॥ हरि ॐ ॥
हिमालय के लेह लड्डाख जाने का कई दिनों से मन मे विचार था । मेरी सहेली सौ. जयश्री कर्डिले के बेटे ने लेह-लद्दाख की यात्रा आयोजित की थी । हा-ना, हा-ना करते-करते मैं व मेरे पति का जाना तय हुआ । 11 जुलाई को सबका (सहयात्रियों का ) सहभोजन आयोजित किया गया था ।
हमारी यात्रा मुंबई सेन्ट्रल राजधानी एक्सप्रेस से 24 जुलाई 2010 को शुरु होनेवाली थी । जुलाई महिना श्रद्धावानों हेतु सदाही महत्त्वपूर्ण होता है क्योकि इसी माह में गुरुपौर्णिमा आती हैं । उस साल 25 जुलाई को गुरुपौर्णिमा थीं जो यात्रा में जाने का तय करते समय ध्यान से उतर गया था । इस हेतु मन ही मन बापू से क्षमा माँगी । व दिल पर पत्थर रखकर यात्रा की तैयारी आरंभ की ।
24 जुलाई 2010 दोपहर 2 बजे टैक्सी से बोरिवली से मुंबई सेंट्रल के लिए निकले । मुसलाधार वर्षा के कारण समय पर पहुंचेंगे या नहीं ऐसा लग रहा था । लेकिन हम ठीक समय पर पहुँचे । गाडी भी समय से चली । लेकिन दिल्ली में 2 घंटे लेट पहुँची । हमने दिल्ली चण्डिगढ़ मनाली तक प्रवास किया ।
मनाली में पिछले 3 दिनों की भारी बारिश के कारण रास्तों की हालत खराब थी । हम कुल 18 लोग थे जिसमें 3 ज्येष्ठ नागरिक थें । बारिश के कारण चट्टान धसकने से रास्ता बंद था । अतः हम सुमुरिरि लेक में रात 10 बजे पहुँचे । वहाँ तापमान 5 डिग्री से. था । मजल दरमजल सारे जगह देखते हुए 4 अगस्त 2010 को हम लेह पहुँचे ।
अब तक की यात्रा अच्छी हुई । परंतु लेह में बादल फटने की घटना हुई थी । हमें वहाँ के हॉटेल से ऊँची जगह ले जाया जा रहा था । रास्ते में एक व्यक्ति मिला । जिसके कहने पर हम उस उँची जगह के स्थान पर पास ही के हरे राम मंदिर में आ गए ।
हमारे साथ और 30-35 लोग मंदिर में थे । शाम को आरती हुई व मंदिर के पंडित वे हनुमानचलिसा कहना आरंभ किया । मुझे बहुत आनंद हुआ । लेह जैसी जगह में हनुमान चलिसा ! हमें बापू ने रोज हनुमान चलिसा पठन करने को कहा है व हम कहते भी हैं । परंतु इतने दुर्गम स्थान पर संकट से घिरने पर हनुमान चलिसा का कानों में पडना हमारे सद्गुरु के हमारे साथ होने की गवाही थीं ।
हमने हनुमान चलिसा के उपरांत रामरक्षा व घोरकष्टोद्धरण स्तोत्र का पठन किया ।
संकट मोचन हनुमान के अतिरिक्त कौन करेगा ? व उसका गुणसंकीर्तन कर हमारे संकट का निवारण करनेवाला अनिरुद्धराम के अतिरिक्त और दूसरा कौन हो सकता है ? इसका मुझे विश्वास हुआ व आँखे भर आई ।
दूसरे दिन मंदिर से निकल हॉटेल गए सामान उठाया व तुरंत विमान अड्डे पहॅुंचे । हममें से आधे लोगों की फ्लाईट की टिकट न मिली । हमें बापूकृपा से टिकट मिल गई व 7 अगस्त को हम सकुशल मुंबई पहुंचे ।
सद्गुरुराया, आपकी ऐसी ही कृपा हम पर बसी रहे । यही आपके चरणों में प्रार्थना !
॥ हरि ॐ ॥