॥ हरि ॐ ॥
7 नवम्बर 2008 के दिन रात 12 बजे एक मारुती वैन में सातारा से कोल्हापुर-सातारा महामार्ग क्र.4 से हम अपने परिवार सहित निकले । वैन में हम पुरुष, महिलाएं व बच्चे मिलकर 9-10 लोग थे । करीब 200 कि.मी. का रास्ता था ।
डेढ़ से दो घंटे तक का सफर अच्छी तरह पार कर लिया । फिर पुणे से करीब 40 कि.मी. पहले गाडी अचानक बांयी ओर खिंचने लगी । गाडी का बाँया टायर पंक्चर हो गया था । आमतौर पर जब गाडी तेज होती है तब टायर पंक्चर होने पर गाडी पलटने की संभावना बहुत ज्यादा होती है । परंतु हमारे सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापू हमेशा रक्षक होने के कारण हमारे साथ ऐसा कुछ भी न होकर गाडी केवल बाँयी तरफ खिंचने के साथ खडी रही। तब रात के 2 बजे थे । हायवे के दोनो तरफ गहरा अंधेरा, ठंड के दिनों की तेज हवा और मच्छरों का साम्राज्य ऐसी अवस्था में हम आने जानेवाली गाडियों को रोकने हेतु हाथ दिखा रहे थे । हमारी गाडी में स्टेपनी थी, परंतु व्हील पाना न होने से टायर खोलना और लगाना संभव न था । मारुती वैन में उसी का व्हील पाना लगना था । अंधरे में, आनेवाली गाडियों के हेड लाईट इतने तीव्र थे कि गाडी पास आने तक हम पहचान नहीं पाते थे कि कौन सी गाडी है ?
इस हालत में रात दो बजे कोई गाड़ी रुकने के लिये भी तैयार न थी । इस महामार्ग पर रात में लूटमार के किस्से भी सुनाई देते थे । अतः वह डर भी मन में था क्योंकि साथ में महिलाएं व बच्चे भी थे । अंधेरे में यदि कोई गांव भी आस-पास हो तो पता चलना मुश्किल था । वैन के अंदर महिलाओं के द्वारा बापू को पुकारना जारी था । हम सभी पुरुष डरे हुए तो नहीं पर लूटमार की संभावना से विचलित तो थे ही । अगले डेढ़ घंटे तक 2 से 2.30 बजे तक हमारी सर्कस चल रही थी । अब बापू के सिवा कोई आधार न था । बापू हमारे लिये मदद जरुर भेजेंगे इसका 108% विश्वास था । वे अपने बालकों से कभी दूर नहीं रहते ।
तभी अचानक एक मारुती वैन हमारी गाडी के आगे जाकर साईड में रुकी । हम भागते हुए वहाँ पहुँचे । पिछले काँच पर बापू का फोटो था । गाडी में सिर्फ दो लोग थे । हमारे कुछ कहने से पहले ही वे व्हीलपाना लेकर उतरे । इस अंधेरे में हमारे कुछ कहने से पूर्व ही हमारी गाडी का प्रॉब्लेम उन्हें कैसे समझा ? व्हीलपाना हमें न देकर हमारी गाडी के पास जाकर उन्होंने टायर खोल कर दूसरा टायर लगाया । इस कार्य में आमतौर पर 15-20 मिनट लगते हैं । परंतु उन्होंने यह काम पांच मिनट में किया और हमारे आभार प्रकट करने से पूर्व वे मुस्कुराकर अपनी गाडी में बैठकर चले भी गये ।
यह सब होने पर हम अवाक थे । ऐसी अंधेरी रात में महामार्ग पर हम मदद के लिये परेशान है, कोई गाडीवाला नहीं रुकता, पर हमें जिस गाडी की जरुरत है वही मारुती वैन वहाँ रुकती है; गाडी का प्रॉब्लेम बताये बिना दो लोग व्हीलपाना लेकर आते हैं, हमारी गाडी का टायर बदला जाता है, 15 मिनट का काम 5 मिनट में निबटाकर चले भी जाते हैं । सारा अद्भूत ! अतर्क्य !!
भगवान कौन से रुप में आते हैं पता नहीं चलता ! हमें तो वे दोनो हमारे बापू, व सुचितदादा ही लग रहे थे ।
ऐसा है यह हमारा साँवला विठ्ठल ! सतत अपने भक्तों के लिये अविरत दौड़ता रहता है । उसने जो हमें गवाही (वचन) दिया है कि, ‘‘मैं तुम्हें कभी भी त्यागूगां नहीं’’ उसे पूर्ण करने के लिये ............ क्योंकि यह ‘ऐसा ही है’ ! सच में, हम क्या उसकी सेवा करेंगे ? वही हमारी सेवा करता है । हमारी सेवा हेतु यह प्रेम का भूखा बापू तत्पर रहता है । उनकी केवल एक ही इच्छा रहती है कि उनके बालक, नेक राह पर चलें व जीवन में यशस्वी हों । उन्हें आनंद मिले ...... बस ! और कुछ नही !
॥ हरि ॐ ॥