॥ हरि ॐ ॥
यह तब की बात है जब मैं कॉलेज में थी । उस समय मेरे माँ-बाप से मुझे जेब खर्च मिलता था । उसीसे मेरा मासिक खर्च चलता था । एक बार मैंने कुछ ड्रेसेस सिलवाई थी और टेलर की सिलाई एक हजार रुपये देना बाकी था । वैसे तो कोई समस्या नहीं थी परंतु ठीक उसी दिन कुछ कारणवश मेरे घर में कुछ वाद-विवाद हो गया । अतः घर का वातावरण थोड़ा गरम ही था । अतः मैं पिताजी से पैसे माँग नहीं सकती थी और ड्रेसेस को अच्छी तरह सिलकर समय पर देने के कारण उस टेलर के पैसे भी रुकाना नहीं था । अब समस्या आ गयी ! क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा था । ऐसी स्थिती में बापू के अलावा और कौन अपना आधार हो सकता है ? बापू को कुछ कहना नहीं पड़ता, वे बिना कुछ कहें ही सब कुछ जानते ही है, वे हमारी प्रार्थना सुनते ही रहते हैं, ऐसा मुझे मेरे साईभक्त पिताजी समय समय पर बताते ही रहते थे ।
मैं इसी उधेडबुन में उठी और घर में लगे बापू के फोटो के सामने जाकर खड़ी हो गयी और बापू से अपनी पूरी समस्या कह दी । उसके बाद उनसे बोली, ‘‘बापू तुम मेरे सद्गुरु हो अतः मेरे पिता समान हों । मैं अपने पिता के अलावा सिर्फ तुमसे ही अपनी अड़चन अधिकारपूर्वक बता सकती हूँ । टेलर के बिल के हजार रुपये मुझे देने हैं । कुछ भी करके उसकी व्यवस्था करो ना ! ’’
बापू से इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद, दिनभर के कामों में मैं उसके बारे में भूल ही गयी । यह घटना मंगलवार की है ।
बापू ने मेरी प्रार्थना सुन ली इसका प्रमाण दूसरे ही दिन मिल गया । बुधवार को सवेरे 9.30 के आसपास जब घर के हम सब लोग नींद में ही थे तभी मेरे मोबाइल पर एक एफएम रेडिओ स्टेशन से फोन आया । फोन पर बताये गये संदेश को सुनकर मेरी नींद न जाने कहाँ गायब हो गयी । यह मेरा पंसददीदा रेडिओ स्टेशन था और उस पर प्रसारित होनेवाले कार्यक्रमों को मैं मनःपूर्वक सुना करती थी । उस समय इस रेडिओ स्टेशन पर घंटे-घंटे में श्रोताओं से कुछ प्रश्न पूंछे जाते थे तथा ‘ऐ’, ‘बी,’ ‘सी’, ‘डी’ ऐसे ऑप्शन दिये जाते थे । हमें मोबाईल पर एसएमएस करके उत्तर भेजना होता था । बिल्कुल सही उत्तरों में से ‘लकी ड्रॉ’ निकाला जाता था और विजेता को पुरस्कार मिला करता था । मैं शौक के कारण यह गेम खेला करती थी परंतु तब तक मुझे कोई पुरस्कार नहीं मिला था । अतः फोन पर जो व्यक्ति बोल रहा था उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था । इससे मेरी नींद ही उड़ गयी थी । अभी थोडी देर पहले पूछे गये एक प्रश्न का मेरे मोबाइल से आया उत्तर बिल्कुल सही होने के कारण वो लकी ड्रॉ के लिये पात्र साबित हुआ और लकी ड्रा में मुझे प्रथम पुरस्कार मिला था ! यह संदेश सुनकर मेरी उत्सुकता और भी ज्याद बढ़ गयी ।
तुम्हारे मोबाईल से भेजे गये बिल्कुल सही उत्तर को प्रथम पुरस्कार मिला है । यदि मोबाईल पर दर्शाये गये व्यक्ति आप ही है तो 5 मिनट में हम फिर से कॉल करके तुम्हारा पता लेंगे, ऐसा संदेश उन्होंने मुझे दिया तथा वो व्यक्ति मैं ही हूँ, इसकी पुष्टि कर ली । मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैंने कभी इस प्रश्न का उत्तर दिया ?
पाँच मिनट बाद फिर उसका फोन आया । उन्होंने मेरा पता लिया । शनिवार को कुरियर द्वारा मुझे मेरा पुरस्कार मिल भी गया । लिफाफा खोलकर देखा तो मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था । क्या होगा ? पूरे एक हजार रुपयों का मेरे नाम का चेक !! (ठीक उतनी ही रकम जो टेलर को देनी थी) बापू.....बापू.....सिर्फ बापू तुम्ही !!!
मेरे बापू ही ही ऐसा कर सकते हैं । बापू ही जानते हैं कि किसके लिये क्या उचित है और वो कब देना है । क्योंकि ङ्गोन पर संदेश देनेवाला व्यक्ति जिस प्रश्न का उत्तर मेरे मोबाइल से सही आने की बात कर रहा था, वो उत्तर तो मैंने कभी भेजा था इसकी मुझे याद तक नहीं थी । वो प्रतियोगिता हर घंटे में ली जा रही थी और हर घंटे विजेताओं की घोषण की जा रही थी; वो व्यक्ति जिस समय पर पूछे गये प्रश्न के उत्तर की बात कर रहा था उस समय में तो हम सब सो ही रहे थे । अतः हमारा रेडियो भी बंद ही था । शायद उसे कुछ गलतफहमी हुयी होगी और वे मेरे द्वारा रात में दिये गये उत्तर की बात कर रहे होंगे ।
जो भी हुआ हों, एक बात तो तय थी कि मेरे बापू ने मेरी समस्या सुलझा दी थी । इसके पहले भी मैंने अनेकों बार यह खेल खेला था और अनेकों बार मैंने सही उत्तर भी भेजे थे फिर भी आजतक मैं विजेता घोषित नहीं हुयी थी । और जब मुझे वास्तव में पैसों की आवश्यकता थी, ठीक उसी समय बापू ने मुझे विजेता बनाया था ।
इससे यह बात तो साबित हो ही जाती है कि बापू के फोटो के सामने कही गयी बात उन तक तुरंत अवश्य पहुँचती है । मुझे आये इस अनुभव से मैं इतना आनंदित हो उठी थी कि सवेरे का झगड़ा भूलकर मैंने पिताजी को यह सारा अनुभव बताया । उन्हें आनंद तो हुआ लेकिन मुझे इस तरह बापू के फोटो के सामने खड़े होकर पैसे मांगने पड़े इस बात का उन्हें कष्ट हुआ । उन्होंने उस दिन मुझे एक सुंदर सीख दीं- ‘‘मुझे इतने पैसों की जरुरत है अथवा अमुक चीज की आवश्यकता है ऐसा सद्गुरु से कभी भी नहीं कहना चाहिये । हमारे लिये क्या उचित है और क्या नहीं और उसे हमें कब देना है, यह सब सद्गुरु हमारी तुलना में ज्यादा जानते हैं । अतः ‘देवा सद्गुरुराया, मेरा ख्याल रखना तथा तुम्हें जो उचित लगे वहीं मुझे देना ।’’ इतना ही सद्गुरु से कहना चाहिये ।’’ पिताजी ने यह बात समझाई। उस दिन के बाद से उस तरह की माँग मैंने कभी नहीं की । परंतु तभी से बापू मुझे मेरे पिताजी की ही तरह नजदीकी लगने लगे । मैं अब अपनी सारी समस्याएं, मेरे मन की सारी बातें, उनके फोटो के सामने खड़ी रहकर ही उन्हें बताती हूँ । अब तो बापू से मेरी एक ही प्रार्थना है कि मुझे और मेरे परिवार को इस जनम में व मृत्यु के बाद भी अपने चरणों में ही रखना, बस......... बापूराया मुझे और कुछ नहीं चाहिये !
॥ हरि ॐ ॥