॥ हरि ॐ ॥
सन 2011 की दीवाली से पहले की घटना है । पिछले कुछ दिनों से हमारे घर में कुछ पनौती सी लग गयी थी । घर में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था । चारों ओर से समस्याएं ही समस्याएं दिखायी पड़ रही थी । इसके पहले ही इंजिनियरिंग के तीसरे वर्ष में मुझे ड्रॉप लेना पड़ गया था । साथ ही साथ मित्रों-सहेलियों में मनमुटाव, घर में भी कहा - सूनी से मैं पूरी तरह तंग आ चुकी थी । मुझे ऐसा लगने लगा था कि अपना कहीं कोई भी नहीं है । बापू की उपासना, हनुमान चलीसा इत्यादि का पठन चल रहा था । दीवाली के तीन दिन पहले मेरे घर में झगडा हो गया ।
इस झगडे के कारण दिमाग में एक विचित्र विचार चक्र शुरु हो गया था । ‘‘सभी लोग मुझसे दुर्व्यवहार करते हैं, मित्र-सहेलियाँ, परिवारवाले किसी को भी मेरी चिंता नहीं थी । हर कोई मुझे सताने का ही काम कर रहा है । अब तो जीने का कोई मतलब ही नहीं रह गया है । घर में मेरी कोई कीमत नहीं रह गयी है इत्यादि । बापू के फोटो के सामने बैठकर खूब रोयी । मैंने कहा, ‘‘आपको तो सब पता चलता ही है ना ! तो फिर आप ही कुछ कीजिए ना ! इसमें मेरी कोई गलती नहीं है । यह तो आपको भी पता है । तो फिर फोटो में सिर्फ देखते ही क्यों बैठे हो ? ऐसा लगता है कि शायद आप भी मुझसे नाराज हो गये हो ।’’ कुछ इसी प्रकार (आज याद आने पर शर्म महसूस करती हूँ)
और मैं ऐसी बडबड तक ही नहीं रुकी बल्कि मानों उन्हें आव्हान ही दिया कि, ‘‘आप मुझसे नाराज नहीं हो, यह आपको साबित करना ही होगा । जब-जब मैं आपसे झगडती हूँ तब तब उसके बाद मैं ही हमेशा आप से बात करने के लिये आती हूँ ना ! हमेशा मैं ही क्यों तुम्हारे फोटो के सामने बैठकर इस प्रकार की ‘वन-वे’ (एकतर्फी) बड़ बड़ (बातचीत) करूँ ? ऐसा अब नहीं होगा, आपको भी मुझसे बोलना ही पड़ेगा ।’’
इस तरह की बड़बड़ करने के बाद मैंने निश्चय किया कि जब तक बापू स्वयं मुझे किसी न किसी माध्यम से यह नहीं बताते की, ‘वे मुझपर नाराज नहीं हैं और चाहे कोई अन्य मेरे साथ हो या ना हो वे अपनी इस बेटी के साथ सदैव रहेंगे ही;’ तब तक बापू से मैं नहीं बोलूँगी । मेरे घर के हर कमरे में बापू का फोटो है । आते-जाते उनउन कमरों में लगे बापू के फोटो को ‘हाय’ करने की, उनसे अपने मन के विचारों को व्यक्त करने की मेरी आदत है । यह सभी तीन दिनों तक बंद था । मेरे कम्प्युटर परभी नंदाई-बापू का ही फोटो है । मैं उनमें से नंदाई से ‘हरि ॐ’ कहती थी परंतु बापू से बिल्कुल नहीं । उनके ओर जानबूझकर देखती भी नहीं थी । (मानो यह बापू को ही सजा थी) इस बीच मैंने फोटो की साफसफाई भी की मगर बापू की ओर देखा तक नहीं । यद्यपि ऐसा सब करने का कोई मतलब नहीं था फिर भी मैं जिद के कारण ऐसा कर रही थी ।
इस तरह तीन दिन बीत गये, कुछ भी नहीं हुआ ........ अब तो मुझे रोना ही आ रहा था । मुझे यह विचार आया कि बापू भी मुझसे नाराज है । ‘‘उन्हें क्या उनके तो हजारों भक्त हैं, यदि मैं अकेली नहीं रहूँगी तो भी उन्हें क्या फर्क पड़नेवाला है ।’’ ऐसे मन में आये विचारों के कारण मैंने उनसे बोलना बंद कर दिया । परंतु नंदाई के साथ मेरा संवाद चल ही रहा था । ‘बाबा’ (बापू) की शिकायत करना शुरु ही था । ‘अब दीवाली शुरु होने वाली है । सभी लोग आनंदित होंगे और मैं मात्र .................! मेरा एकमेव ‘मित्र’ मुझसे बात भी नहीं कर रहा है ...............(नंदाई से) इत्यादि इत्यादि शिकायतें शुरु ही थी ।
अंततः मेरा धैर्य टूटने लगा । तीसरे दिन रात में मैंने ‘उनसे’ गुस्से में ही कहा, ‘‘यदि साक्षात मिलकर बात नहीं कर सकते हों तो कम से कम सपने में तो बात कर सकते हो ना ?’’ और मन ही मन रोती हुयी मैं वहाँ से चली गयी ।
उसके बाद घर के एक कमरे में बैठकर मैं और मेरी माँ बापू की उपासना कर रहे थे । तभी मेरा भाई दौडते हुये अंदर आकर बोला, ‘‘बापू आये हैं !’’
मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था, परंतु जब मैंने पीछे मुडकर देखा तो वास्तव में बापू ! वहीं सफेद शर्ट, काली पेंट, वहीं मधुर मुस्कान ! मैंने उनके चरणों पर सिर रखा । माँ ने भी आशिर्वाद लिया । मैंने बापू से कैसा बर्ताव किया था, यह सोचकर मैं शर्म से गड़ी जा रही थी । थोडी देर में वे जाने के लिये निकले । हम उन्हें छोडने के लिये दरवाजे तक गये । मैंने उनसे धीरे से कही कहा, ‘‘आय लव्ह यू बाप्पा !’’ उन्होंने भी हम सबसे कहा, ‘‘आय लव्ह यू टू !’’ फिर जीना उतरने के बाद पीछे मुडकर एक मधुर मुस्कान देते हुये वे फिर बोले, ‘‘आय लव्ह यू ।’’
अब मुझे उनके द्वारा सभी भक्तों को दिये गये वचन याद आने लगे, ‘‘मैं तुम्हारा कदापि त्याग नहीं करुँगा ।’’ उसके बाद मुझे याद आया पिछले कुछ दिनों में उनसे गुस्से में मेरा बोलना और अंत में - ‘सपने में तो बात कर सकते हो ना ?’’ यह वाक्य याद आया और ..........
.......... और अचानक मेरी नींद टूट गयी । यह सुंदर सपना अब मेरे चारों ओर चक्कर काट रहा था । आँखों से गंगा-यमुना बह रही थी । धनत्रयोदशी का दिन था । प्रातःकाल स्वप्न में बापू मेरे घर आये वो भी उनके असंख्य भक्तों में से एक उनकी बेटी की जिद पूरी करने के लिये .............. इससे बढकर त्योहार की सुंदर शुरुआत और क्या हो सकती है ?
‘‘आय लव्ह यू, बाप्पा !’’
॥ हरि ॐ ॥