॥ हरि ॐ ॥
सन 2000 में जब मैं परमपूज्य बापूजी के पास आने लगी, तब उन्हीं दिनों मैंने बी.कॉम. पास किया था। बापूजी के पास आने से पहले मैं बातूनी थी, मगर अपरिचित लोगों से बातचीत करने से मैं हिचकिचाती थी। मैं अपने विचार अच्छी तरह से व्यक्त नहीं कर पाती थी। मगर परमपूज्य बापूजी द्वारा जारी सेवाओं में भाग लकेर आरै उनके प्रवचन सनुकर मैं स्मार्ट बनी। मेरा बापूजी के चरणकमलों में आना केवल एक संजोग की बात है। इस से पहले मैंने कभी भी ‘गुरु’ इस बात पर गौर नहीं किया था। सद्गुरु बापूजी के पास आने से पहले मैं अन्य लोगों की तरह ही भगवान की प्रार्थना किया करती थी।
जनवरी 2000 के बॉम्बे टाइम्स में मेरी माँ ने परमपूज्य बापूजी की जानकारी पढी और हम दोनों एक बार प्रवचन सुनने पहुँचे। उस दिन से हम पूरी तरह से बापूमय बन गए और हमारा उन पर पूरा विश्वास है। मैं उपासना केंद्र पर उपासना करने और प्रवचन सुनने जाने लगी; मानो बापूजी ने मुझे उनके पास बुला लिया हो। तब से हमें हररोज बापूजी के छोटे बडे अनुभव होते रहते हैं। पर इन में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण अनुभव मैं आज बताने जा रही हूँ जिस में बापूजी ने मेरे पिताजी के प्राण बचाए।
गुरुपूर्णिमा का दिन था। ठाकुर कॉम्प्लेक्स, कांदिवली में यह उत्सव मनाया जा रहा था। शादी से पहले मैं बोरिवली में रहती थी। उस दिन शाम के 4.00 बजे मैं और मेरी माँ उत्सव में शामिल होने के लिए निकलीं। ठाकुर कॉम्प्लेक्स पहुँचने पर ‘जनरल’ भक्तों की कतार इतनी लंबी थी कि हम कांदिवली हायवे पर कतार में खडे हो गए। तब मेरी माँ की उम्र 60 साल थी। अचानक एक डी.एम.वी. हमारे पास आकर बोला, ‘‘माँजी आप इतनी बडी कतार में न रुकें। आप आगे जाकर कार्यकार्ताओं से कहिए कि मैं बुजुर्ग हूँ इसलिए मुझे एक डी.एम.वी. ने सीधे अंदर जाने के लिए आगे भेजा है।’’
हम ने आगे बढकर गेट पर खडे एक कार्यकार्ता से यह बात कही तो वह बोला, ‘‘आप यहाँ से केवल स्क्रीन पर ही बापूजी के दर्शन कर पाऍंगे। आप बुजुर्ग होने की वजह से अंदर जाकर बापूजी के साक्षात दर्शन नहीं कर पाएँगी।’’ हम दोनों निराश हो गईं। हम वहाँ से सीधे चप्पल स्टैंड पर चली गईं। वहाँ पर एक अन्य कार्यकर्ता ने मेरी माँ की स्थिति देखकर हमें वी.आय.पी. कतार में लगा दिया। उस कतार से हम अंदर गएँ और हमें परमपूज्य बापूजी के बहुत अच्छी तरह से दर्शन हुए।
मुझे अब भी याद है कि उस वक्त इतनी भीड में भी बापूजी मेरी ओर देखकर मुस्कुराए थे। दर्शन के बाद मैं और मेरी माँ एक तरफ 10 मिनट खडे हो गए। हम बहुत खुश थे। तकरीबन शाम के 6.45 बजे हम घर पहॅुंचे। उस दिन पहली बार हमें बापूजी के दर्शन इतनी जल्दी हुए थे।
जब हम घर पहॅुंचे तब हमारे पडोसी ने हमें मुम्बई के लोकल ट्रेन्स के फर्स्ट क्लास डिब्बों में हुए बम विस्फोटों की जानकारी दी। यह सुनते ही मेरी माँ तो रोने लगी और मैं भी डर गई, क्योंकि, मेरे पिताजी हमेशा मुम्बई सेंट्रल से 5.45 की ट्रेन से आया करते थे और वह भी फर्स्ट क्लास से ही यात्रा किया करते थे। तकरीबन 6.45 से 7.00 बजे के बीच वे हमेशा बोरिवली स्टेशन पर उतरते थे। माँ के आँसू तो थम ही नहीं रहे थे। मैं पिताजी का मोबाईल नंबर घुमा रही थी मगर या तो वे संपर्क क्षेत्र से बाहर थे या फिर उनका फोन व्यस्त है ऐसा सुनाई देता था।
रात के 8.00 बजे तक हम पिताजी से संपर्क नहीं कर पाए थे और मैं टी.वी. पर निरंतर खबरें देख रही थी। अंत में रात के 8.00 बजे मेरे पिताजी का फोन आया तो पता चला कि वे माटुँगा स्टेशन पर सकुशल से हैं। उनकी ट्रेन से आगे वाली चर्चगेट-विरार लोकल में बम विस्फोट हुआ था और वे खुद उसके बाद वाली चर्चगेट-बोरिवली ट्रेन में बैठे हुए थे।
तब हमारी समझ में आया कि उस डी.एम.वी. ने हमें उस दिन कतार से बाहर निकालकर आगे क्यों भेजा था, तथा बापूजी हमें देखकर क्यों मुस्कुराए थे। क्योंकि उस दिन हमारा जल्दी घर पहुँचना जरुरी था वरना न तो हमें बम विस्फोट का पता चलता और ना ही पिताजी से संपर्क हो पाता।
इसीलिए हम बापूजी से यही प्रार्थना करना चाहते हैं कि, हमें हमेशा आपके चरणकमलों के पास रखना क्योंकि आपके चरणकमलों में ही विश्व के सारे सुख समाएँ हैं।
॥ हरि ॐ ॥