समर्थ इतिहास-१७

 

महर्षि अगस्त्य चिकित्साशास्त्र में भी अत्यंत निपुण थे और अनुसंधान करने की उनकी प्रवृत्ति के कारण अनेक अनुसंधान कर वे चिकित्साशास्त्र को प्रगतिपथ पर ले गये। ऋग्वेद में इसका पहला संदर्भ प्राप्त होता है (ऋग्वेद १/११८/८)। ‘खेल` नामक सम्राट ने इनके चरणों में अपनी निष्ठा अर्पण की और इन्हें अपने धर्मगुरु का स्थान दिया। आगे चलकर एक बार इस खेल राजा की पटरानी विश्पला अपने पति के साथ असुर राजाओं से लड़ रही थीं, तब असुरों ने मायावी विद्या का प्रयोग कर उनका अपहरण किया और वहाँ से विश्पला ने बड़ी बहादूरी के साथ स्वयं को छुड़ाया; परन्तु उस संघर्ष में असुरों ने विश्पला के दाहिने पैर को जंघा प्रदेश से काट दिया।

 

 

उसी स्थिति में रानी विश्पला लगाम और खोगीर न रहनेवाले एक घोडे पर बैठकर अपने शिविर में लौट आयीं। उस समय वे आधी बेहोशी की अवस्था में थीं। अगस्त्य मुनि उसका इलाज करके उसे होश में ले आये। परन्तु इस अपाहिज अवस्था के कारण रानी विश्पला अत्यंत निराशा की अवस्था में जाने लगीं। इन राजनीतिज्ञ, पराक्रमी और धर्मपरायण रानी का दुख अगस्त्य मुनि से सहा नहीं जा रहा था। अगस्त्य ऋषि ने अश्विनीकुमारों से प्रार्थना कर अनुसंधान करना आरंभ किया और रानी विश्पला को लोहे का पैर जोड़ कर दिया। कृत्रिम पैर बनाकर जोड़ने की, लिखित इतिहास की यह पहली ही घटना दिखायी देती है। इतने हज़ारों वर्ष पहले भारत के एक चिकित्सावैज्ञानिक का यह विशेष कार्य हम भारतीयों के लिए अत्यंत गौरव एवं सम्मान का स्थान है। इन्हीं रानी विश्पला ने अगस्त्य ऋषि को विंध्य पर्वत पादाक्रांत करने के लिए सभी प्रकार की सहायता की।

सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष

Click here to read this editorial in Hindi -  समर्थ इतिहास- 17