॥ हरि ॐ ॥
बापूजी के सत्संग में आने के बाद कदम कदम पर उनके कृपा व प्रेम का अनुभव हुआ है । वह नित्यजीवन हो या अपघात ............बापू ने सदैव संकट से बचाया है ।
25 अप्रैल 2010 के दिन मैं अपने दोपहिया वाहन पर मित्र के साथ कल्याण बाजार के रास्ते पर जा रहा था । रास्ते पर ट्रॅफिक की वजह से हमारे वाहन की गति कम थी व अन्य वाहनों के बीच में से अपना वाहन निकाल रहा था ।
अचानक एक सेंट्रो कार मेरे आगे मुडने के संकेत दिए बिना मेरे सामने मुडी मैंने ब्रेक लगाया । गाडी स्लीप हुई व सेंट्रो से टकराकर मैं बाजू से चल रही बस के नीचे फेंका गया । बस का पिछला पहिया मुझपर आधा चढ गया व मुझे लगा अब सब कुछ समाप्त ! अब बापू बिन कौन सहारा ?
आखिर उसने ही सारा चक्कर चलाया । बस ड्रायव्हर ने तुरंत ब्रेक लगाया । बस पीछे लें शरीर पर आया बस का टायर हटाया । रास्ते के लोगों ने मुझे खींचकर बाहर निकाला । बस के टायर को मेरी कमर पर चढने के निशान थे । कुछ सेकंड़ों में वह पूरी तरह कमर पर होता ? यह सोचकर कर भी थर्रा जाता हूँ ।
अस्पताल में भर्ती होने के बाद एक्स-रे में भी टायर के निशान तो स्पष्ट थे । किंतु आंतरिक अंगों लिव्हर किडनी आदि को कोई नुकसान नहीं पहुँचा था । डाक्टर भी हैरान थे । कारण एक ही ..... बस ड्रायव्हर को समय रहते ब्रेक लगाने की प्रेरणा व शक्ति देने वाला वही, टायर शरीर पर चढकर भी आंतरिक अंगों को सुरक्षाकवच देनेवाला ‘वही’ है ।
एक ही समय पर मैंने बापू को कितनी तकलीफ दी इसका मैं विचार भी नहीं कर सकता । मुझे ले जाने के लिए काल आया था, पर बापू बीच में आ गए और यह लिख पाने के लिए मैं जिंदा बच गया ।
॥ हरि ॐ ॥