॥ हरि ॐ ॥
वैसे यह कहना गलत होगा कि ‘‘मैं बापू के पास कब से आ रहा हूँ’’ । मेरा ऐसा मानना है कि सद्गुरु प्रत्येक भक्त को उस -उसके लिये उचित समय पर बुला लेते हैं । मेरी माँ आनंदी यादव विगत 8-9 सालों से लगातार बापू की उपासना कर रही हैं और उसका तथा हमारे घर के सभी सदस्यों का भगवान पर पूरा भरोसा है। मैं माँ के कहने पर उल्हासनगर उपासना केंद्र पर कभी-कभी शनिवार के दिन जाया करता था । बापू के प्रवचनों की सीडी सुनते समय प्रवचन मन को अच्छे लगते थे । उस समय मुझे लगता था कि मानों बापू प्रवचनों के माध्यम से मुझे प्रतिदिन होनेवाले अनुभवों की ही व्याख्या कर रहें हों । बापू के प्रति मेरा विश्वास दिन प्रति दिन बढ़ता ही गया और जिस किसी ने भी बापू पर विश्वास किया उसे परमेश्वर का आधार मिलता ही है, इसी का प्रमाण मुझे इस अनुभव से मिला । मेरी पढ़ाई के कारणमैं कभी उल्हासनगर, कभी सातारा, तो कभी नांदेड में 2 से 3 वर्षों तक रहा । अतः मैं प्रत्येक शनिवार को उपासना में जाता नहीं था । प्रत्येक गुरुवार को भी जाता नहीं था । परंतु जिसने बापू को एकबार ‘अपना’ मान लिया, वो बापू को आवाज दे या न दे, बापू उस व्यक्ति की अगली सभी जिम्मेदारियां स्वतः पर ले चुके होते हैं, यह बात मैं आज स्वानुभव के आधार पर कह सकता हूँ । यद्यपि मैं उपासना में नहीं जा पाता था ङ्गिर भी सातारा और नांदेड में पढते समय मैं नियमित रुप से घर में उपासना किया करता था । यह सन 2006 फरवरी की घटना है । जब मैं अपनी इंजिनियरिंग में पोस्ट ग्रेज्युएशन कर रहा था तभी प्रथम वर्ष में मैं अपने कुछ साथियों के साथ शिर्डी गया था । वहाँ पर साई के अर्थात मेरे सद्गुरु बापू के साईरुप के दर्शन किया और तब हम सबने नासिक में सप्तश्रृंगी के दर्शन करने के लिये जाने का निश्चय किया । हम शाम को दर्शन लेकर नासिक जाने के लिये निकले । रात के आठ बजे होंगे । उस समय वहाँ से नासिक जाने के लिये एसटी आदि नहीं रहती थी, अतः हमने काली-पिली टमटम में जाने का निश्चय किया । पीछे की सीट पर हम चार मित्र बैठे थे और बीच की सीट पर एक जोडा बैठा था । ड्रायव्हर ने गाड़ी शुरु करते ही एक स्पीड ब्रेकर पर गाड़ी जोर से उछाल दी । मैंने मेरे मित्रों से कहा भी कि यह कुछ तो गड़बड़ करनेवाला लगता है ।
रात के 9.30 बजे से 10.00 बजे के दरम्यान लगभग 30-40 कि.मी. की गति से टमटम वणीदेवी का घाट उतरने लगी । घाट उतरते उतरते ही वो भयंकर घटना घटित हुयी ...........
अचानक ड्रायव्हर के हाथ से स्टिअरिंग छूट गयी और उसी रफ्तार में हमारी गाडी रास्ते के बगल में पडे खड़ी (मिट्टी) के ढ़ेर पर पूरी तरह उलट गयी । एक पल तो समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ ? मेरे एक मित्र ने लात मारकर पीछे का दरवाजा खोला और हम सब निकलकर बाहर खड़े हुये।
डीजल की टंकी फूट जाने से डीजल बह रहा था । ड्रायव्हर गाड़ी छोडकर भाग चुका था । जब हम इस पूरी घटना पर विचार कर रहे थे कि यह सब कैसे हुआ , कहाँ हुआ तो हमारे ध्यान में आया कि यदि यह घटना सिर्फ 2 मिनट पहले घटी होती तो हम 80-90 फीट गहरी खाई में जा गिरे होते और तब हमारा बचना नामुमकिन था । हमारे प्रारब्ध में तो दुर्घटना लिखी ही थी परंतु उसे कम से कम खतरे के स्थान पर घटित करवाकर बिल्कुल ठीक समय पर मुझे मेरे बापू ने सावधानीपूर्वक मृत्यु की दाढ़ से साफ साफ बाहर निकाल लिया था । इतनी भयंकर दुर्घटना के बावजूद हममें से किसी को खरोंच तक नहीं आयी थी ।
बापूराया, एक बार तुझे ‘अपना’ कहते ही तुम हमारा कितना ख्याल रखते हो रे ! हम तेरे कामचोर भक्त नामस्मरण और तुम्हारी बतायी हुयी उपासनाएं करने में टालमटोल किया करते हैं, परंतु तुम हमारा त्याग कभी भी नहीं करते हो ।
.......... और जब ऐसा दूसरी बार हुआ तब तो मैं पूरी तरह बापू चरणों में समर्पित हो गया ।
हुआ ऐसा कि उपरोक्त घटना के घटित होने के बाद हम हमारे परिवार के साथ अप्रैल 2006 में हमारे गांव में होने वाले मेले में गये थे ।
वहाँ पर मेला हो जाने के बाद हम पंढरपुर , तुळजापुर जाने का निश्चय किया ।
हमारा गाँव हैं फलटण । वहाँ से मेरा पूरा परिवार, माँ, पिताजी, दोनो बड़े भाई, बहन, काकू, चचेरी भाई इत्यादि हम 10 लोगों ने गाड़ी से जाकर पंढरपूर का दर्शन लिया । रात के 9 बज चुके थे । अतः हमने शॉर्टकट से फलटण जाने का निश्चय किया । यह रास्ता लगभग 20-30 कि.मी. का था । उस रास्ते से हम बार्शी पहुँचने वाले थे । परंतु इतने लम्बे रास्ते में अगल-बगल में कोई भी बस्ती नहीं थी तथा उस रास्ते पर 8 बजे के बाद राहदारी बंद हो जाती है, ऐसी जानकारी हमें दी गई थी।
मैंने मेरे ड्रायव्हर से पहले ही बता दिया था कि गाड़ी धीरे चलाना परंतु उस ड्रायव्हर का कहना था कि उसे रात में भी साङ्ग दिखायी देता है । मुझे थकान थी, अतः नींद आ रही थी और गाड़ी उस सुनसान रास्ते पर 60-70 कि.मी की गति से चल रही थी । वो रास्ता वैसे संकरा ही था ।
हम थोड़ी दूर गये होंगे.......... तभी अचानक एक जोरदार आवाज से मेरी नींद खुल गयी । कुछ समझ में नहीं आया ।ड्रायव्हर ने बताया एक बड़े ट्रॅक्टर-ट्रॉली द्वारा हमारी गाडी का हेडलाईट से लेकर टेललाईट तक (ड्रायव्हर के बाजू वाला) हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका था । यदि गाड़ी की गति कम होती तो यह अपघात इतना भयंकर होता कि हम सारे के सारे ऑन -द-स्पाट ही मर गये होते क्योंकि इतनी रफ्तार में गाडी होने के कारण वो ट्रॅक्टर गाडी में अटका नहीं, सिर्फ टक्कर मारकर निकल गया । यदि अटक गया होता तो गाड़ी 70 की गति से पलट गयी होती ।
परंतु बापू की कृपा ‘यदि... तो’’ नहीं जानती । वो ‘‘अनिरुद्ध’’ रुप से अपना काम करती ही है। इतनी भीषण दुर्घटना में हममें से किसी को भी किसी प्रकार का जखम न होते हुये हमारा बचना, इसी बात की पुष्टि करता है ।
‘‘जगत में एक प्राणपति बापू’’ यही सत्य है ।
॥ हरि ॐ ॥