॥ हरि ॐ ॥
हमारी पिछली सोसायटी में एक परब नामक बुजुर्ग दम्पति रहते हैं। 13 जुलाई 2010 के दिन मेरी सहेली उमा कोदे द्वारा मुझे पता चला कि, परब चाचा पिछले तीने दिनों से घर नहीं लौटे हैं। यह सुनकर परब चाची मेरी नजरों के समक्ष घूमने लगी। उनके बारे में सोचते ही मन बेचैन हो उठा। इतने में उमा ने कहा, ‘‘मेरे पति सुचितदादा से मिले। दादा ने ‘दत्तबावनी’ का पाठ करने के लिए कहा है।’’ तो हम सब ने मिलकर रात के 9 बजे परबजी के घर पर दत्तबावनी का पाठ करने की ठानी। तदनुसार हम पति-पत्नी परबजी के घर पहूँचे तो वहाँ पर उमा और अन्य लोग दत्तबावनी का पाठ शुरु कर चुके थे। मैं परब चाची को उनके पूजा घर तक ले गई। अपनी संस्था की उदी मँगवाकर बापूजी से प्रार्थना की - ‘‘हे पांडूरंग, बापूराया, अनिरुद्ध परब चाचा जहाँ कहीं भी हो उन तक यह उदी पहुँचाईए और उन्हें तुरंत सकुशल घर ले आइए।’’
फिर मैंने परब चाची का धीरज बँधाया कि, ‘‘आप अकेली नहीं हैं, बल्कि समस्त बापूपरिवार आपके साथ है। आप भी निरंतर नामस्मरण कर ही रही हैं, तो बापू चाचाजी को सकुशल अवश्य ले ही आएँगे।’’ ऐसा कहकर हम हॉल में आ गए। मैंने कहा, ‘‘अब हम सब मिलकर एक बार ‘संकटमोचन हनुमानष्टक’ पढेंगे।’’ यह स्तोत्र पढकर हम ने पुस्तिकाएँ रखी ही थीं कि फोन की घंटी बजी। परब चाची ने फोन उठाया और बोलते- बोलते उनका गला रुंध गया। वे केवल इतना ही बोल पाईं - ‘ठीक हैं ना? ठीक हैं ना?’ इस से अधिक वे बोल ही नहीं पाईं।
बाद में हमें पता चला कि नवी मुम्बई रबाले पुलिस स्टेशन से ठाणे के नौपाडा पुलिस स्टेशन को फोन किया गया था कि ‘दो युवा लडके परब चाचा को रबाले पुलिस स्टेशन ले आए हैं। आप आकर उन्हें घर ले जाइए।’ यह सुनकर हमारी जान में जान आई। तुरंत मेरे पति शेखर उन्हें लाने के लिए रवाना हुए। वे कुशल थे यह सचमुच बापूजी की ही कृपा थी, क्योंकि, तीन दिनों तक बाहर रहने पर भी, उनकी दवाईयों के बगैर और भूखे पेट होने पर भी वे ठीकठाक थे। यह सचमुच अचरज की बात है।
ऐसा ही है मेरा भगवान, भक्तों के लिए निरंतर तत्पर। सचमुच, बापूराया, तुमने कितने कष्ट उठाए होंगे न! हमें इसी तरह अपने चरणों में रखकर अधिकाधिक भक्तिसेवा कराते रहना।
॥ हरि ॐ ॥