जीवन मे जब सभी घटनायें अपने मन मुताबिक होती रहती हैं, तो परमेश्वर की ऐसी ही कृपादृष्टी भविष्य में भी बनी रहें अत: सभी लोक भक्ती तो करते रहते हैं परन्तु उसमें आर्तता नहीं होती| जब हम प्रारब्धवश किसी परिस्थिती के फेरे में फँस जाते हैं तभी हम आर्ततापूर्वक भगवान की गुहार लगाते है, तात्पर्य यह है कि संकटों के समय उसमें आर्तता भी आ जाती हैं| संकट दूर होते ही हम निश्चित रूप से उस परमात्मा को ‘थैंक्स’ कहते हैं| उसका आभार मानते है| परन्तु संकट के दूर न होने और अपने उद्ध्वस्त होने की नौबत आने पर भी, परमात्मा के प्रति कृतज्ञता बरकरार रखते हुये उसकी भक्ति व सेवा में अखंडता कायम रखने वाले भक्त यद्यपि हम-आप जैसे सामान्य भक्त प्रतीत होते है परन्तु वास्तव में वे असामान्य ही होते हैं|
- प्रकाश नाईक