॥ हरि ॐ ॥
‘‘शरीर अपंग हो गया तो भी चलेगा, परंतु मन की अपंगता दूर करो । अपंग मन को ठीक रास्ते पर लाओ’’ यहीं सद्गुरु के चरणों में प्रार्थना है ।
दिनांक 4 दिसम्बर 2010 के दिन मैं केंद्र के एक श्रद्धावान के लड़के की रिपोर्ट परमपूज्य सुचितदादा को दिखाने के लिये हैप्पी होम की क्लीनिक में गयी थी । मेरे साथ उस बच्चे की माँ थी । हैप्पी होम में पहुँचने पर क्लीनिक में जाने में देर हो जायेगी, अतः मैंने बाहर से ही दत्तबाप्पा व महिषासुरमर्दिनी को नमस्कार किया । उस समय अंदर देखा तो नंदाई महिषासुरमर्दिनी को नमस्कार कर रही थी । मैंने आई को पीछे से ही देखा । उस क्षण वहाँ से हिलने का मन नहीं हो रहा था । पैंर वहीं पर ठिठक गये । परंतु घड़ी देखा तो क्लीनिक बंद होने का समय हो रहा था, अतः मैं दो कदम आगे बढ गयी । तभी पीछे से किसी की आवाज आई,‘‘ठहरो, आई आ रही है ,।’’ अतः मैं वहीं लिफ्ट के बाहर जहाँ दत्तबाप्पा की मूर्ति है, वहीं पर रुक गयी । पीछे पीछे आई आ गयी । आई ने एक छोटे बच्चे को प्रसाद दिया और लिफ्ट की ओर चली गयी । मुझे लगा मेरी ओर आई ने देखा ही नहीं । वास्तव में हम दो-तीन स्त्रियां ही वहाँ खड़ी थीं । यद्यपि आई ने मेरी ओर देखा ही नहीं था फिर भी लिफ्ट के पास जाकर मुझसे पूछा,‘‘सुषमा, तुझे क्या हो गया ?’’ मैंने उनके पास जाकर बताया कि,‘‘मुझे खूब प्यास लगती है।’’ तब उन्होंने कहा कि,‘‘ब्लड टेस्ट कराया है क्या ? ऊपर दादा से जाकर मिलो ।’’
यदि उस दिन आई ने मुझसे नहीं कहा होता तो मैं दादा को अपने बारे में कुछ भी बतानेवाली नहीं थी क्योंकि मेरी अपेक्षा मेरे साथ आयी उस औरत के लड़के की बीमारी ज्यादा गंभीर थी और मुझे तो कुछ भी बीमारी नहीं लग रही थी । मैं बिल्कुल फ्रेश थी । परंतु आई के कहने के कारण मैंने दादा से मुझे भी जाँचने के लिये कहा । दादा ने मेरी नाडी देखी और तुरंत कुछ टेस्ट व सोनोग्राफी करवाने के लिये कहा । डॉ.लिनम पडेलकर ने मुझसे ये टेस्ट यथाशीघ्र करवाने के लिये कहा । मैंने तुरंत ये सारे टेस्ट करवा लिये तथा दूसरे दिन दादा को रिपोर्टस् दिखाये । उस समय पता चला कि मेरी शुगर फास्टींग (खाली पेट) 363 तथा पोस्ट लंच (खाने के बाद) 415 थी । साथ ही साथ कालेस्ट्रोल इत्यादि सभी कुछ बढ़ा हुआ था । सोनोग्राफी से पता चला कि ब्लॅडर में सूजन है । तभी मुझे पहली बार पता चला कि मुझे डायबिटिस (मधुमेह) हो गया है । तब दादा ने मुझे डायबिटोलॉजिस डॉ. सौमिल मेहतालियां के पास जाने को कहा । मैंने नीचे जाकर श्रीगुरुक्षेत्रम् में 108 बार गुरुक्षेत्रम् मंत्र का पठन किया । दोपहर 4 बजे मेरा पठन पूरा हुआ । बाहर काफी भीड़ थी ।इतनी भीड क्यों है, यह यकायक मैं समझ नहीं सकी । तभी एक भक्त ने कहा,‘‘जाओ मत आई नीचे आ रही है ।’’ मैं यह भूल ही गयी थी कि उस दिन शनिवार था और आई इसी समय आत्मबल की क्लास के लिये जाती है । उसके बाद मैं बाहर आई की प्रतिक्षा करते हुये खड़ी थी । काफी भीड थी । आई नीचे आयी और गाड़ी में चढ़ने से पहले उन्होंने बाहर देखा । वहाँ से ही उन्होंने मुझसे पूछा,‘‘कैसी हो ?’’ मैं आगे गेट के पास तक गयी । तब तक आई भी गेट के पास तक आ गयी और बोली,‘‘दवाईयां शुरु हो गयी क्या ? कल से मैं काफी टेंशन में थी । ’’ ऐसा सुनते ही मैं भावविभोर हो उठी । सत्य है, नंदाई को सभी की कितनी चिंता है !
मेरे जैसे कितने जीव इस पृथ्वी पर हैं ! सभी की चिंता इसे हैं । और हम हैं कि कैसा भी व्यवहार करते फिरते हैं । तभी आई, बापू, दादा को कितना कष्ट होता होगा ? इसका विचार तक हम नहीं करते । इस विचार से ही मुझे शर्म आने लगी ।
उसके बाद मैं डा.मेहतालिया के पास गयी । उन्होंने मेरी रिपोर्टस् देखकर कहा,‘‘तुम्हारे साथ कोई आया है क्या?’’ मेरा लड़का बाहर बैठा था । उन्होंने उसे बुलाया और पूछा,‘‘क्या आप इन रिपोर्टस् के प्रति सीरियस हैं ?’’ बी.पी. शुगर व कोलस्ट्रोल के कारण तुम्हारे अंग बेकार हो सकते हैं । साथ ही साथ हार्ट अॅटॅक के भी चांस है । तुम्हें वीकनेस लग रहा है क्या? चक्कर आदि आते हैं क्या? अथवा पॉव दुखते हैं क्या?’’ परंतु मुझे ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था । इसके विपरीत मैं बिलकुल फ्रेश थी और यह बात डॉक्टर की समझ में भी आयी । उन्होंने मुझसे कहा भी कि,‘‘इतना सब होने के बावजूद भी आप फ्रेश दिखायी दे रही हो ।’’
उसके बाद उनकी सलाह के अनुसार दिन में 23 बार इन्स्युलिन व औषध लेने के बावजूद चार दिनों तक शुगर कम नहीं हुयी । गुरुवार को मुझे फोन आया कि नंदाई ने आज तुम्हें 11 बार शुंभकरा व 11 बार अशुभनाशिनी स्तोत्र का पठन करने को कहा है और तू हमेशा फ्रेश रहनेवाली है । तू मुझे मेरे कार्यों के लिये चाहिये । यह संदेश पाकर मैंने तुरंत ‘श्रीराम’ कहा और 11 बार शुंभकरा व अशुभनाशिनी स्तोत्र का पठन किया। और क्या आश्चर्य की बात है कि उसी दिन से मेरी शुगर जो नॉर्मल हुयी तो आज तक डेढ़ महीने के बाद भी पूरी तरह नार्मल है । फास्टींग 85 से 90 तथा पोस्ट लंच 90 से 110 इसी के बीच मेरी शुगर है । दो दिनों के बाद जब मैंने नंदाई को अपनी शुगर के बारे में बताया तो उन्होंने मुझसे ये दोनो स्तोत्र सिर्फ एक ही दिन नहीं, पूरे माह बल्कि संभव हो तो हमेशा 11 बार रोज पठन करने को कहा ।
मैं जब जब डॉ.मेहतालियानी के पास जाती थी तब वे कहते थे कि,‘‘तुम दवाईयों को काफी अच्छा रिस्पॉन्स दे रही हो तथा खूब फ्रेश दिखायी दे रही हो ।’’ आठ दिनों में ही मेरी इन्स्युलीन बंद हो गयी तथा गोली भी आधी लेने को कहा गया ।
उसके बाद जब मैंने अपनी रिपोर्ट एक बार फिर देखी तो पता चला कि मेरी हिमोग्लोबिन 15 हो गयी थी । इसके पहले मैं कभी भी ब्लड डोनेट नहीं कर सकी थी क्योंकि मेरी हिमोग्लोबिन 9 और 9.30 के ऊपर जाती ही नहीं थी । परंतु मुझे मेरी ब्लडशुगर के बारे में पता चलने से पहले ही 9 मई 2010 के दिन परमपूज्य बापू द्वारा दिये गये राजराज्य के प्रवचन में वैयक्तिक स्तर पर जिन चीजों को करना था, आहार में जो बदलाव लाने को कहा था, उसके कारण मेरी हिमोग्लोबिन 15 हो गयी थी । डॉक्टर ने कहा,‘‘इतनी हिमोग्लोबिन तो पुरुषों में भी कम ही होती है । इसके कारण तुम्हें कुछ भी कष्ट न होकर तुम फ्रेश दिखायी दे रही हो ।’’
तब मुझे ध्यान में आया कि सद्गुरु भक्तों पर संकट आने से पहले ही उसकी पूरी खबरदारी लेते रहते हैं । 6 मई 2010 के प्रवचनों के बाद मेरी आदतें, आहार (सवेरे नमक के पानी से कुल्ला करना, सवेरे 1लीटर पानी पीना, शताक्षी प्रसादम्, धूप में घूमना, फल, हरी सब्जियां, बांगडे मछली, मोदक का समावेश हो गया ।) के कारण मेरी हिमोग्लोबिन बढ़ गयी थी । इसी के कारण मुझे किसी प्रकार की तकलीफ भी नहीं हुयी । सबसे महत्त्वपूर्ण थी नंदाई की कृपादृष्टि ।
आज हम घर में किसी न किसी को डायबिटीस होती ही है । यह बीमारी वर्तमान में खूब कॉमन हो गयी है । तब फिर नंदाई ने मेरा इतना ख्याल क्यों किया ? इस बारे में जो मुझे लगता है वो मैं यहाँ व्यक्त कर रही हूँ ।
मैं जिस ऑफिस में काम कर रही थी, वहाँ के एक लड़के को फेस रिडींग करना आता था । मुझे पहले यह जानकारी नहीं थी । दि.15 जून 1997 (उस समय मैं बापू के पास नहीं आती थी ) के दिन उसने मेरे चेहरे की ओर देखकर कहा कि,‘‘थोडी ही दिनों में तुम पर काफीबड़ा संकट आनेवाला है ।’’ उस समय मैंने उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया परंतु उस समय मेरा भविष्य, फेस रिडींग, हाथ दिखाना आदि सब पर काफी विश्वास था । उसके चार दिनों के बाद अर्थात 19 जून 1997 को मेरी छोटी बहन व उनके पति दोनों की नाव दुर्घटना में मृत्यु हो गयी । अतः मेरा उस लड़के की बात पर और भी विश्वास बढ़ गया ।
एक महीने की छुट्टी के बाद जब मैं ऑफिस में आयी तो मुझे उसके शब्द याद आ गये । मैंने उससे पूछा कि,‘‘अब तो सारे संकट समाप्त हो गये हैं क्या?’’ तभी उसने मेरे चेहरे की ओर देखकर कहा,‘‘नहीं, एक और संकट आनेवाला है और वो तुम्हारे घर में नहीं आयेगा ।’’ उसके कथनानुसार 22 अगस्त 1997 के दिन मात्र दो महीनों में ही मेरे पिताजी को लगातार 3 अॅटॅक आयें और उनका निधन हो गया । उनका उपचार करने तक का भी समय नहीं मिला । इतना सब होने के बाद एक दिन फिर मैंने उस लड़के से पूछा कि,‘‘अब तो सब संकट समाप्त हो गये ना?’’ तभी उसने कहा कि,‘‘अब तेरा चेहरा क्लीयर हो गया है । अब कुछ भी नहीं होगा ।’’ मैंने उत्सुकतावश उससे पूछा,‘‘मेरी उम्र कितनी हैं ? ’’ तभी उन्हें एक भी क्षण की देरी किये बिना कहा,‘‘तुम 50 वर्षो तक भी जीवित नहीं रहोगी । 46 वे वर्ष में तू ऊपर जायेंगी ।’’ ऐसा सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा । उस समय मेरा लड़का काफी छोटा था ।
इस घटना के बाद 23 दिसम्बर 2010 के दिन मुझे 48 वर्ष पूरे होकर 49 वर्ष लगा और इसी वर्ष मुझे मेरी इस बीमारी का पता चला । शायद यह मेरा गंडांतर ही होगा ।
मार्च 1998 से मैं बापू के पास आने लगी । तभी से उनके प्रवचनों के कारण मुझमें धीरे-धीरे कुछ बदलाव आने लगे । इस तरह के असंख्य बदलाव बताने जैसे हैं परंतु इस अनुभव के आधार पर मैं यहाँ बापू के उद्गार उद्धरित कर रही हूँ ,‘‘ज्योतिष शास्त्र सच्चा है । ज्योतिषी तुम्हें यह बता सकता है कि आगे क्या होनेवाला है, परंतु उसका उपाय नहीं बता सकता । सद्गुरु तुमसे भक्ति, सेवा करवाकरके उसके अकारण कारुण्य के कारण तुम्हारे प्रारब्ध का नाश करता है । अथवा भोग कम कर देता है क्योंकि इन सबसे उपर सद्गुरु ही है ।’’ विगत 12 वर्षों में बापू के मुँह से मैंने उपरोक्त वाक्य सुना था अतः मेरा पूरा भय निकल गया था । दिनांक 4 दिसम्बर 2010 के (बीमार पडने से पहले) पहले गुरुवार को बापू ने फिर यहीं वाक्य दोहराया था । उसके कारण अब मृत्यु का भय नहीं लगता । जो भी उम्र अब शेष बची है वो सिर्फ सद्गुरु बापू की इच्छा अनुसार ही व्यतीत हो तथा अंतिम क्षणों में नजर के सामने सिर्फ बापू ही हों । यही उनके चरणों में प्रार्थना है । इसीलिये काका दीक्षित द्वारा बाबा से कहा गया वाक्य याद आता है । ‘‘शरीर का अपंगत्व एक बार चलेगा परंतु मन को अपंग मत होने देना।’’
मी तो फक्त पायाचा दास । नका करु मजला उदास ।
जोवरी ह्या देहि श्वास । निज कार्यास साधूनि घ्या ॥
॥ हरि ॐ ॥