॥ हरि ॐ ॥
मेरे पति आत्माराम जड्यार शिवडी के पास एक प्रेस में काम करते हैं । मैं गृहिणी हूँ और हम दोनो के साथ बेटी ज्योत्सना व बेटा दिपक यही हमारा परिवार है । हम सभी की बापू पर नितांत श्रद्धा है । ‘‘जिस हाल में भगवान रखे, वैसे ही रहेंगे’’ इस तत्त्व को मानकर हम आनंद से जो मिले वह खाकर सुखी हैं । शिवडी में हमारी 10 बाय 12 की एम रुम उसी में रसोई, एक छोटी अलमारी, छोटी कॉट, छोटा टेबल सीलिंग फैन इतना ही सामान है । बेटी ज्योत्सना 10वी अच्छी तरह से उत्तीर्ण होकर 11वीं में व बेटा दीपक 8वी में पढ रहा है । उस सद्गुरु बापू को याद किये बिना हमारा एक भी दिन गुजरता नहीं है ।
ज्योत्सना को बचपन से ही बापू बहुत अच्छे लगते थे । हरेक कार्य में वह बापू की याद करती है । जब से रामनाम बैंक की स्थापना हुई तभी से वह उसकी सदस्य बनी और उसने सुबह शाम दो पन्ने लिखने का नियम बना लिया । डेढ़ साल पहले की बात है, गरमी के दिन थे । हमारी 10 बाय 12 रुम में हवां नहीं आती । फैन लगाना ही पड़ता है । मेरे पति काम पर से आये और हम सब खाना खाने बैठे । रात के 11 बजे सोने की तैयारी करने लगे । किसी को यह नहीं लगा था कि आज कोई बुरी घटना होनेवाली है। हम सभी ने अपने नियमानुसार बापू का स्मरण किया और सोने लगे। मेरे पति उस कॉट पर, मैं बीच में, मेरे एक तरफ दीपक व दूसरी ओर फैन के ठीक नीचे ज्योत्सना सो गये। सोने से पूर्व ज्योत्सना ने हमेशा की तरह रामनाम बही के दो पन्ने लिखे, बही अपने तकिये के पास रखी और लाईट बंद कर सो गई । धीरे-धीरे हम सभी गहरी नींद में सो गये । रात की शांती सिर्फ फैन की आवाज से ही भंग हो रही थी।
शायद रात के दो बजे होंगे । अचानक एक जोर की आवाज आई और कुछ भारी सी चीज नीचे गिरी । उस आवाज से ही हम डर गये । अंधेरे में ही हमने एक दूसरे को भींच लिया । मेरे पति ने धैर्य रखते हुए लाईट जलाई तो क्या देखा ? आँखो पर विश्वास नहीं हो रहा था । मैं बच्चों को भींचे हुए बैठी हूँ और सामने वह 4 पत्ती वाला पंखा पड़ा हुआ है । एकसा दृष्य फैन के ठीक बीच ज्योत्सना सोई थी । परंतु फैन उससे दूर अलग घूमते हुए पडा । अब हमारी नींद उड़ चुकी थी । हम इस घटना से विचलित हो गये थे । इसकी गंभीरता का ध्यान हमें चारों को ठीक ठाक देख कर ही आया था । बापू ने हमें फूल की तरह संभाल लिया था । यह देखकर मन बार बार बापू को याद कर रो रहा था ।
मैं बार बार ज्योत्सना से पूछ रही थी,‘‘बेटी, कहीं चोट है क्या ? डरो मत, छुपाओ मत ।’’ वह काँप रही थी और इशारे से ना-ना कर रही थी । उसने मुझसे सबसे पहले पूछा,‘‘माँ मेरी रामनाम बही कहाँ हैं?’’ हम सब ढूंढने लगे और सामने क्या देखा ? कि रामनाम बही पंखे के नीचे पड़ी थी । उसका उपर का पुठ्ठा कट गया ।क्षणभर तो विश्वास ही न हुआ । ज्योत्सना फूट-फूट कर रोने लगी । उसने वह बही पंखे के नीचे से निकाली और उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी । ‘‘मेरे बापू को चोट लग गई । उन्हें पंखे की पत्ती से चोट लगी है ।’’ ऐसा बोलते हुए वह बार बार बही को चूमने लगी । मैंने उसे शांत किया । हम सभीने बही को अपने दिल से लगाया । ज्योत्सना बड़बड़ा रही थी,‘‘बापू ! ये क्या किया ? मेरे लिये इतनी रात को दौड चले आये ? मैं ने तो आवाज भी न दी थी । बापू ! ’’
ज्योत्सना के पापा को भी बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे थे । फैन तो ज्योत्सना के सर पर था । वह बाजू में कैसे चला गया ? रामनाम बही उसके तकिये के नीचे थी । वह बाहर कैसे आ गई ? ज्योत्सना को पंखे की एक भी पत्ती का स्पर्श क्यों न हुआ ? कहीं कोई चोट नहीं । मेरा दिमाग भी सुन्न हो चला । सारे प्रश्नों का एक ही उत्तर था ............ मेरा बापू !
‘‘यदि मेरी सेवा कर रहे हो। मुझ पर प्रेम कर रहे हो । मुझ पर दृढ़ श्रद्धा हो, तो कोई चाहे तुम्हारे पडोस में जिंदा बम रखा तो भी वह नहीं फूटेगा । इसका ध्यान मैं रखूँगा।’’
के पिता को बापू के ये शब्द याद आये । बापू की अकारण करुणा का अनुभव हमने लिया। मेरे देव ने मेरे बच्चे सही सलामत रखने के लिये। फैन का आघात स्वंय पर लिया। सच ! बापू तू हम पर कितना प्रेम बरसाता है ? हम कब तुझ पर ऐसा प्रेम करने लगेंगे ?
॥ हरि ॐ ॥