्त्य मुनि ने एक आचमन में पृथ्वी पर रहनेवाले पूरे समुद्र को पी लिया और बाद में सृष्टि का संतुलन सँभालने के लिए उस पानी को पुन: बाहर उत्सर्जित किया (बाहर निकाला)।
परन्तु दक्षिण भारत के भक्तों को यह विश्वास है कि अगस्त्य मुनि ने समुद्र लाँघकर वरहनद्वीप (बोर्नियो), सुमात्रा, सयाम, इंडोनेशिया, यवद्वीप (जावा) इन सागर के पार रहनेवाले विभिन्न देशों में प्रवास कर वहाँ भी अत्यधिक सम्मान का स्थान प्राप्त किया और उस प्रदेश में भारतीय संस्कृति का विकास किया। परन्तु पद्मपुराण, महाभारत की सहायता से अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि अगस्त्य ऋषि के काल में कालदंष्ट्र, विरोचन, तारक, परावसु, संहाद, कमलाक्ष और पुलोमा ये सात राक्षसकुल के राजा सप्तसमुद्रों के स्वामी थे। इनका एक-एक समुद्र पर अधिपत्य (अधिकार) था। ये राक्षस राजा और उनकी टोलियाँ समुद्र में निरंतर बड़ी बड़ी नौकाओं में से घूमती रहती थीं और प्रवासी नौकाओं पर हमले करती थीं। इस कारण भारत का सागर के रास्ते से होनेवाला प्रवास लगभग बंद हो रहा था।
सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष
Click here to read this editorial in Hindi - समर्थ इतिहास- 19