॥ हरि ॐ ॥
आज यह अनुभव लिखते समय भी सीने में धकधक हो रही है तो उस दिन जब यह घटना घट रहीं थी तो हमारी अवस्था क्या रही होगी, इसकी कल्पना न करना ही अच्छा है । इस घटना के घटित होने के अंतिम क्षणों तक वो हमेशा की ही तरह एक सामान्य दिन था । 9 मई 2010 । दिनचर्चा बिल्कुल रोज की ही तरह शुरु हुयी । दोपहर तक सबकुछ बिल्कुल ठीक था । परंतु आगे क्या होनेवाला है इसकी हमें किंचितमात्र आभास नहीं थी ।
मैं रोज की तरह दोपहर का काम कर रही थी । मेरा बेटा ढाई साल का है । उसे हमेशा की तरह दोपहर में सुलाने वाली थी । परंतु उस समय उसका खेलने का मूड था और वह खेल रहा था, अतः मैंने भी उसे जबरदस्ती नहीं सुलाया । उस दिन काफी गर्मी थी, अतः खिडकियाँ भी खुली रखी थी ।
............और तभी एक भयंकर घटना घटी । खेलते खेलते मेरा बेटा खिडकी से बाहर गिर गया ।
ऊपर से झाँककर नीचे का दृश्य देखते ही मेरा शरीर ठंड़ा पड़ गया । ‘बापूऽबापू.....’ दूसरा शब्द ही नहीं निकल रहा था ।
बेटा रो रहा था । मैं दौड़कर नीचे गयी, उसको उठाया और मिस्टर को फोन करके संक्षेप में सारी घटना बतायी । फिर उसको लेकर ऊपर आयी । उदी लगायी, मुँह में पानी डाला और उसे लेकर बापू के फोटो के सामने खड़ी हो गयी । एक ओर तो मुझे ही रोना आ रहा था । परंतु दूसरी ओर बेटे को भी चुप करवाना था ।
तभी बापू ने एकाएक मुझे शक्ति दी । मन मजबूत करके मैंने आँखें पोंछी और बेटे को गोद में लेकर बाहर बैठ गयी । अब तक वो धीरे धीरे शांत हो रहा था । दूसरी मंजिल से गिरने के बावजूद उसके शरीर पर कोई बाहरी घाव, जखम दिखायी नहीं दे रहा था । परंतु चूँकी वो दूसरी मंजिल से गिरा था, अतः कुछ भीतरी चोट की संभावना मुझे सता रही थी ।
तभी मिस्टर आ गये । वे तो, यह सोच-सोचकर कि ना जाने कैसा दृश्य देखने को मिलेगा हवालदिल ही हो रहे थे । परंतु घर पहुँचकर बेटेको मेरी गोद में देखने से उनकी जान में जान आई । जब उन्हें सारी घटना की जानकारी हुयी तो उन्हें इस बात का विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह लडका दूसरी मंजिल से नीचे गिरा था । तब बेटे को लेकर चलाकर और बिठाकर सब हालचाल करके देखा । उसे स्वंय चलने, उठने, बैठने के लिये कहा। यह सब वह व्यवस्थितरुप से कर रहा था ।
तभी घर में मिस्टर के दोस्त आये थे । उन्होंने शंका व्यक्त की कि बेटा छोटा होने के कारण यदि उसे कहीं पर दुख भी रहा होगा तो भी वो उसे बता नहीं सकता । अतः उसको तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना अच्छा होगा । किसी भी आशंका को स्थान न देने के लिहाज से हम उसे डॉक्टर के पास ले गये । वे भी यह सुनकर कि, ‘‘अभी थोडी देर पहले यह लडका दूसरी मंजिल से गिर गया था ।’’ यह सुनकर अवाक रह गये । उन्होंने तुरंत युरीन टेस्ट किया और एक्स-रे निकाला । उसकी सारी गतिविधियाँ करवाकर देखी । पूछे गये प्रश्नों का ठीक से उत्तर देता है क्या, यह देखा । उसका सबकुछ नॉर्मल है, यह देखकर वे बोले कि यह ‘मिरॅकल (चमत्कार) ही है । परंतु खबरदारी के रुप में हम सी.टी.स्कैन निकाल कर देख लेते हैं । वो भी कर लिया है । उसमें कुछ समस्या महसूस हुयी इसके लिये एक दिन उसे निरिक्षण में रखा । हमें भी रातभर अस्पताल में रुकने को कहा ।
यदि आवश्यकता हुयी तो ऑपरेशन करना पड़ेगा, ऐसा डॉटर ने कहा । परंतु उसका व्यवहार प्रतिदिन की तरह ठीक चल रहा था ।
जहाँ मेरे बापू खड़े हैं, वहाँ पर कुछ भी समस्या होनेवाली नहीं है, ऐसा मेरा दृढ विश्वास था ...... और ठीक वैसा ही हुआ अक्षरशः ! सभी की आशंकाएं निराधार साबित हुयी और ‘वास्तव’ में तुम्हारे साथ भगवान है । उसने ही आकर बच्चे को बचा लिया है ........... यह चमत्कार ही है’’ इन शब्दों के साथ डॉक्टर ने आश्चर्य व्यक्त किया ।
सत्य है, बापू की कृपा से मेरा बेटा बिल्कुल स्वस्थ है । सत्य कहती हूँ , ‘बापू , मेरे पास शब्द ही नहीं है । मेरी अपेक्षा मेरे बेटे की कितनी फिक्र मेरे बापू को है ! बापू ग्रेट हैं, सिर्फ और सिर्फ बापू ने ही मेरे बच्चे का हाथ पकड़ा है । इस घटना के कुछ दिन पहले ही बापू द्वारा लिखित ‘मातृवास्तल्यविन्दानम्’ ग्रंथ मेरे घर में आया था ............. मानो उस सद्गुरुतत्त्व ने ही हम पर अपनेवाले संकटों को जानकर उससे पहले ही हमें कवच प्रदान किया था । क्योंकि जहाँ पर ‘मातृवात्सल्य’ है, वहापर अशुभ, असुर इत्यादि रह ही नहीं सकते, यहीं इनका ‘विन्दान, है । अन्यथा विचार करो, ढाई वर्ष का बच्चा दूसरी मंजिल से सीधे नीचे गिरने के बावजूद सादी खरोंच तक नहीं आयी, यह कौन से तर्कशास्त्र से साबित हो सकता है ? बापू, वास्तव में सिर्फ तुम ही ऐसा कर सकते हों ।
इस घटना के कुछ दिनों के बाद परमपूज्य सुचितदादा से बात हुयी । दादा की प्रेमभरी आवाज में ‘हरि ॐ’ सुनकर ही मुझे इतना रोना आया कि शब्द ही नहीं निकल रहे थे । दादा को सारी हकीकत बताने के बाद उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि, ‘भगवान ने तुम्हें इतना अच्छा अनुभव दिया है तो ‘ॐ कृपासिंधु श्रीसाईनाथाय नमः’ और ‘ॐ मनःसामर्थ्यदाता श्रीअनिरुद्धाय नमः’ का जप 108 बार करो।’
बापू, मुझसे ज्यादा से ज्यादा भक्ती करवाकर लो । यह अनिरुद्ध कवच और भी मजबूत होने दो, बापू चरणों में मेरी यहीं प्रार्थना है ।
॥ हरि ॐ ॥