जब मैं अस्पताल में थी तब कई परिचित (बापूभक्त) मुझसे मिलने आते थे| मेरे परिवार वालोंसे भी अधिक प्रेम से मेरा हालचाल पूछते थे| मानो प.पू. बापूजी मुझे मन:सामर्थ्य ही भेज रहे थे | सद्गुरु बापूजी द्वारा भेजे हुए इस आधार की वजह से मुझे यह महसूस ही नहीं हो रहा था कि मैं अस्पताल में हूं| इस दौरान नंदाई की चिदानंदा उपासना करने की इच्छा अपनेआप निर्माण हो रही थी। इसिलिए अस्प्ताल में मेरा समय जराभी नष्ट नहीं हुआ।
जागो तुझिये पायी इमान | इतुकेंचि दान देई मज ॥
- अक्षता आचरेकर