उस दिन कोर्ट का काम-काज समाप्त होने के बाद शाम को लगभग पांच-साढे पांच मैं घर पर आयी और अंदर प्रवेश करने के पहले ही मेरी नजर बरामदे में लगे मीटर बॉक्स पर पड़ी | वहॉं पर कुछ हलचल दिखी, अतः मैं उसे करीब से जाकर देखूँ इसके पहले ही सर-सर की आवाज करता हुआ एक प्राणी कौले के छप्पर में घुस कर अदृश्य हो गया | मुझे सिर्फ उसकी पूँछ दिखायी दी | मैं काफी ड़र गयी | घर में घुसने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी | परंतु जाना तो पड़ना ही था | अब क्या करूँ ? अंततः बापूजी को मनःपूर्वक गुहार लगायी | वैसे भी दूसरा कौन हमार रक्षक है ? है ना ?
- सुनिता येरम