॥ हरि ॐ ॥
सदगुरु श्री अनिरुद्ध उपासना केंद्र, विक्रोली (पूर्व) के साल 2002 के वार्षिकोत्सव के दिन से प.पू. बापू ने मुझे अपनी सेवा में शामिल कर लिया। या फिर श्री साईसच्चरित में श्री साईनाथ के वचनानुसार (मेरा भक्त दुनिया में कही भी किसी भी कोने में क्यों न हो, चिडिया के बच्चे को जैसे पैर में धागा डालकर खींचते है; वैसे मैं खींच लेता हूँ।) बापू ने मुझे अपने पास ले लिया फिर मैं बापू की इच्छानुसार संस्था के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने लगा।
सन 2004 में ‘अनिरुद्ध समर्पण पथक’ द्वारा आयोजित ‘‘गणपति पुनर्विसर्जन सेवा’’ हेतु हमारे केंद्र के मित्र दादर चौपाटी पर एकत्रित हुए थे। आधी - अधुरी विसर्जित मुर्तियों को हमने इकठ्ठा किया और उन्हे एक बडी सी बोट में रखकर अंदर गहरे समंदर में विसर्जित करना था। जिन्हे तैरना आता था उन्हे बोट में चढने हेतु कहा गया। मुझे अच्छी तरह से तैरना आता था अत: मै भी उस बोट में चला गया । दो राऊंड पूरे होने तक चार बज चुके थे। हमारे केंद्र के एक स्वयंसेवक ने कहा कि आज उपासना है और साउंड सिस्टम लगाने के लिये कोई भी नही है अत: हमे निकलना पडेगा। मुझे बोट से उतरने को कहा गया। बोट बडी होने से गहरे पानी में खडी थी। मैने भी बिना अंदाज लगाये पानी में छलांग लगा दी। पानी गहरा था परंतु मैने जहाँ छलांग लगायी वहां बालु का एक टीला था । मेरे दोनो हाथ उस पर जाकर टकराए, उस क्षण मानो मुझे ब्रम्हांड याद आ गया।
बाद में मै होश मे था पर कुछ भी कर पानी से ऊपर नही आ पा रहा था। वहाँ उपस्थित स्वयंसेवकों ने उठाकर मुझे पानी के ऊपर लाया। मुझे प्रतित हुआ मानो मेरे गर्दन के नीचे का हिस्सा काम ही नही कर रहा है। वहॉ उपस्थित डॉक्टरने मेरे पैरों को मसाज किया पर मेरे पैरों को कोई संवेदना नही हो रही थी।
तभी हमारे उपासना केंद्र के प्रमुख सेवक श्री शरदसिंह लाड अपने पेन में रखी उदी मेरे जीभ पर रखी और सर पर लगायी। उदीका स्पर्श होते ही मानो मेरे शरीर में करंत ही दौड गया। और अचानक जैसे संवेदना जागृत होकर मै खडा हो गया। सब मेरी तरफ हैरानी से देखने लगे। मुझे पूछने लगे तुम सचमुच ठीक हो न? मै उन्हे मजे में बोल ठीक ? मै तो अब दौड भी सकता हूँ।
केंद्र के दूसरे लोगो के साथ मै शिवाजी पार्क पर स्थित बस स्टॉप तक आया तो अचानक मेरे दोनो हाथों में दर्द उठा। मेरे मित्र ने तुरंत आयोडेक्स लगाया। हम बस में बैठ विक्रोली आ गये। तब तक मेरा दर्द बढ चुका था। अत: मेरे मित्र प्रबोधसिंह मोरजे मुझे हमारे विभागीय डॉक्टर के पास ले गये। डॉक्टर को सब घटना बताने पर उन्होंने हमे स्पेशालिस्ट के पास जाने की सलाह दी। स्पेशालिस्ट डॉक्टर ने मुझे चेक किया और कहा, ‘‘तुम यहा तक पहुचे कैसे?’’ मैने कहा, ‘‘बस से’’ यह उत्तर सुनकर वह आश्चहर्यचकित हो गये। उन्होंने कुछ इंजेक्शनस दिये और मै घर आकर सो गया। रात में उपासना केंद्र के सारे लोग घर आ गये। सब बताने पर उनके सुझाव अनुसार मै दूसरे दिन सुबह 9 बजे घाटकोपर के डॉक्टर रमणसिंह उमराळकर के पास चेक अप के लिये गया। उन्होंने तुरंत एम. आर आय करने के लिये कहा। एम. आर. आय. में पता चला की रीढ की हड्डी में सी-3 व सी-4 में गॅप आ गयी है।
बाद में पाँच दिनों तक मैने हॉस्पिटल में ट्रिटमेंट ली। उसी दौरान डॉक्टर ने मेरे सारे रिपोर्टस देख कर मेरे घरवालों को कहा कि वास्तव में बापु ने इसे बचाया है क्योंकि गर्दन में लगे झटके से यह जीवनभर अपाहिज हो सकता था। या मुर्गी कि गर्दन मरोडने से वह जिस प्रकार तडपती रहती है, वैसी इसकी अवस्था हो सकती थी। तब मुझे डॉक्टर द्वारा पूछा गया पहला प्रश्ने याद आया ‘‘तुम यहाँ तक कैसे पहुचे?’’
वास्तव में मैने लापरवाही से बिना अंदाजा लिये, पानी में छलांग लगाने के बावजूद बापु ने मुझे इस बडे संकट से उबार लिया था। संस्था की उदी मेरी जीवनदायिनी थी।
उस क्षण शायद मौत मेरे सामने थी परंतु मेरे बापू हम दोनों के बीच दृढता से खडे थे मुझे मृत्यु के दरवाजे से खींचकर लाने के लिये। बापू ! आपके द्वारा दिये गये इस जन्म का उपयोग अब केवल आपके कार्यों के लिये ही हो, यही आपके चरणों में प्रार्थना।
एका जनार्दनी भोग प्रारब्धाचा,
परी श्रीहरी (बापू) कृपे त्याचा नाश आहे॥
॥ हरि ॐ ॥