॥ हरि ॐ ॥
7 जनवरी। वर्धमान व्रत की समाप्ति से दो दिन पहले मैं अपने परिवार के साथ गोविद्यापीठम गई थी। वहां दर्शन करके, खाना खाकर हम मुम्बई के लिए रवाना हुए। वापसी में जुईनगर होते हुए मुम्बई लौटने का विचार करके ही हम घर से निकले थे।
शाम के 4.30 बजे हम जुईनगर पहुंचे। मेरे हाथों में मेरा 9 महीने का बच्चा था। कई श्रद्धावान जानते होंगे कि जुईनगर मंदिर के परिसर में प्रवेश करते ही थोडासा स्लोप (ढलान) है। यह देखकर मैंने अपने बच्चे को संभालते हुए पादान पर दाहिना कदम रखा। लादी और ढलान के बीच जो थोडासा सीमेंट निकला हुआ था वहां पर मेरा कदम पडा और उस में मेरे पैर का अंगूठा अटकने की वजह से मैं लुढक गई। अपने बच्चे को संभालते हुए मैंने पहले घुटना टेका, पर इसका कोई फायदा नहीं होगा यह जानकर मैंने बाएं हाथ की कोहनी भी टेकी। दाहिना हाथ बच्चे के सर के नीचे ले जाते हुए मैं दाहिने कंधे पर जोर से गिरी, ठीक तुलसी वृन्दावन के सामने।
ऐसा लगा कि बच्चे का सर धीरे से टकराया, मगर मेरी ननद ने तुरंत बच्चे को उठा लिया। मेरे हाथ और पैरों में इतना दर्द होने लगा कि मुझे लगा मेरे हाथ, पांव फ्रैक्चर हो गए हैं। मगर मंदिर के सेवाधारी दौडकर आए और मेरे माथे पर उदी लगाई, मेरे जख्मों पर उदी लगाई। मुझे धीरे धीरे हाथ, पांव हिलाने के लिए कहा। उदी लगाने से तुरंत दर्द कम हो गया था। मेरे बच्चे को जरा भी चोट नहीं लगी थी। मेरे बाबा (बापू), नंदाई, सुचितमामा और साक्षात बडी मां वहीं थे; उन्होंने ही हमें बचाया। शायद मुझ पर कोई बडा संकट आनेवाला था, मगर बडी मां के द्वार पर कदम रखते ही उस ने संकट दूर कर दिया और मेरे प्रारब्धानुसार मुझे सहने जितना दर्द दिया।
ठीक एक साल पहले, 7 जनवरी 2011 को भी मैं गिरी थी। तब मैं 7 महीने की गर्भवती थी। सुचितदादा को हमेशा मैं रिपोर्ट्स दिखाया करती थी। हर बार वे कहते थे, ‘‘सबकुछ ठीकठाक है, चिन्ता की कोई बात नहीं है।’’ पांचवे महीने से हर रोज मुझे रामरक्षा का पाठ करने को कहा गया था और मैं रोज पाठ किया करती थी।
पिछले साल जब मैं गिरी थी, उस दिन मेरे पति प्रसादसिंह के साथ मैं दोहद भोजन के लिए साडी खरीदने गई थी। दुकान की पादान पर मैंने कदम रखा और कटहरा भी थामा था। फिर भी मेरा पैर फिसल गया और प्रसाद भी मुझे संभाल नहीं पाया। मगर उस वक्त मुझे अहसास हुआ कि किसी ने मुझे थामकर धीरे से पादान पर बिठा दिया। मुझे कुछ भी नहीं हुआ केवल पादान का किनारा मेरी कमर में चुभा था। गिरने की इस घटना से पहले 31 दिसम्बर 2010 को बापूजी ने मुझ से 2 दत्तयाग करवाए थे।
बापूजी हमेशा कहते हैं न कि, सद्गुरु हमेशा संकट आने से पहले ही उसके निवारण की योजना बनाते है। मैंने इस बात को अनुभव किया।
बापूजी का 9 जनवरी 2012 का प्रवचन मैं कभी नहीं भूलूंगी। उन्होंने कहा था, ‘‘जीवन के प्रत्येक कदम पर मेरे गुरु मेरे साथ होते हैं, यह दृढ विश्वास होना चाहिए।’’ अगर ‘वे’ मेरे साथ नहीं होते तो मेरा जीवन कैसा होता यह मैं सोच भी नहीं सकती। आय लव यू बाबा, नंदाई, मामा और बडी मां.
॥ हरि ॐ ॥