॥ हरि ॐ ॥
मुझे अपने ऑफिस के काम से ज्यादा से ज्यादा समय सिल्वासा (दमन-दीव) स्थित फैक्टरी में रहना पड़ता है । पूरी फैक्टरी की जबाबदारी मुझ पर होती है । हमेशा की तरह इस बार भी मैं ऑफिस के काम से सिल्व्हासा में ही था । रात में वहां का काम निपटाकर दूसरे दिन सवेरे मुझे वापस आना था । हमेशा की तरह रात में सोते समय सद्गुरु बापू का स्मरण करके सवेरे जल्दी उठने की जबाबदारी भी मेरे बापू पर डालकर मैं सो गया । प्रातःकाल जल्दी उठकर मैं तैयार हो गया और सिल्व्हासा से निकल पडा । लगभग डेढ घंटे की यात्रा मैंने ठीक से पूरी की । परंतु उसके बाद मेरे बांये हाथ में दर्द होने लगा । धीरे धीरे छाती में जलन होने लगी तथा दर्द होने लगा । मुझे लगा, एसीडीटी हो गयी होगी । मैं एक स्थान पर रुका, पानी पिया फिर भी ठीक नहीं लग रहा था । अब तक छाती में कुछ ज्यादा ही दर्द होने लगा था । गाडी में मैं अकेला ही था और खुद गाडी चला रहा था । दूसरा कोई मेरे साथ में नहीं था ।
धीरे धीरे मेरी समझ में आने लगा कि यह दर्द कोई साधारण दर्द नहीं है । कुछ तो गंभीर समस्या है । मेरी अस्वस्थता बढ़ती ही जा रही थी । मैं मन ही मन काफी डर गया था । अंतिम उपाय के रुप में मैंने गाडी में ही रखे बापू के फोटो को नमस्कार किया । बापू से प्रार्थना की कि कुछ भी करके मुझे मेरे घर डोंबिवली तक ठीक से पहुँचाओ ।
ऐसी प्रार्थना करके मैं आगे की यात्रा पर चल पडा । मुँह में सतत बापू की जप चल रहा था । धीरे धीरे छाती के दर्द की तीव्रता कम प्रतीत होने लगी और आगे तीन घंटों की यात्रा करके मैं अपने घर पहुँच गया । इस दौरान मुझे दर्द का कुछ ज्यादा अहसास नहीं हुआ । परंतु घर पहुँचने पर मैं सोने के लिये गया तो मुझे पाँच मिनट की भी नींद नहीं आ रही थी ।
अब फिर से अस्वस्थता महसूस होने लगी थी । मैं फौरन चलकर ही अपने फैमिली डॉक्टर के पास गया । मेरी तकलीफ सुनकर उन्होंने फौरन मेरी जाँच की । ईसीजी निकाला । शुगर टेस्ट की । जांच से पता चला कि मेरी शुगर काफी हद तक बढ चुकी थी तथा मुझे हृदयविकार का तीव्र झटका आया था । मेरे डॉक्टर ने फौरन मुझे अपनी गाडी में बिठाकर दूसरे अस्पताल की आईसीयू में एडमिट करवा दिया । मेरा केस सिरीअस था, अतः फौरन ही इलाज शुरु हो गया । वास्तव में मुझे मधुमेह हो गया है इसकी खबर मुझ उसी दिन हुयी । इतना होने के बावजूद भी मुझे चक्कर आना, बेहोश होना, उल्टी होना आदि कुछ भी नहीं हो रहा था । मुझे सिर्फ अस्वस्थता महसूस हो रही थी । यह सब उपचार के साथ साथ बापू का नामस्मरण भी शुरु ही था ।
दूसरे दिन मैं आईसीयू में घूम रहा था । मेरे सारे टेस्ट हो गये । परंतु हृदय को इतना बडा झटका लगने के बावजूद कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है, ऐसा डॉक्टरों ने बताया । मेरी रिकव्हरी भी जल्दी ही हो गयी । डॉक्टरों को लग रहा था कि हृदय में कम से कम दो-तीन बडे ब्लॉक्टस होंगे, परंतु पांचवे दिन जब अँजिओग्राफी की गयी तो उसकी रिपोर्ट देखकर डॉक्टर अचंबित रह गये ! उन्हें आश्चर्य हो रहा था क्योंकि वहाँ पर सिर्फ एक ही ब्लॉक था वो भी 50% ही जिससे आगे की अँजिओप्लास्टी टल गयी । हमारे डॉक्टर ने कहा कि तुम्हारा केस एक आश्चर्य ही है, चमत्कार ही है ।
इसका सारा श्रेय सिर्फ मेरे बापू को ही है, क्योंकि इतना बड़ा चमत्कार सिर्फ सद्गुरु ही कर सकता है । दो महिनों के बाद स्ट्रेस टेस्ट की गयी । मुझे पूरा विश्वास था कि बापू की कृपा से टेस्ट ठीक रहेगा। उसके बाद के सभी टेस्ट भी नॉर्मल ही आये और मैं सिर्फ तीन महीनों में ही फिर से ड्यूटी ज्वाइन कर सका । अब मैं पहले की तरह फैक्टरी में आता जाता हूँ । मैं स्वंय ही गाडी चलाता हूँ ।
मैं इसे अपने नये जीवन की शुरुआत ही समझता हूँ और मुझे यह नवीन जीवन देने वाला मेरा सद्गुरु बापू ही है जो सतत रात-दिन मेरे साथ रहता है । अब तो उसके बिना जीना, जीना ही नहीं है । मेरा त्राता बापू ही मेरा सर्वस्व है ।
हे बापूराया,
तुला सोडूनि जाऊ कुठे मी ।
तुजविण मज कुणी नाही ॥
(अब मैं तुझे छोडकर कहाँ जाऊँ । तुम्हारे अलावा मेरा अन्य और कोई नहीं है । )
॥ हरि ॐ ॥