सन २००२ में मेरे घर पर मेरा एक बापूभक्त रिश्र्तेदार आया और मुझसे कहने लगा कि मुझे जुईनगर स्थित ‘हरि ॐ’ नामक इमारत बता दो| यद्यपि मैं उस समय बापूजी के सत्संग में नहीं था, फिर भी मुझे जुईनगर की उस इमारत के बारे में कुछ कुछ पता था| अतः मैं, मेरी पत्नी और वे गृहस्थ मिलकर तीनों उस इमारत की ओर चल पड़े| उस इमारत को दिखाने के बहाने हमारे पैर भी उस गुरुकुल में पड़े और उसी दिन से मुझे बापूजी के प्रति जिज्ञासा होने लगी|
- एस. बी. खांबेकर