॥ हरि ॐ ॥
रामरसायन का एक वाक्य याद आता है कि ‘गुरुतत्व की रचना ही ऐसी होती है कि संकट आने के पूर्व ही सहायता की योजना तैयार रहती है’। इस कलियुग में भी सद्गुरु अपने भक्तों हेतु संकट काल में ऐसी लीला करता है हमें यह लीला संकट से बाहर निकलते समय समझ मे आती है ।
सन 2004 की बात है मेरे घर श्रीसाईसच्चरित का पठन संबंधित बैठक थी, उपासना केंद्र के कुछ नियत लोग घर आए थे, पर उनमें एक महिला ऐसी थी जिन्हें मैं जानती नहीं थी । वह बोली, ‘‘मैं पहले दूसरी जगह उपासना हेतु जाती थी व वह अभी अभी ही डोंबिवली में रहने आई हैं। कल केंद्र पर इस कार्यक्रम की सूचना पाकर वह यहाँ आई है ।’’ काफी समय श्रीसाईसच्चरित पर चर्चा के उपरांत वह महिला अपना अनुभव बताने लगी ।
हमारी संस्था में बापू प्रणित अंत्यविधि संस्कार की जानकारी हैं व इस महिला के पतिनिधन उपरांत उसी पद्धती से उनका अंतिम संस्कार किया गया । तब तक मुझे इस संबंध में कोई जानकारी न थी । मुझे उसके प्रति बडा अभिमान महसूस हुआ । परंतु यह मेरे लिए मेरे सद्गुरु ने जान बूझकर यह संदेशा मुझे भेजा था। यह बात उस समय मेरे समझ में न आई।
उस समय मेरे पति कानपुर में नौकरी कर रहे थे । 2005 में वह बीमार हुए डाक्टर उम्मीद छोड चुके थे । प.पू. बापूजी से पूछने पर संदेश आया, ‘‘शांत रहे व रामरक्षा कहते रहे’ तब मैंने भी मन की तैयारी की । पति की प्रदीर्घ बीमारी में केवल एक ही बार विचार आया कि इनका अंत्यविधि बापू प्रणित पद्धती से हो तो .......? परंतु इससे संबंधित जानकारी का दस्तावेज कहाँ व किससे मिलेगा? पता न था । मेरे ससुराल या मायके में कोई भी बापूभक्त न था। अतः उन्हें इस संबंध में कैसे समझाऊंगी, कौन वाद-विवाद करेगा, उनसे इस सारी बातों को देखते हुए मैंने वह विचार छोड दिया । मेरी बेटी बापूभक्त है लेकिन मैं इस विषय में उससे भी कैसे बात कर सकती थी ? इसलिए वह विचार छोड दिया था।
प्रतिक्षण हमारे साथ रहनेवाले हमारे सद्गुरु को हमारे मन के विचारों का पूर्ण ज्ञान होता है ।
दिसम्बर 2005 में मेरे पति का निधन हो गया । अस्पताल से शव को सीधे शमशान ले जाना तय हुआ । अतः घर में किए जानेवाले विधि रह गए किंतु उनके पास उदी रखने की प्रेरणा मेरी बेटी को बापू से ही मिली व लगा अब सब कुछ ठीक होगा । परिजनों के साथ अनेक बापूभक्त भी वहाँ उपस्थित थे । तभी एक परिजन ने पास आकर कहा ‘‘मंगलसूत्र निकालो ।’’
मन में विचारों का तूफान उठा । मैंने मंगलसूत्र निकालने से इन्कार कर दिया । दूसरी परिजन स्त्रियाँ कहने लगीं, ‘‘अपने यहाँ ऐसा नहीं चलता ।’’ मेरी एक बापूभक्त सखी ने कहा हमारे में चलता है । हम सब बापूभक्त एक ही जाति के हैं । मेरी उस सखी को क्रोध आना जायज ही था क्योंकि वह भी पति निधन के पश्चाात जैसी पहले रहती थी वैसी ही थी।
अंत्यविध की तैयारी शुरु थी, तभी मेरी बेटी ने पास आकर मुझसे पूछा, ‘‘एक बापूभक्त कह रहे हैं कि उनके पास अंत्यविधि संस्कार का दस्तावेह है लेकिन यहाँ लाया नहीं है । चाहिए तो घर से लाकर दे सकते हैं ।’’ ज्यादा जान पहचान न होते हुए भी इतना पूछना बापू की ही लीला थी । मन ही मन सोचा मेरे पति ने कभी बापू जी को नमस्कार नहीं किया, कभी उनका नाम नहीं लिया । ऐसे व्यक्ति के लिए भी आप इतनी परेशानी उठाते हो ! बीमारी के काल में पति से पादुकापूजन , सुंदरकांड श्रवण करवा लिया । अब यदि बापू आपकी इच्छा तो अंत्यविधि भी आपकी पद्धती से होने दो ।
बेटी से कहा उन्हें दस्तावेज लाने को कहो । लेकिन इतनी देर बाकी सब रुकेंगे ? लेकिन बापू ने तय कर लिया तो क्या बाधाएँ टिक सकेंगी ? मेरे भतीजे की परेल से आनेवाली ट्रेन लेट थी व उसका हम इंतजार कर रहे थे । व दस्तावेज लेने गए बापूभक्त एवं वह एक ही समय शमशान में पहुँचे ।
मेरे हाथ में वह कागज था व 100 से 150 बापूभक्त स्त्री-पुरुष उपस्थित थे । ऐसे में बापूजी ने मुझसे ये कार्य करवाया था । अनेक स्त्रियों ने बताया कि वे अपने परिजनों के अंत्यविधि में भी इससे पूर्व कभी नहीं गई थीं ।
इसके बाद सन 2008 के अधिवेशन में बापू ने जाहिर रुप से कहा कि जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार बापू प्रणित पद्धती से होता है उसका अगला जन्म बापूभक्त के रुप में होता है ।
॥ हरि ॐ ॥