॥ हरि ॐ ॥
अपना सद्गुरु जीवन में कदम कदम पर ऐसा साथ देता है कि उसके अनुभव बताने की सोंचे तो यहीं पता नहीं चलता कि शुरुआत किस तरह और कहाँ से की जाय । मुझे जो मेरे सद्गुरु के बारे में जो कुछ अनुभव हुआ है उसे मैं यहाँ संक्षेप में व्यक्त कर रही हूँ ।
22 जून को श्रीगुरुक्षेत्रम् में रात्रि पठन के लिये मैं और मेरी बडी भाभी स्मिता सुनील जाधव, शाम को ट्रेन से उल्हासनगर से चलकर शाम 8.30 बजे गुरुक्षेत्रम् पहुँचे । परंतु वहाँ पर पहुँचने पर जब भाभी ने अपनी बैग देखा तो उसमें उनका पर्स नहीं था शायद ट्रेन में किसी ने पर्स चुरा लिया होगा । हम दोनों तो हवालदिल ही हो गये । उनकी पर्स में लगभग 1200 रुपये थे । मेरे पास तो सिर्फ 120 रुपये ही थे। इतने पैसों में ही रात कैसे कटेगी, हम इसी चिंता में थे । पर्स में हम दोनों के रिटर्न टिकट भी थे । अतः कल सवेरे जाते समय पुनः टिकट निकालना पड़ेगा । जाने के लिये टिकट के पैसों के अलावा मेरे पा सिर्फ 50 रुपये शेष थे ।
भाभी ने मुझसे कहा कि, ‘‘अब इतने से पैसों में खाना क्या खायेंगे? उसकी अपेक्षा हम घर ही वापस लौट चलते हैं । ’’
परंतु तभी उनको थोड़ी सी दिलासा देते हुये मैंने उनसे कहा कि, ‘‘मैं यहाँ किसी से उधार के रुप में थोडे पैसे मांग लेती हूँ । ’’ परंतु उन्हें यह मंजूर नहीं था । फिर मैंने उनसे कहा कि, ‘‘मेरे पास बचे 50 रुपयों में हम कोई एक स्नैक्स लेते हैं और उसी में दोनो लोग थोडा थोडा सा लेंगे ।’’ ऐसा कहकर मैं उस काऊंटर पर गयी जहाँ पर कूपन मिलते हैं । वहाँ पर दो व्यक्ति बैठे थे । उस दिन खाने के लिये भजियां बनी थीं । उनमें से सामने बैठे काका से मैंने भजियां की किंमत पूंछी और मेरे पास की 50 रुपये की नोट उन्हें दिया । उन्होंने मुझे कूपन और शेष बचे पैसे भी दिये । मैंने उन्हें मेरी पर्स में रख लिया ।
इतने में एक चमत्कारिक घटना घटी । तभी उनके सामने बैठे हुये दुसरे काका ने अचानक कहा, ‘‘मैं जानता हूँ कि तुम्हारे पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं और तुम काफी दूर से आये हो । तुम्हारे पास कुछ वापसी टिकट के लिये ही पैसे हैं । अतः यह 50 रुपये वापस ले लो तथा कूपन के पैसे भी वापस ले लो । वो भी मैं देता हूँ । पैसे लेने के लिये बिल्कुल संकोच मत करो । निःसंकोच मुझसे ले लो । तुम पठन के लिये आये हो ना ? तो शांत मन से पठन करो । ये पैसे मैं अपनी जेब से नहीं दे रहा हूँ । ये पैसे तो बापूजी स्वतः ही दे रहे हैं ऐसा समझो ।’’
उनकी यें बातें सुनते ही मेरी आँखों में अपनेआप आँसुओ की धारा बहने लगी । मैं उनकी ओर ठीक से देख भी नहीं पा रही थी । मेरी ऐसी अवस्था हो गयी थी । उन्होंने फिर मुझसे कहा, ‘‘हरि ॐ ! तुम यहाँ पर पठन के लिये आये हो ना, अतः और कुछ चाय, काफी बिस्कुट खुशी खुशी ले लेना, उसके पैसे भी मैं दूँगा ।’’
ये शब्द सुनकर मैंने उन्हें धन्यवाद कहते हुये हाथ जोडे व उनसे सिर्फ इतना ही कह सकी कि, ‘‘आज आप मेरे लिये साक्षात बापू ही बनकर आये हो । बापू को ही हमारी फिक्र रहती हैं । ’’
बाद में भजियां लेकर मैं पास में बैठी भाभी के पास गयी और जब उनसे मैंने सारी हकीकत बताई तो उनके भी आँसू रोके नहीं रुक रहे थे । थोडी देर में आँसू पोंछते हुये उन्होंने इतना ही कहा कि, ‘‘बापू से संसार की कोई भी चीज छिपी नहीं रहती, हम जैसे छोटे भक्तों की छोटी छोटी बातें भी उन तक पहुँचती ही हैं, यह बात आज हमारे सद्गुरु ने प्रत्यक्ष अनुभव से सिद्ध कर दिया है । ’’
ऐसे इस प्रेमी सद्गुरु की हम दोनों की शतशः कोटि-कोटि प्रणाम !
॥ हरि ॐ ॥