॥ हरि ॐ ॥
मैं डॉ. शशांकसिंह होरे, अस्थिरोग विशेषज्ञ यदि मैं अपने सभी अनुभव लिखना चाहू तो हमारे कृपासिंधु मासिक पत्रिका के चार पाँच अंक कम पड जायेंगे ।
मैं सन 2008 में नास्तिक ही माना जाता था । कहने को साईबाबा पर विश्वास था साल में दो बार शिरडी जाता था । व्यवसाय से अस्थिरोग विशेषज्ञ होने के कारण कम उम्र में ही अच्छा पैसा कमा रहा था । अच्छा नाम, शोहरत सभी था । इसके साथ शराब व अखंड सिगरेट का व्यसन भी था ।
मेरी पत्नी सौ. मेधावीरा जो स्वंय एनस्थेटिक है । वह शुरु से ही बापूभक्त थी । प्रतिदिन रामनाम बही लिखती, उपासना करती थी । लेकिन मैं मात्र उसके बाबाजी से अप्रसन्न था, इस कारण घर में बाक्जी का फोटो न था, मैं पत्नी की उपासना व डॉ. अनिरुद्ध जोशी का मजाक बनाता था ।
मैं 1995 से अनकन्ट्रॉल्ड थायरोटोकोसिस का मरीज हूँ व 1999 में सस्पेक्टेड एक्ट्राथॉरायडल कैंसर होने पर मुझे मुंबई नायर अस्पताल में उपचार हेतु ले जाया गया वहाँ पर मेरे थायराइड ग्रंथी को पूर्णतः नष्ट कर दिया गया। उस समय मैं महाराष्ट्र के अकोला जिले के आकोट इस शहर में व्यवसाय करता था । व शहर का एक मात्र अस्थिरोग विशेषज्ञ होने के कारण दिन में 16-17 घंटे काम व साथ में दारु व सिगरेट का व्यसन था । 14 नवम्बर 2005 में मुझे तीव्र हृदयविकार का झटका लगा । तब मेरी उम्र मात्र 38 वर्ष थी ।
मेरी स्वंय की जबरदस्त इच्छा शक्ति के चलते मैं उस हालत में भी स्वंय गाडी चला, पत्नी के साथ सुबह 3.30 बजे डाक्टर के यहाँ पहुँचा । मुझ पर आपातकालीन उपचार के बाद मुझे आकोला लाया गया । व मैं दो दिन बाद होश में आया। तब मेरा हार्ट रेट 120 प्रति मिनट था । दो दिन से पेशाब नहीं हो रहा था । अब शायद नहीं बचूँगा इसलिए सभी रिश्तेदार व दोस्त जमा हो गए थे । दो दिन के बाद मुझे पेशाब हुई व तबियत में थोडी स्थिरता आने पर मुझे एन्जीओग्राफी के लिए नागपूर के वोकार्ड अस्पताल में डॉ. जगताप की देखरेख में भर्ति किया गया । इस दौरान पत्नी का क्लेशनिवारक व घोरकष्टोद्धरण स्तोत्र का अखंड स्तवन चालू था ।
एंजिओग्राफी से पता चला मुख्य धमनी में 100% ब्लॉक हैं व इको में हार्ट के सेप्टा व अपेक्स भाग में 80% क्षति हो चुकी थी, परिस्थिति को मद्देनजर रखते हुए एंजियोप्लास्टी या बायपास किसी का फायदा न था । मुझे आवश्यक निर्देश व उपचार देकर भगवान भरोसे घर जाने को कहा गया ।
उसके बाद मैंने 1 माह नागपूर में पूरा आराम किया । इसी दौरान वहाँ लक्ष्मीनगर में सुयोग मंगल कार्यालय में बापूजी का कार्यक्रम था मेरी पत्नी वहाँ गई थी व वापस आने पर उसने मुझे नींद में निश्चित ही उदी लगाई होगी ।
मैं एक स्थान पर चुपचाप बैठनेवालों में से नहीं था । महिने भर में ही काम पर जाना शुरु कर दिया । मेरे पेशे में हड्डी को जगह पर लाने ऑपरेशन रॉड डालने में शारीरिक ताकत लगती थी अब मैं इस सबसे थक जाता । मुझे दूसरे डॉक्टर को ऑपरेशन हेतु अकोला से बुलाना पडने लगा । मेरा आत्मविश्वास कम होने लगा । ज्यादा काम मुझसे नहीं होता था । रात के अपघात के केस लेना बंद किया । जिससे मरीजों को एवं घर में परिवार जन नाराज थे।
2006 में फरवरी में शिरडी गया तब साईबाबा के दर्शन के बाद दूसरे गाँव में स्थलांतरण का निर्णय लिया । 10-12 सालों की प्रॅक्टीस व घर छोड दूसरे शहर जाने के निर्णय पर पत्नी व परिवार साथ न था । परंतु अपनी जिद पर 22 फरवरी 2007 में खंडवा (मध्यप्रदेश) में आया । पत्नी मेरे निर्णय से नाराज ही थी उसे खुश करने के लिए मैंने क्लिनिक का नाम अनिरुद्ध कृपा रखा अभी भी बापू पर मेरा विश्वास था ही नहीं ।
प्रॅक्टीस जमने हेतु आवश्यक प्रयत्न तो मैं कर रहा था । लेकिन अपनी तबीयत पर भी बिलकुल पूरा ध्यान दे रहा था । रोज सुबह की सैर में 50 मिनट में 5 कि.मी. चलता था व मेरा वजन भी 98 किलो से घटकर 65 किलो पर आ गया था ।
आपको लग रहा होगा, इतने बडे हृदयविकार झटके से बचा स्थलांतरित हो गया सब ठीक चल रहा था बापूजी इसे कितने आशीर्वाद दिए होंगे । प्रश्न ही नहीं उठता दिए ही लेकिन असली चमत्कार इसके बाद हुआ । सन 2008 में शिरडी मैं साई का दर्शन लेकर बाद में संगनेर में मित्र के बेटी की शादी में शामिल हो 29 जनवरी को मुंबई पहुँचा । दूसरे दिन पत्नी ने फोन करके रामनाम बही लाने को कहा । इसका मुझे गुस्सा आया था । परन्तु हॅप्पी होम जाना पडा । उस गुस्से में ही वहाँ 100 रामनाम बही माँगने पर पूछा कि किस केंद्र के लिए चाहिए तो गुस्से में ही जवाब दिया, ‘‘किसी केंद्र के लिए नहीं, स्वंय के लिए चाहिए ।’’ तब स्टोर्स सेवक ने बताया कि 100 बहियाँ अभी उपलब्ध नहीं हैं । आप ऊपर वैभवसिंह से मिलकर आओ तब तक व्यवस्था हो जाएगी । अतः मैं उनसे मिलने गया ।
वह वैभवसिंह से मेरी पहली भेट थी । अच्छी खासी 2 घंटे की चर्चा हुई । मोबाइल नंबर का आदान प्रदान हुआ व मैं बहियाँ लेने नीचे गया । मैं अपने ही विचारों में था । तभी एक विचार आया मैं 50 मिनट में 5 कि.मी. चलता हूँ क्यों न दौडना शुरु करुँ ? व उसी क्षण बापू से नजर मिली व उन्होंने मुझे अपनी आश्वस्त मुद्रा में हाथ दिखाया । वहीं क्षण मेरे जीवन को व्यवस्थित बनाने में सक्षम हुआ ।
आरती के बाद मैं रामनाम बही ले रहा था, तभी वैभवसिंह का फोन आया कि क्या मैं सिर्फ एक दिन वहाँ रुक सकता हूँ । अगले दिन गुरुवार 31 जानेवारी 2008 का था । बापूजी के प्रवचन का दिन । अगले दिन मैं पूर्णतः यंत्रवत श्रीहरिगुरुग्राम पहुँचा ।वहाँ पहुँचने पर वैभवसिंह को फोन किया उन्होंने मुझे अंदर लिया व पुष्पवृष्टी हेतु फूल भी दिए ।
गजर के साथ बापू का आगमन हुआ । बापू व मेरी नजर मिली और उनके चेहरे पर वहीं हंसी थी ।
बाद में उसी रात मैं खंडवा के लिए रवाना हो गया व धीरे धीरे दौडना प्रारंभ किया । चार माह में 50 मिनट दौडने लगा अब बापू का फोटो क्लिनिक में आया । रोज नमस्कार करने लगा व अब मैं दौडने के साथ वेट लिफ्टिंग का व्यायाम भी करने लगा । व्यायाम के समय ‘ॐ मनःसामर्थ्यदाता श्रीअनिरुद्धाय नमः’ जप करता ।
इसी दौरान बुरहानपूर (म.प्र) के उपासना केंद्र के श्री पाठक जी व श्री सावदेकर मेरी क्लिनिक का बोर्ड ‘अनिरुद्ध कृपा’ पढकर अंदर मुझसे मिलने आए । बाद में पत्नी की रामनाम बही जमा करने के निमित्त से पाठक जी के घर जाने का संजोग हुआ व मुझे पहली बार पादुका के दर्शन हुए मैंने रामनाम बही लिखना आरंभ किया । (आज तक मेरी 126 बहियाँ पूर्ण हुई हैं )
कार्तिक एकादशी (मेरे बेटे का जन्मदिन) इंदौर से श्री अंसल जी सिकरवारजी लोखंडे जी विशाल जी आदि लोग ओंकारेश्वर में पादुका विसर्जन कर खंडवा में मेरे घर आए व उसी दिन से मेरे घर उपासना आरंभ हुई । जो अब भी जारी है ।
दरमियान म.प्र. के केंद्रों को मुंबई हॅप्पी होम में समीरदादा व वैभवसिंह ने बैठक बुलाई थी । बैठक के बीच आरती का समय हुआ तो हमें नीचे श्रीगुरुक्षेत्रम् में भेजा गया । मुझे सबसे आगे बापूजी के सामने बैठने का मौका मिला । भयंकर गर्मी के चलते 4-5 लोग चक्कर आकर गिरे उन्हें तुरंत हॅप्पी होम क्लिनिक में ले जाया गया । कुछ देर बाद पुनः किसी को चक्कर आने लगी । मेरे अंदर का डॉक्टर मुझे चुप बैठने नहीं दे रहा था । मैं बापू के सामने से खडा हुआ व सेवा में लग गया । बाद में ध्यान आया, ‘अरे, मैं बापू के सामने उठकर आया । बापू नाराज तो न होंगे ?’’ मैं इस विचार से त्रस्त था । तत्पश्चात मिटींग पुनः प्रारंभ हुई । व उसके बाद समीरदादा ने मुझसे पूछा, ‘‘डॉक्टर आप कोल्हापूर मेडिकल कॅम्प में आना चाहते हैं ?’’ मुझे जो समझना था समझ गया ।
तब मैं कोल्हापूर मेडिकल कॅम्प व ब्लड डोनेशन कॅम्प में भी आने का प्रयत्न करता हॅूं ।
ऐसा मेरा बापू तिरस्कार से बापूभक्ति तक का प्रवास है ।
आज मैं 50 मिनट दौडता हूँ । 40 कि.मी. व्यायाम की साइकल चलाता हूँ । ‘ॐ मनःसामर्थ्यदाता ..’ जप करता हूँ । त्रिपुरारी त्रिविक्रम लॉकेट गले में सदा रहता है । बापू की उदी तो मुझे साक्षात संजीवनी ही लगती है । कोई भी शल्यक्रिया के समय ‘बापू आप साथ रहो’ यह कहे बिना ऑपरेशन थिएटर में प्रवेश नहीं करता।मेरा एक तिहाई हृदय क्षतिग्रस्त हो गया है और मैं 50 मिनट जॉग करता हूँ । कोई यकीन कर सकता है ? मेरे क्लिनिक का 13 फूट लंबा शटर स्वंय उठाता हूँ ।
मेरी पत्नी जो मेरे खंडवा स्थलांतरण से नाखुश थी, मेरे घर उपासना जिस दिन चालू हुई उस दिन बोली, ‘‘शायद आपके हाथों खंडवा में उपासना केंद्र चालू हो ऐसी बापू की इच्छा थी इसलिए ही हम खंडवा आए ।’’
मेरा अनुभव कथन का उद्देश्य बापू ‘नालायक से नालायक व्यक्ति’ को ठीक कर देते हैं व मेरे जैसे हृदयविकार झटका आए हुए लोगों से इतना ही कहना हैं बापू पर विश्वास रखें वो मेरी तरह आपको भी संपूर्णतः सामान्य जीवन प्रदान करेंगे ।
॥ हरि ॐ ॥