॥ हरि ॐ ॥
अपघात भय जाई। टळे अकालमरण।
संकटात मदत होई। मिळे मनाधार॥
इस वचन की प्रचिती देनेवाला अनुभव । दिनांक 11 जुलाई 2006 की गुरुपौर्णिमा । मेरे पिता बापू के दर्शन हेतु बोरिवली की गाडी में विलेपार्ले स्टेशन से बैठें । उन्हें क्या पता था कि आगे क्या होनेवाला है ? आगे जोगेश्वरी स्टेशन आते ही इतनी भयंकर आवाज हुई व कुछ समय तक समझ ही नहीं आया कि वहाँ बम विस्फोट हुआ है ! बम इतना शक्तिशाली था कि लोकल के डिब्बे के परखच्चें उड गए थे । मेरे पिता भी ट्रॅक पर फिंका गए थे । परंतु सद्गुरु दर्शन हेतु निकले मेरे पिता की पूर्ण केअर बापू ने ली । उन्हें कोई जख्म नहीं हुआ ।
बाहर लोगों की अफरातफरी शुरु थी । मदद व राहत कार्य शुरु था । तभी एक व्यक्ति ने मेरे पिताजी से पूछताछ की । जब पिताजी ने कहा, ‘‘मुझे खार में हैप्पी होम में मेरे सद्गुरु निवास में जाना है ।’’ धमाके में उनके पैसे व टिकट कहीं गिर गए थे । वैसे पूछताछ करनेवाला व्यक्ति भी गरीब ही था । अतः दोनो पैदल ही हैप्पी होम पहुँचे । बाद में डॉ. पौरससिंह (सद्गुरु बापूके पुत्र) ने स्वंय नीचे आकर उनका हालचाल पूछा और सिक्यूरिटी गार्ड के साथ उन्हें सायन में मेरी बहन के घर पहुँचाने की व्यवस्था करवाई ।
हमारे जैसे सामान्य भक्त की सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने मदद की व मेरे पिता का जान बची । भक्त हेतु सदा भागकर आनेवाले मेरे बापू ने कितनी बड़ी अनुभूति दी .... शायद...... नया जीवन ही दिया ! ऐसे सद्गुरु सदा हमारे पीछे हैं । उनकी अगाध शक्ति का हमें अनुभव हुआ ।
आता मागतो एक वचन।
न होऊ द्यावे तुझे विस्मरण।
जन्मोजन्मी तूच मायबाप।
अनिरुद्ध नाम सदा मुखी राहो।
(अब यहीं एक वचन माँगता हूँ कि तेरा विस्मरण न हो । जनम जनम में तुही मेरे मायबाप हो व अनिरुद्ध नाम सदा मेरे मुख में रहे ।)
॥ हरि ॐ ॥