॥ हरि ॐ ॥
ज्याने धरिले हे पाय आणि ठेविला विश्वास ।
त्यासी कधी ना अपाय सदा सुखाचा सहवास ॥
(जिसने थामे यह चरण और रखा विश्वास, उस का कभी अपाय नहीं होगा, सदा सुख का साथ रहेगा।)
सचमुच जिस जिस ने अनिरुद्ध के चरण थामे और विश्वास रखा है, उसे अपाय हो ही नहीं सकता। अब तक अनेक अनुभवों द्वारा इस बात की साक्ष मिली है और अनेक भक्तों को मिल रही है।
पूज्य समीरदादा से मिलने के लिए हमें रविवार, दि. 9 जनवरी 2011 के दिन दोपहर के 12.00 बजे की अपॉइंटमेंट मिली थी। उसी दिन पंचशील परीक्षा का पुरस्कार वितरण समारोह भी था। इसलिए तेरह भक्तों का हमारा एक मंडल दादा से मिलने हेतु टेम्पो ट्रैवलर गाडी से जलगाँव से शनिवार दि. 8 जनवरी 2011 के दिन सुबह 8.00 बजे निकला। हमारा यह भी उद्देश्य था कि, वर्धमान व्रत के चलते गोविद्यापीठम, गुरुकुल (जुईनगर), साईनिवास और श्रीअनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम की तीर्थयात्राएँ भी कर लेंगे। इसलिए शनिवार को गोविद्यापीठम में रहने का तय हुआ। इस के अलावा रविवार को दादा के साथ मीटिंग के पश्चात शाम को पंचशील परीक्षा के पुरस्कार वितरण समारोह का आनंद भी उठाने का नियोजन था।
जलगाँव से निकलते समय हम सब ने व्रतपुष्प का पाठ एवं उपासना करके ही यात्रा आरम्भ की। हमारे साथ गाडी में एक महिला भक्त श्रीमती सुनिता तायडे को जलगांव से 44 कि.मी. दूर निकल आने पर मतली होने लगी। उसे उलटी कराने हेतु हम ने ड्राईवर से कहकर गाडी रुकवाई। श्रीमती तावडे पानी की बोतल लेकर नीचे उतरी, तब ड्राईवर भी गाडी के टायर्स चेक करने के लिए नीचे उतरा। पिछले टायर्स पर नजर घुमाकर वह तुरंत अपनी सीट पर जा बैठा। जैसे तैसे एक मिनट बाद गाडी के बाईं ओर का पिछला टायर अचानक फट गया और गाडी उस तरफ झुक गई। हम हक्काबक्का रह गए। ड्राईवर समेत हम सभी नीचे उतरे और देखा तो टायर लगभग 10 इंच फटा था।
रुकी हुई गाडी का टायर ऐसे अचानक किसी भी कारण के बिना फट जाने की वजह से ड्राईवर भी भौंचक्का रह गया। उस ने फोन करके गाडी के मालिक को यह खबर दी तो उसे भी इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था। उस मालिक ने दूसरी गाडी से नए टायर, ट्यूब भिजवाए।
अगर दौडती हुई गाडी का टायर फटा होता तो? 90-100 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से गाडी चलती और तब यह टायर फटता तो क्या हुआ होता? मन में यह विचार उठते ही रोंगटे खडे हो जाते हैं। उस पर हायवे पर रफ्तार से चलनेवाली गाडियाँ, एकतर्फा रास्ता....इन बातों का विचार मन में उठा। इस अनुभव से एक ही बात समझ में आती है कि, किसी भी संकट से बडा मेरा भगवान है, जो हमारा अगला पल अर्थात भविष्य भी जानता है। इतना ही नहीं, तो वह हमारे लिए हमारे जीवन में आनेवाले संकटों से पहले उपाय योजना भी करता है। इस बात को हम ने स्वयं अनुभव किया। घटना घटी और उसकी गंभीरता भी समझ में आई तो रोंगटे खडे हुए। इन विचारों से मन काँप उठा और सद्गुरुकृपा का अनुभव मन पर छाप छोड गया।
एक भक्त को मतली होती है, इसी बात का साधन सद्गुरु ने बनाया, क्योंकि इसके बाद पूरी यात्रा में किसी को भी कोई तकलीफ नहीं हुई। इतना ही नहीं, तो जब उलटी के लिए गाडी रुकी हुई थी तब भी श्रीमती सुनिता तायडे को उलटी तो हुई ही नहीं, वह केवल मुँह धोकर गाडी में आकर बैठने ही वाली थी कि उसी समय टायर फटने की आवाज सुनाई दी। यह सबकुछ कुल मिलाकर एक मिनट में ही घटा था।
हम सचमुच सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी के ऋणी हैं। उनका कृपाछत्र हम पर यूँही बना रहे और हम से अधिकाधिक भक्ति-सेवा और सेवा-भक्ति कराते रहें यही उनके चरणों में हमारी प्रार्थना है। दूसरे दिन अर्थात 9 जनवरी 2011 को पूज्य समीरदादा को हम ने यह अनुभव सुनाया तो उन्होंने कहा कि यह बापूजी की ही कृपा है, और कहा कि हम में से हरएक को 24 बार अशुभनाशिनी स्तोत्र का पाठ करना होगा।
जब जब हमें यह घटना याद आएगी तब तब हम कहेंगे, ‘अनिरुद्धा तेरा मैं कितना ऋणी हो गया।’
॥ हरि ॐ ॥