॥ हरि ॐ ॥
वैसे तो मुझे बापूजी के अनुभव सन 2001 से कई बार हुए हैं। कई बार संकट से बचाना, घर में बापूजी का विद्यमान रहना महसूस होना ऐसी बातों से ‘जहां जाऊं वहां तू मेरा साथी’ इस वाक्य की अनुभूति कई बार होती है। आज मैं आपको बापूजी का एक अनुभव बताती हूं।
दिनांक 15 मई को मैं और मेरे पति, बेटी की ननद की सगाई में पुणे गए थे। दूसरे दिन सगाई का कार्यक्रम अच्छी तरह से संपन्न हो गया। हम 17 मई को मुंबई के लिए रवाना होनेवाले थे, मगर बेटी के ससुरालवालों ने हमें दो दिनों के लिए रोक लिया।
परंतु दूसरे ही दिन मुझे हमारे पडोस की एक लडकी का फोन आया और उस ने पूछा कि, ‘‘चाची, क्या आपने मेन दरवाजे को ताला न लगाकर केवल बाहरी सेफ्टी दरवाजे को ताला लगाया है?’’ यह सुनकर पल भर के लिए मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। मैंने उस से कहा, ‘‘ठीक से देखो। मैंने मेन दरवाजे को गोदरेज का बडा ताला लगाया था।’’ तब उस ने कहा, ‘‘मुझे कुछ गडबड लगती है। आप तुरंत आ जाईए।’’
यह सुनकर मैं तो थरथराने लगी। बेटी के ससुरालवालों ने मेरा धीरज बंधाया। हम तुरंत निकल पडे। दामाद और बेटी भी हमारे साथ निकले। इतने में उसकी ननद के पति वसई जानेवाले थे तो वे बोले, ‘‘मैं आपको कार से जुईनगर तक छोडता हूं। आगे आप ट्रेन से व्ही.टी. तक जाकर वहां से टैक्सी करके ताडदेव चले जाईएगा।’’
हम उनकी गाडी में बैठ गए। मैं मन में बापूजी को पुकार रही थी। हम जुईनगर स्टेशन पहुंचे तो वहां पर बापूजी का एक बडा फोटो दिखाई दिया और मेरी जान में जान आई। बापूजी को पुकारते हुए ही हम व्ही.टी. स्टेशन और वहां से टैक्सी लेकर अपने घर पहुंचे। पडोसवाली लडकी ने फोन पर जैसा कहा था वैसा ही था। हम ने तुरंत ताडदेव पुलिस थाने जाकर कम्पलेंट दर्ज कराई। ताडदेव पुलिस ने हमारे साथ घर आकर, घर के बाहरी सेफ्टी दरवाजे का छोटा ताला तोडा और अन्दर प्रवेश किया।
अंदर जाकर देखा तो सबकुछ अस्तव्यस्त पडा था। सारे घर में कपडे फैले हुए थे। टेबल की दराज खुली हुई थी। गोदरेज की अलमारी बिखरी हुई थी। चोरों की नजर पूजाघर में भी पडी थी क्योंकि उन्होंने पूजाघर की दराज भी खुली रख छोडी थी। बापू-नंदाई-सुचितदादा का छोटा फोटो ग्रंथ पर पडा था। सबकुछ उलटा-पुलटा था।
मगर चोर सोच भी नहीं सकते कि भले ही हम घर पर न हों, हमारा बाप...मेरे बापू घर में बिराजमान थे। निश्चितरूप से....क्योंकि अचरज की बात तो यह है कि चोरों ने सारा घर ढूंढा था फिर भी मैंने जहां पर सोने, चांदी की चीजें और जेवरात रखे थे वे सभी सुरक्षित थे। मेरे बापूजी ने मानो चोरों को भ्रमित करके अन्यत्र कहीं व्यस्त कर दिया था और मुझे भारी नुकसान से बचा लिया था। बापूजी की इस अनोखी कीमिया से हम दंग रह गए।
हमारी केवल दो-तीन चीजें ही चोरी हुई थीं। हम पर आया हुआ बडा संकट बापूजी ने थोडे पर ही निपटा दिया था। सचमुच, इस कलयुग में बुरी शक्तियां तथा चोरीचकारी और अपराधों की घटना बढती ही जा रही हैं। सुबह को घर से निकला हुआ इनसान शाम को घर लौटेगा कि नहीं परिवारवालों को निरंतर यह चिन्ता लगी रहती है। ऐसे में साधारण लोगों के लिए आनिरुद्धजी के अलावा कोई आधार नहीं है।
ऐसे कठिन समय में हमें भक्ति का कवच मिले इसलिए आज बापूजी हम से विभिन्न तरह की उपासनाएं कराते हैं। आगे आनेवाले भीषन समय की जानकारी देते हैं, हमें सावधान रहने की हिदायत देते हैं। हम सब के लिए उन्होंने खार स्थित हैपी होम में श्रीगुरुक्षेत्रम के द्वार भी खोल रखे हैं। वहां जाने पर अनोखी शांति का अहसास होता है। चण्डिका महिषासुरमर्दिनी, अनसूयामाता, दत्तबाप्पा, चण्डिकाकुल यह सभी हमारे सद्गुरु के माध्यम से हमारे दुख दूर करने हेतु उपस्थित हैं। बापूजी ने हमें ‘श्रीगुरुक्षेत्रम मंत्र’ दिया है ताकि हम इन सब की कृपा प्राप्त कर सकें। बापूजी चाहते हैं कि श्रद्धावान इस खजाने को लूटें। और इस के लिए हमें गुरुक्षेत्रम में जाना ही चाहिए। फिर बापूजी हमारे लिए सबकुछ करने को समर्थ हैं ही।
॥ हरि ॐ ॥