महाराष्ट्र सरकार एवं एमटीडीसी द्वारा आयोजित कोल्हापुर के रंकाला महोत्सव में मुझे १५ फरवरी २००७ को स्टेज शो करना था| १४ फरवरी को तकरीबन सुबह १० बजे मैं और मेरी सहेली ड्राईवर के साथ मेरी इनोवा कार से कोल्हापुर के लिए रवाना हुए| रास्ते में दोपहर के लगभग १२.३० बजे हमने पुणे में रुककर चाय-नाश्ता किया| इसके बाद यात्रा के दौरान मुझे और मेरी सहेली को पिछली सीट पर गहरी नींद लग गई| वैसे तो हमेशा मैं ड्राईवर के बगल वाली सीट पर ही बैठती हूं, पर चूंकि इनोवा की पिछली सीट भी गिराकर अच्छी तरह से लेटा जा सकता है, अत: हम दोनों सहेलियां पीछे ही बैठ गईं| जब मेरी नींद खुली तब हमारी कार पुणे-सातारा एक्सप्रेस-वे पर १२० कि.मी. की रफ्तार से दौड रही थी और अचानक......मैंने क्या देखा? हमारे ड्राईवर को झपकी लगी है और सामने से एक एस.टी. बस तेज रफ्तार से आ रही है| मैंने तुरन्त ड्राईवर को सावधान किया| उसने जोर से ब्रेक लगाया तो हमारी कार थोडीसी बाईं ओर मुड गई और एस.टी. बस से आमने-सामने टकराने की बजाय उसके पिछले हिस्से से जा टकराई| वह टक्कर इतनी जोरदार थी कि हमारी कार के अंजरपंजर ढीले हो गए| इंजिन तो पूरी तरह से नाकाम हो गया था और आगे के दोनों पहिए टूट गए थे| आगे की कांच भी चकनाचूर हो गई थी और इंजिन में से बाफ और धुआं निकल रहा था| एस.टी. बस की बाईं तरफ का भी ऐसा ही बुरा हाल था, पर अचरज की बात तो यह है कि हम तीनों को और बस के मुसाफिरों में से किसी को भी खरोंच तक नहीं आई थी|
- फाल्गुनी पाठक