॥ हरि ॐ ॥
‘ॐ मनःसामर्थ्यदाता श्री अनिरुद्धाय नमः’ इस मंत्र के साथ मैं अपना अनुभव लिख रहा हूँ । इस मंत्र में स्थित सामर्थ्य और नाम अर्थात मेरे अनिरुद्ध और मंत्र के नामस्मरण के कारण प्राप्त बल; और यही है बापू की लीला से मुझे मिला हुआ दूसरा नवजीवन !
मैं दिसम्बर 2000 से प.पू. बापू के सत्संग में आने लगा । जून 2011 में मेरे जीवन में एक भयानक घटना घटी । परंतु उस प्रसंग से बापू ने मुझे सहजरुप से पूर्णतः बाहर निकाल लिया ।
शनिवार दि. 4 जून 2011 के दिन मुझे सर्दी और खाँसी की तकलीफ शुरु हुई । परंतु किसी वजह से मैं डॉक्टर के पास नहीं जा सका । दूसरे दिन रविवार होने से डॉक्टर नहीं थे । मैंने अपने एक डॉक्टर मित्र से दवाईयाँ ले ली । दो दिन पश्चात जब मैं अपना दैनंदिन व्यायाम कर रहा था, तब मुझे दम (साँस फूलना) लगना शुरु हुआ । मुझे लगा सर्दी खाँसी की वजह से ऐसा हो रहा होगा । अतः मैंने अपना व्यायाम जारी रखा ।
14 जून को हमारी प.पू. बापू के साथ एक मीटिंग थी । तब मैंने बात करते करते बापू को बताया कि मुझे व्यायाम करते समय साँस लेने में तकलीफ हो रही है, दम फूल रहा है । तब बापू बोले, ‘‘मुझे पता है । मैं बाद में तुम्हें दो व्यायाम बताऊँगा ।’’ यह कहकर बापू ने मेरी पीठ पर हाथ रखकर सहलाया और वे मुस्कुराते हुए निकल गये ।
मैंने अपना रोज का व्यायाम चालू रखा, परंतु दिन ब दिन मुझे अधिक तकलीफ होने लगी । साँस फूलती थी और साथ ही पीठ पर ऐसा महसूस होता था मानो कुछ काट रहा है । यह अहसास भी बढ़ता चला गया । 17 जून के रोज मेरी तकलीफ असह्य होने लगी और मैं ऑफिस नहीं जा पाया । शायद व्यायाम से हो रहा है सोचकर मैंने व्यायाम करना भी बंद कर दिया । परंतु बाद बाद में मुझे चलते समय भी सांस फूलने की तकलीफ होने लगी । 20 जून के दिन मैं बहन के घर से ऑफिस जाने के लिये निकला तो मैं कांदिवली स्टेशन का पूल (ब्रीज) भी नहीं चढ पा रहा था । किसी तरह मैं वहाँ चढ़ा पर ऑफिस न जा के घर आ गया । शाम को प.पू. बापू के साथ मीटिंग थी, अतः घर पर ही दिनभर आराम किया । शाम को मिटींग शुरु हुई । पर मेरा ध्यान नहीं लग रहा था । क्योंकि मेरी पीठ में मुझे जोर से काटने का एहसास हो रहा था । साथ ही मेरी साँस भी काफी फूल रही थी ।
मीटिंग में बापू बीच बीच में मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे । मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था । मीटिंग खत्म होने के बाद मैं ने बापू से कहा कि मुझे बहुत तकलीफ हो रही है । तब बापू ने मेरी पीठ पर हाथ रखकर कहा कि, ‘‘कल शाम जाकर सुचितदादा से मिल लेना । मैं उनसे बात करता हूँ ।’’ इतना कहकर पीठ सहलाई और निकल गये । मैं रात को घर आया । उस राम मुझे एक अजीब सपना दिखाई दिया । मैं ऐसी जगह हूँ जहाँ सब ओर शुभ्र प्रकाश है, मेरे शरीर पर शुभ्र सफेद कपड़े हैं, कहीं से बापू का हाथ आता है और मेरे शरीर के सफेद कपडे निकाल कर मैले कपडे मुझ पर चढ़ाते है । कुछ ऐसा ही अजीब सा स्वप्न ! मैं उस समय कुछ भी समझ न पाया ।
दूसरे दिन मंगलवार दि. 21 जून को मैं सुचितदादा के क्लीनिक में गया । तब दादा आये न थे । डॉ. शिवानंद नीचनाकी ने मुझे जाँचा और उस समय की मेरी हालत देखकर एक्स-रे और ईसीजी निकालकर आने को कहा ।
यह सब कर जब सुचितदादा ने देखा तो मुझे कहा कि शायद दो दिन के लिये मुझे हॉस्पिटल में ‘अंडर ऑब्जर्वेशन’ रहना पड़ेगा । परंतु उससे पूर्व कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. हरिश मेहता के पास जाकर उनको दिखाना होगा । मेरे साथ दादा ने राजेन्द्रसिंह डिंगणकर को भेजा । डॉ. मेहता ने मेरे सारे रिपोटर्स चेक किये और मुझे भी चेक किया व तुरंत नानावटी हॉस्पिटल में आईसीसीयू में भर्ती होने को कहा व साथ में लेटर भी दिया । वह लेटर लेकर मैं फिर दादा के पास आया । दादा ने लेटर देखकर मुझे तुरंत एडमिट होने को कहा और मुस्कुराकर बोले, ‘‘हॉस्पिटल से आने के बाद मुझे मिलने फिर आना ।’’ उन्होंने मेरे साथ राजेन्द्रसिंह डिंगणकर और हेमंतसिंह म्हात्रे को भी भेजा । इन दोनों के साथ मैं नानावटी हॉस्पिटल में एडमिट हो गया । सबसे पहले यह पता चला कि मुझे न्युमोनिया हो गया था । परंतु डॉ. हरिश मेहता को मेरे ईसीजी में गड़बड दिखाई दी थी । अतः उन्होंने 2-डी एको कराने को कहा । वह नॉर्मल आया । डॉक्टर ने मुझे छाती का सीटी स्कैन करने को कहा । पैसों की व्यवस्था होने में विलंब हो गया था । अतः दो दिन बाद मुझे जनरल वॉर्ड में भेज दिया गया । 23 जून को दोपहर 2 बजे डॉ. मेहता मुझे देखने आये । रिपोर्टस् देखकर उन्होंने पुनः ईसीजी व सीटी स्कैन करने को कहा । तब मुझे ज्यादा ही बेचैनी हो रही थी । मैंने पंचमुख हनुमान कवच, क्लेशनिवारक स्तोत्र, और मातृवात्सल्यविंदानम् के एक अध्याय का पठन किया और अंजनामाता बही का एक पन्ना लिखा । शाम को जब खाना आया तब नर्स मुझे इंजेक्शन देने आई । आज पहली बार इंजेक्शन लेते समय बहुत ही दर्द हो रहा था । मैंने उसे बताया तो उसने इंजेक्शन आधा ही छोड दिया । अचानक मुझे जोर से जी मिचलाकर चक्कर आया और मैं बेड पर गिर गया । 15 मिनिट बाद मुझे होश आया और थोड़ा ठीक महसूस हुआ । मैंने खाना खाया और शांत होकर बैठा । थोडी देर बाद नर्स ने मेरे दाँये हाथ पर इंजेक्शन दिया । मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था । इतने में मुझे फिर से चक्कर आया और मैं नीचे गिर गया ।
मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था । मेरी दाहिनी आँख और बाजू पूर्णरुप से मानो बंद हो गई थी । साँसे इतनी जोरों से चल रही थी कि कभी भी बंद पड़ सकती थी । मेरी बाँयी आँख से मुझे धुँधला सा दिखाई दे रहा था और थोडा सुनाई भी आ रहा था । डॉक्टर मेरी बहन से कह रहे थे, ‘‘हम कुछ नहीं कह सकते, कभी भी कुछ हो सकता है । आप अपने रिश्तेदारों को बुला लीजिये ।’’ मैंने जब यह सुना तो समझ गया कि मेरा अंतिम क्षण आ गया है । अब किसी भी समय मुझे मृत्यु आकर निगल लेगी । यह विचार इतना भयानक था कि मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता । परंतु मेरे मन में बापू का नामस्मरण निरंतर चालू था । मैं बापू से कह रहा था, ‘‘बापू ! इतनी जल्दी क्यों ? अभी तो मैंने कुछ भी काम नहीं किया । मैं आपके कार्य में सहभागी होना चाहता हूँ । कभी आप ही एक बार (मृत्यु के संदर्भ में) बोले थे नं ? कि ‘मरेंगे तो शान से’ फिर यह कैसी मृत्यु ? मुझे ऐसी मृत्यु नहीं चाहिए बापू !! इस तरह विचारों की नाव में मन डोलते डोलते एक क्षण ऐसा आया कि लगा ‘‘बापू ! आपकी इच्छा ! ’’ और मैं शांत हो गया ।
परंतु मन में एक और विचार आया कि मुझे बापू दिखाई क्यों नहीं दे रहे ? क्येांकि बापू ने ही कहा था कि तुम्हारे अंतिम क्षणों में मैं साथ रहूँगा । सामने रहूँगा ।! और भी आश्चर्य की बात यह थी कि हॉस्पिटल आने से पूर्व दादा ने कहा था कि, ‘‘हॉस्पिटल से आने के बाद मुझसे आकर मिलना ।’’ हम सब जानते हैं कि दादा का शब्द यानि पत्थर की लकीर । फिर यह सब क्या, क्यों हो रहा है? तब तक मेरी बाँई आँख भी बंद हो चुकी थी । मेरी साँस भी धीरे धीरे चल रही थी । कान से थोडा थोडा सुनाई दे रहा था । मुझे फिर से आईसीसीयू में शिफ्ट कर इलाज जारी था । रात 10.30 बजे मैं पूर्ण रुप से होश में आया । पिछले दो घंटों रक्तचाप 40 के भी नीचे था, ऐसा मुझे बताया गया । तब कोई भी इलाज न था, परंतु मुझे पूर्ण विश्वास है कि उस समय मुझे मृत्यु के द्वार से बाहर लानेवाला और असंभव को संभव बनानेवाला एकमात्र डॉक्टर था मेरा बापू !! वह तो मेरे साथ वहीं था ।
डॉ. हरिश मेहता ने पुनः सीटी स्कैन करने को कहा । सीटी स्कैन का रिपोर्ट बहुत ही डरा देनेवाला था । मेरी मुख्य रक्तवाहिनी (पल्मनरी एम्बोलिझम) में ही ब्लॉकेज था, और वह जिस भी रक्तवाहिनी में (पल्मनरी, कोरोनरी) जायेगा, उसके अनुसार हार्ट अॅाटॅक, पॅरेलिसीस या फेफडे नाकाम होना इत्यादि परिणाम हो सकते थे । सारी संभावनाएँ गंभीर स्वरुप की थी, इतनी बडी गंभीर बिमारी के बाद भी बापूकृपा से कुछ नुकसान नहीं हुआ था । मुझे खून पतला करने का इंजेक्शन दिया गया और डॉक्टर ने बताया कि इसका असर 6 घंटों में होगा और इस दरम्यान शरीर के किसी भी भाग से रक्तस्त्राव हो सकता है । परंतु बापूकृपा से ऐसा कुछ भी न हुआ !
मैं तो करीब करीब चला ही गया था । परंतु बापू मुझे मृत्यु के द्वार से वापस खींच लाये । मेरा मित्र अमितसिंह चव्हाण किसी काम से हॅपी होम के दूसरी मंजिल पर गया था । तब संजोग से उसे वहाँ बापू मिले । जब उसने बापू को मेरे बारे में बताया तो वे बोले, ‘‘बच गया साला’’ और हँसते हुए निकल गये ।
अस्पताल में मेरी मानसिक स्थिती से दुर्बल परिस्थिती में एकमेव सहारा सिर्फ बापू का था । एक हफ्ते में मेरी तबीयत में सुधार हुआ और मुझे घर भेजा गया । पाँच छः दिन बाद मैं सुचितदादा से मिलने गया । दादा ने मुझसे पूछा, ‘‘आप उपर हाथ लगा कर आये हो ! कैसा लगा ? कोई दिखा या नहीं ?’’ मैं कुछ भी प्रतिक्रिया न दे पाया । उन्होंने मुझे पूरा एक महिना आराम करने को कहा ।
एक महिने बाद मैं फिर क्लिनिक में प.पू. दादा से मिलने गया । उस दिन गुरुवार था । तब मुझे दादाने प्रवचन व प.पू. बापू के साथ अन्य मिटींगस् में जाने की इजाजत दी । अगले सोमवार को बापू के साथ मीटिंग थी । अस्पताल से आने के बाद मैं पहली बार बापू से मिलनेवाला था । बापू ने मुझे अपने पास बुलाया व सामने बैठने को कहा । मेरा हालचाल पूछा । डॉक्टर क्या बोले, कौनसी दवाईयाँ चल रही है, यह सब भी पूछा । मैंने बताया, ‘‘बापू ! जो मेरे साथ घटित हुआ है, अब मुझे उसका डर बैठ गया है ।’’ यह सुनकर बापू ने उनके दाँये हाथ में मेरा दाँया हाथ पकड़ा और मुझे उसे जोर से दबाने को कहा । ऐसा करने पर वे बोले, ‘‘बच्चे, कोई फिक्र मत करो’’ और मेरे सर पर अपना हाथ रखकर सहलाया ।
उसी मीटिंग में एक मित्र ने बापू को बताया कि, मंगेश बीमार होते हुए भी रोज शिवाजी पार्क पर जॉगिंग करने जाता था । तब बापू बोले, ‘‘जो व्यायाम उसने (मैंने) किया उसी कारण बिमारी का असर कम रहा, नहीं तो भयंकर घटित होता’’ मेरे मित्र ने पूछा, ‘‘बापू, मंगेश तो चला ही गया था नं ?’’ तब बापू बोले, ‘‘ऐसा होना संभव ही नहीं था ।’’ यही है मेरे बापू का अकारण कारुण्य !
आज मैं पूर्णरुप से ठीक हूँ । मेरे बापू के अकारण कारुण्य से मैं, मौत के दरवाजे से वापस आकर नया जन्म जी रहा हूँ । मुझे मेरे माँ-पिता का छत्र ज्यादा समय तक नहीं मिला था । परंतु मेरे जन्मजन्मांतर के माँ-पिता अर्थात बापू, आई और दादा !
बापू के पास आने के बाद मुझे अनेक अच्छी बातें प्राप्त हुई । उनमें से एक है, अपने बच्चों को कभी न त्यागनेवाले, मेरे अपने माँ-पिता (नंदाई-बापू) । और दूसरे हमारे ‘बल’ संघ के मित्र ! जो मेरे लिये भाग दौड़ कर रहे थे, उसी प्रकार आर्थिक मदद भी कर रहें थे, बापूकृपा से ही ऐसे जान देनेवाले मित्र प्राप्त हुए ।
‘एक विश्वास असावा पुरता, कर्ता हर्ता गुरु ऐसा’ ! हमें सिर्फ इस अनिरुद्ध पर विश्वास रखना है कि वही हमारे जीवन की गाडी को ‘आसानी से चला देता है।’
‘इतुके सोपे जीवन केले, बसल्या जागी देव आले।
उठून बसण्या दमलो नाही, हीच काय ती सेवा घडली।’
हमारे जीवन में आनेवाले असंख्य दुःखों का नाश कर सुखों की बाग लगानेवाला उसे महकाने वाला वह एकमेव कर्ता हर्ता बापू। बापू, नंदाई, दादा को सिर्फ एक ही बात मांगता हूँ,
तुम बिन गुरुजी मैं निराधार ।
अनाथ को मुझे देयोजी आधार ॥
बापूकृपा से यहाँ मैंने एक शेर लिखा है,
जीने मरने का डर किसको, जीना तो बापू ने सिखाया ।
मौत आती है तो आने दो, उसे तो एक दिन आना ही है,
हम तो खुशनसीब है, कुछ ऐसा कर के जायेंगे ,
मौत आने से पहले खुद बापू हमें लेने आयेंगे ॥
॥ हरि ॐ ॥