॥ हरि ॐ ॥
ये 'षं' बीज मर्यादा बीज है। ये 'मुलाधार चक्र' के बीज है।
"जीवन में हर मनुष्य को संघर्ष करना पडता ही है।स्त्री हो या पुरुष; किटक हो या कोई प्राणी!"
हम 'संघर्ष' को कैसे स्विकार करते है, इस पर सब निर्भर होता है। हम जब जमीन पर चलते है, तो इसका मतलब है, हम गुरुत्वाकर्षण शक्ती के, विरुध्द खडे है और चलते है! अर्थात हमारा, गुरुत्वाकर्षण की ताकत से संघर्ष होता है।
संघर्ष और युध्द में फर्क होता है। जो सत्य के खिलाफ होता है, वह 'युध्द' है! युध्द से हानी होती है! और "मेरा भी भला हो और सामनेवाले का भी भला हो! यह होता है, 'संघर्ष'! संघर्ष, विकास के लिये होना चाहिये।
सबसे बडा संघर्ष या युध्द तो हमारे मन में, खुद का ही खुद के साथ होता है।
हमारे मन में जो कुतर्क होते है, उन्हीं कुतर्कों के कारण ही संघर्ष होता है।
और ये 'षं' बीज मर्यादा लाता है, इन्हीं कुतर्कों पर! इन कुतर्कों की वजह से ही हम अपने जीवन के संघर्षों को युध्द में परिवर्तित करते है। यहीं नहीं होना चाहिये!
सबसे बडा डर हमारे मन में क्या होता है? Separation का! माँ से अलग होने का डर; भगवान से अलग होने का डर!
और इसी लिये ही हमारे मुलाधार चक्र में सारी शक्तियाँ होती है। मुलाधार के 'स्वामी' गणपती है। दाँत, उनका शस्त्र है। इसका मतलब क्या है?
गणपती एकदंत है। हाँथी के दाँत दिखानेवाले है, चबाने वाले नहीं! अपना एक दाँत उखाडकर अपने हाथ में रखा हुआ है। वो उनका 'शस्त्र' है।
उनके गायत्री मंत्र में दाँत का दो बार उच्चारण है।
॥ ॐ एकदंताय विद्महे।
वक्रतुंडाय धिमही।
तन्नो दंती प्रचोदयात ॥
दाँत का उपयोग उच्चार के लिये होता है। त, थ, द, ध, न ये दंतव्य शब्द है! जो बहोत महत्वपुर्ण है। इनके उच्चारण के लिये दाँत आवश्यक है। वैसे ही प, फ, ब, भ, म इन शब्दों को 'ओष्ठव' कहते है। इन्हे बोलते समय होंठों का इस्तेमाल होता है! अगर दाँत ना हो, तब भी त, थ, द, ध, न का उच्चार हो सकता है! लेकिन अगर जुबान ना हो, तो कोई भी उच्चार नहीं हो सकते।
मुलाधार चक्र के स्वामी गणपती, हमारी बुध्दी, स्थिर रखनेवाली, बुध्दी को प्रकाशित करनेवाली देवता है। गणपती के हाथ में दंत है! याने 'वो' हमें बता रहे है, कि "हर एक शब्द, जो हम उच्चारते है, वो 'दंतव्य' जैसे होने चाहिये! Clarity (स्पष्टता) देनेवाला दंत! हमारे खाने के दाँत और दिखाने के दाँत भी एक ही होने चाहिये! हमारे मन में जब स्पष्टता होगी, तभी उच्चार में भी होगी!
गलत बोलकर हम जितना नुकसान करते है, हमारा उतना नुकसान सौ शत्रू भी नहीं करते! और इस मुलाधार चक्र के स्वामी गणपती; गलत शब्द मुँह से निकलने ही नहीं देंगे।
ज्यादा कोल्ड्रिंक्स मत पियो! इनमें शामिल फॉस्फोरिक अॅसिड इतना खतरनाक है, कि अगर हमारा एक दाँत इनमें कुछ देर तक डुबोये रखोगे, तो कुछ देर बाद वह दाँत दिखेगा ही नहीं! गणपती श्रध्दावानों के विचारों को बाहर आने से पहले ही रोक देते है।
जब हम भक्ती करते है, तो 'वो' हमें प्रॉमिस दे चुका है! 'वो' अपना वचन कभी तोडता नहीं!
॥ माझा जो जाहला काया वाचा मनी ॥
॥ भिऊ नकोस, मी तुझ्या पाठिशी आहे ॥
॥ योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
हम भगवान को वचन देते है; और तोडते रहते है।
गरज सरो । वैद्य मरो ।
इसी लिये हमेशा युध्द चलता है। भगवान को वचन देकर निभाना, विकास का मार्ग है और तोडना, विनाश का मार्ग! अपने जीवन में भगवान के साथ संघर्ष में रहो, युध्द में नहीं! हमारे भगवान के साथ हमारा चल रहा युध्द हमें खत्म करना है। इसलिये हमें उस एकदंत की शरण में जाना चाहिए! और इसके लिये ये 'लं' बीज बहुत महत्वपुर्ण है। इस विश्व में जो भी प्रगत है, उन सबका बीज, ये 'लं' बीज है।
अर्थिंग (Earthing) क्या है? जब हम जमीन पर नंगे पाँव चलते है, तब अर्थिंग होती है। मिट्टी पर चलना, हमारे शरीर के लिये फायदेमंद है। वो ही फायदा हमें 'ॐ लं' बोलने से मिलता है! और अगर चलते समय ॐ लं कहते हो, तो और भी फायदा होगा। हफ्ते में सिर्फ आधा घंटा चलें और चलते वक्त 'ॐ लं' बोलोगे तो और फायदा होगा।
हमारे विघ्नों का नाश करनेवाला है गणपती! उसने वादा किया है, माँ से! "जब भी कोई भी भक्त मुझे सच्चे दिल से बुलायेगा, तो मैं जरुर जाऊँगा" और वो अपना वचन कभी नहीं तोडता! हम भी अपना वचन नहीं तोडेंगे!
अंत में सभी भक्तो ने
॥ ॐ एकदंताय विद्महे।
वक्रतुंडाय धिमही।
तन्नो दंती प्रचोदयात ॥
इस मंत्र का बापू के साथ पाँच बार जाप किया।
॥ हरि ॐ ॥