॥ हरि ॐ ॥
सन 2004-2005 की बात है । तब मैं पुणे में नौकरी कर रही थी । तब हम पारिवारिक कठिनाईयों के दौर से गुजर रहे थे । बहुत परेशान थे । मेरे पति को कोई पक्की नौकरी नहीं लग पा रही थी । 7-8 महीने कोई नौकरी करने के बाद 5-6 महीने घर पर । इस तरह का दुष्टचक्र चल रहा था । उनका आत्मविश्वास दिन ब दिन कम होता जा रहा था । वे फूट फूट कर रोते थे । मेरी ढाई तीन हजार की नौकरी चल रही थी । ऐसा ही कुछ साल से चल रहा था ।
मेरी जेठानी /बहन हाल ही में बापू परिवार में शामिल हुई थी । वह हर गुरुवार को श्रीअनिरुद्ध बापूके प्रवचन हेतु और अन्य उत्सवों के समय मुंबई जाती थी । हमारी परेशानी देखकर एक बार मुझसे बोली,‘‘तुम अनिरुद्ध बापू की उपासना करो।’’ मैं समझ न पाई कि क्या करूँ। इस बात को भी काफी दिन गुजर गये ।
वैसे हर शनिवार को मैं बस से आते समय मॉडर्न स्कूल में बापू का कोई प्रोग्राम चलते हुए देखती थी । परंतु वहाँ निश्चित तौर पर क्या होता है, यह पता न था । बहन से यह पता चला कि मॉर्डन स्कूल में हर शनिवार बापू की उपासना होती है । परंतु इतना बताने के बाद भी मुझे वहाँ जाने की इच्छा न हुई ।
ऐसे ही कुछ और दिन बीते । हमारी अवस्था ‘जैसे थे’ ही थी । सारे मार्ग बंद हो गये जान पड़ते थे । तब मन में सोचा कि एक बार वहाँ जाकर देखने में हर्ज ही क्या है ?
फिर एक शनिवार को मन पक्का कर वहाँ गई । उपासना की तैयारी चल रही थी । अनुशासनप्रिय कार्यकर्ता, निर्धारित कार्य उत्साहपूर्ण तरीके से कर रहे थे । वहाँ बापू के बारे में पूछताछ की एक महिला कार्यकर्ती ने कहा,‘‘आज आप सिर्फ सुनिये, अच्छा लगे तो उपासना पुस्तिका लीजिये।’’ वहाँ का अनुशासन, भक्तिमय वातावरण मन को बहुत अच्छा लगा था। मुख्य रुप से यह पता चला कि मैं वहाँ नई थी पर मुझे किसीने ‘यह पुस्तक लो, यह वस्तू लो, दान दो’’ या कोई ऐसी जबरदस्ती न की । यह बात भी विशेष रुप से भा गई ।
मैं वहाँ उपासना में बैठी । सामने तीन फोटो थे । वे आपस में कौन है ? कुछ समझ नहीं पा रही थी । परंतु उपासना शुरु होते ही पता नहीं क्या हुआ ? दोनो आँखों से पानी की धाराएँ बहना शुरु हो गई। पता नहीं क्यों, मन प्रचंड रुप से हिल गया था । मानो अपनेआपे में न हो। घर जाकर पति को सब बताया और अगले शनिवार को चलने का आग्रह किया। तब उन्हें नौकरी न थी । घर पर ही थे । मेरे आग्रह के कारण वे आये । परंतु उन्हें वह ‘उपासना’ अच्छी नहीं लगी । घर आकर बोले,‘‘मुझे यह नहीं अच्छा लगा। यह क्या किसी राजकीय नेता की तरह स्वयं का पजू न करवाना? मैं अगली बार से नहीं आनेवाला । तुम्हें जाना है तो जाओ ।’’
परंतु बापू ने हमें अपनी ओर आने हेतु प्रेरित क्यों किया इसक कारण हमें दूसरे दिन सुबह पता चला । पिछले दिन उपासना के बाद गुस्से से बोलने वाले मेरे पति सुबह होते ही कुछ अलग ही बोलने लगे। उन्होंने बताया कि उन्हें एक स्वप्न दिखा कि एक फकीर जिसने सर पर कपडा, शरीर पर कफनी, पाँव में स्लीपर पहने थी, उनके पास आया, सर पर हाथ रखकर बोला,‘‘तुम कोई चिंता न करा, मैं तुम्हारे जीवन भर की चिंता मिटा देता हूँ ।’’ फकीर, स्वप्न का अर्थ ठीक से समझा नहीं पर इसके तीसरे ही दिन इस बात का प्रमाण मिला कि कुछ तो निश्चित ही अच्छा है ।
तीसरे ही दिन उन्हें अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी मिल गई । खास बात यह की अब नौकरी में कभी खंडित काल न हुआ । जब हुआ तब इससे ज्यादा तनख्वाह मिलने के कारण । जिस दिन हमने उपासना केंद्र से ‘त्रिपुरारी त्रिविक्रम चिह्न’ लेकर दरवाजे पर लगाया , उसके दूसरे ही दिन यह नौकरी मिली ।
बापू कृपा से अब मेरे पति की नौकरी बिजनेस पार्टनर ऐसी दुगनी कमाई चालू है । मेरी भी नौकरी बदल गई है और अब मैं महीने में पंद्रह हजार कमा रही हूँ । यह सुख के दिन हम केवल बापू कृपा से देख पा रहे हैं , जो हमने कभी सोचा भी न था कि हमारे जीवन में आयेंगे । परंतु बापू ने असंभव को संभव कर दिखाया ।
अब बापू चरणों में एक ही प्रार्थना ....
‘‘हेचि दान देवा देगा
तुझा विसर न व्हावा ’’
(हे भगवान, अब बस यही दान माँगती हूँ कि तुम्हें कभी भी भूल
न सके । कभी न भूलें ............)
॥ हरि ॐ ॥