॥ हरि ॐ ॥
चालला होता प्रपंच हातातून। तो सांभाळीसी स्वत: येऊन।
वेगी केलेसी मज सावधान। तुझे नाम धरावया। जैसे तुझे पाय धरिले।
सर्व अपाय दूर झाले। हळूहळू सर्व परतले।
सुख-संतोष माझे । आता मागितो एक वचन।
न होऊ द्यावे तुझे विस्मरणजन्मोजन्मी। तू माय बाप अनिरुद्ध नाम सदा मुखी।
(मेरे हाथों से घर संसार निकला जा रहा था तूने आकर संभाला। समय पर मुझे सावधान किया, नाम जपने के लिए। तेरे चरणों में आते ही मेरा सुख-संतोष सबकुछ लौट आया। अब एक वचन मांगता हूं कि, जन्म, जन्मांतर में, हे अनिरुद्ध बापू, मैं तुझे कभी न भूलूं और तेरा ही नाम सदा जपता रहूं।)
सन 1979 में मैं दसवीं कक्षा में पास हुआ। वहीं से नए जीवन की शुरुआत हुई। दसवीं पास करने के बाद बारहवीं तक सोलापुर में मामाजी के पास रहकर शिक्षा पाई। मामाजी ने सोलापुर में एक ऐग्रो सर्व्हिस सेंटर में नौकरी लगवाई। बाद में मैंने वैराग में ‘श्रीस्वामी समर्थ कृषि केंद्र’ नाम से खाद-बीजों की दुकान खोली।
शुरु में धंधा अच्छा चला। सन 1997 से 2001 तक वैराग से जिला परिषद सदस्य के रूप में मेरा चयन हुआ। इस दौर में मैंने वैराग में जमीन खरीदी और वहां तीन मंजिला इमारत बांधी। तब से आज तक मेरी श्रद्धा स्वामी समर्थ महाराज पर है।
तत्पश्चात प्रारब्ध के भोग कहिए या किसी बुरी नजर का असर कहिए, मेरे बुरे दिन आ गए और मेरी सारी जमा पूंजी खत्म हो गई। दुकान बंद हो गई। व्यापारियोंं का बहुत बकाया था इसलिए मुझ पर मुकदमे़ं चलने लगे और मुझे वैराग गांव छोडना पडा। मेरा सारा संसार बिखर गया। गांव में पिताजी की जमीन बेचकर सारा कर्जा उतार दिया।
मैं जब ऐसे भीषण हालात से गुजर रहा था तब एक बार मुम्बई से मेरा चचेरा भाई और उसका परिवार किसी कार्य हेतु वडाली आए। मेरी खस्ता स्थिति देखकर उन्होंने मुझे परमपूज्य श्रीअनिरुद्ध बापूजी की जानकारी दी और मुझे दर्शन के लिए मुम्बई बुलाया। मेरे मन में कशमकश, खींचातानी होने लगी कि, क्या मैं बापूजी को भगवान मानूं? इतने सालों से मैं श्रीस्वामी समर्थजी की सेवा और भक्ति कर रहा हूं फिर भी संकटों से झूझना पड रहा है; तो अब बापूजी इसका निवारण कैसे करेंगे? ऐसे संदेहों की वजह से बापूभक्ति पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था।
पर अंत में वह दिन आ ही गया। मुम्बई से मेरे रिश्तेदार का फोन आया और मैंने सोचा कि, ‘एक बार जाकर देखें तो सही।’ वह गुरुवार का ही दिन था। इसलिए शाम को प्रवचनस्थल पर श्रीअनिरुद्ध बापूजी के प्रवचन का लाभ मिला। न जाने क्यों बापूजी को देखते ही मेरी आंखों से आंसू बहने लगे और खास बात तो यह है कि अचानक मन को शांति महसूस होने लगी। मन को विश्वास होने लगा कि अब यहीं से मेरे प्रारब्धों के भोग धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे और नया जीवन मिलेगा।
मन में अनोखा आनंद लिए मैं रात को ही लौटा और पुणे जाने के लिए रवाना हुआ। रात को 1 बजे मैं पुणे स्टेशन पहुंचा। इतनी रात गए पुणे में जाऊं कहां? रिश्तेदार तो थे मगर वे इतनी दूर रहते थे कि रिक्षावाले को 200 से 300 रुपए देने पडते और मेरे पास इतने रुपए नहीं थे। रात का समय होने की वजह से पुलिसवाले स्टेशन पर सोने नहीं दे रहे थे।
मुम्बई में दिनभर घूमकर थक गया था। अंत में मन पक्का करके, बापूजी का फोटो व उपासना पुस्तिका छाती पर रखके स्टेशन पर ही सो गया। सुबह छे बजे आंख खुली तो वही पुलीसवाला मेरे पास आया। उसे आते हुए देखा तो मैं डर गया कि अब यह मुझे लॉकअप में बंद कर देगा। मगर इसने मुझे तकरीबन पांच घंटों तक यहां सोने कैसे दिया? यह विचार भी मन में उठा था। वह पास आया तो जल्दबाजी में उठते हुए मेरे पास जो बापूजी का फोटो था वह नीचे गिर गया।
बापूजी का फोटो देखकर उस पुलीसवाले ने अचानक पूछा, ‘‘यह कौन है, मुझे बताओ।’’ मुझे बापूजी के बारे में जितना पता वह मैंने उसे विस्तार से बताया। तब वह पुलिसवाला बोला, ‘‘यह फोटोवाला आदमी रातभर आपके पास बैठा हुआ था। वह मुझे आपके पास आने ही नहीं दे रहा था। इस के हाथ में एक चेन थी और वो दूर से ही इशारा कर रहा था कि नजदीक मत आना।’’
मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था। सद्गुरु बापू रातभर मेरे पास बैठे हुए थे ताकि मैं अच्छी तरह से सो सकूं! मगर वह पुलिसवाला बार बार यही बात कह रहा। मेरा गला रुंध गया। बापूजी ने यह मुझे पहला अनुभव दिया था। उस दिन से मैंने निश्चय कर लिया कि जब तक जान में जान है तब तक मेरे जीवन में परमपूज्य बापू, परमपूज्य नंदाई, परमपूज्य सुचितदादा के अलावा कोई नहीं होगा।
उस दिन से मैं बापूजी की भक्ति करने लगा हूं और मेरा हर दिन खुशी का और संकटों पर मात करने वाला होने लगा। धीरे धीरे बापूजी पर श्रद्धा बढती गई और मेरे साथ मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य को उपासना में शामिल कर लिया। इससे हमारे परिवार को एक अनोखी खुशी, भगवतकृपा महसूस हो रही है।
इस के बाद बापूजी की कृपा से मुझे वडाली, तालुका शहादा में नयी खाद-बीजों की दुकान शुरु करने का ऑफर मिला। दुकान शुरु करने से पहले मैं बापूजी के दर्शन हेतु मुम्बई गया। प्रवचन शुरु होने से पहले मैंने मन ही मन बापूजी से इस संबंध में सवाल पूछा था, जिसका उत्तर मुझे प्रवचन में मिला। बापूजी प्रवचन के दौरान एक उदाहरण देते हुए बोले, ‘‘आपके पास खेत है, बैलों की जोडी है, हल भी है। आप बैलों को हल से बांधकर केवल डोर पकड लो...बाकी कार्य करने के लिए मैं खडा हूं।’’ यह सुनकर मेरे दिमाग में बिजली चमकी कि ‘यह मेरे लिए ही कहा गया है।’ अर्थात दुकान के लिए जगह थी, टेबल-कुर्सियां, लायसन्स भी थे। केवल जरुरत थी पूंजी लगाने की। बापूजी ने यह काम भी कर दिया। उन्होंने ही चक्कर चलाया और उनकी कृपा से मेरे एक मित्र ने केवल जबान पर बीस हजार रुपए दे दिए। इस से दुकान खोला। बापूजी की कृपा से आज कारोबार अच्छा चल रहा है। सचमुच मेरे हाथों से जाता हुआ घर संसार स्वयं बापूजी ने बचाया और मुझे ‘सावधान’ किया; भक्तिमार्ग की पहचान कराई। इस के बाद मेरे अच्छे दिन भी लौट आए।
बापूजी की शरण में जाने के बाद कदम कदम पर ऐसे अनुभव होते रहे हैं। ऐसा ही एक और अनुभव बताता हूं। सन 2009 के जनवरी मास में किसी कार्य हेतु मैं मोटरसायकल पर शिरपुर गया था। लौटते समय वडाली के पास ऐक्सीडन्ट हो गया। एक लडकी अचानक सामने आ गई और मोटरसायकल के आगेवाले टायर में फंस गई। मैं मोटरसायकल के साथ दूर तक घिसता गया। मैं तो समझा था कि जब मेरा यह हाल हुआ है तो लडकी तो मर ही गई होगी और इस सोच से मैं भयभीत हो गया।
मगर यहां पर भी बापूजी ने मुझे बचा लिया। अपघात देखकर इकठ्ठा हुए स्थानिक लोगों ने उस लडकी को धीरे धीरे उठाकर खडा कर दिया। उसे कुछ भी नहीं लगा था। उन्होंने मुझे भी उठाया। मुझे छोटीसी चोट आई थी। मगर उस लडकी को सहीसलामत देखकर मेरी जान में जान आई। खास बात तो यह है कि मोटरसायकल को भी कोई नुकसान नहीं हुआ था। वहां के लोगों को भी अचरज हो रहा था कि इतना बडा अपघात होने के बावजूद कुछ भी नुकसान नहीं हुआ था। मगर मैं जानता था कि यह मेरे बापूजी की कृपा का नतीजा है।
ऐसे अनुभवों की वजह से बापूजी पर मेरा विश्वास बढता गया। बापूजी द्वारा प्रत्येक श्रद्धावान को ‘रामनाम बही’ अपनेे प्रारब्ध सेे लडने के लिए दिया हुआ अमोघ अस्त्र मेरे भी हाथों में आई। मैं रामनाम की बही लिखने लगा। इस रामनाम बही के माध्यम से एक बार बापूजी ने मुझे बडे संकट से बचा लिया।
हुआ यूं कि सन 2009 के अप्रैल महीने में मेरे दुकान का थोडासा काम चल रहा था। 30 फीट लंबी और 12 फीट ऊंची दीवार बनाई जा रही थी और इस दीवार के पीछे खुली जगह थी जहां पर मट्टी भरने का काम चल रहा था। सात-आठ मजदूर काम कर रहे थे। दोपहर के 12 बजे के आसपास मैं रामनाम की बही लिख रहा था। बही लिखते हुए अचानक क्या हुआ मैं नहीं जानता, मगर मैं काम देखने के लिए उठा...और क्या देखता हूं, जो दीवार बन रही थी वह गिरने की स्थिति में थी। मजदूरों को पता ही नहीं था, वे अपने काम में मग्न थे। मैंने चिल्लाकर कहा, ‘सब लोग हट जाओ, दीवार गिर रही है।’ सब लोग वहां से हट गए और एक मिनट में ही दीवार गिर पडी।
यह देखकर मेरे तो होश उड गए। बापूजी ने मुझे समय पर जगाकर कई लोगों की जान बचाई। एक मिनट का भी विलम्ब हुआ होता तो मजदूर अपनी जान गंवा बैठते। रामनाम बही लिखते हुए अचानक वहां पर काम देखने जाने की बुद्धी देकर बापूजी ने ही मुझे बडे संकट से बचाया था।
अब हम हर साल बापूजी का पादुकापूजन, सच्चिदानंद महोत्सव, श्रीवर्धमान व्रताधिराज नित्यनियम से करते हैं। बापू हमें इसके द्वारा ही ताकत प्रदान करते हैं। मैं अपने भगवान से.....श्रीअनिरुद्ध बापूजी से यही प्रार्थना करता हूं कि, तेरी कृपा से दिखे हुए तेरे चरण अब कभी भी हम से नजरों से ओझल न हों। जीवन की अंतिम सांस तक केवल तेरा ही ध्यान रहे।
॥ हरि ॐ ॥