॥ हरि ॐ॥
हमारा परिवार पिछले 12/13 सालों से बापूजी के सत्संग से जुडा हुआ है। मुझे और मेरे परिवार को बापूजी के कई अनुभव हुए हैं। अब तो बापूजी घर के सदस्य की भांति प्रतीत होते हैं। कभी भी, कहीं भी उनकी याद आए बिना ना तो किसी कार्य में हाथ डाला जाता है और ना ही कहीं बाहर आना जाना होता है।
सोमवार दिं 4 अक्तूबर 2010 का दिन मेरे जीवन में हमेशा मुझे याद रहेगा। पुणे के खडकी भाग में हमारा केलों का होलसेल बिजनेस है। मैं उस दिन शाम के सात बजे पैसे देने के लिए मित्र के साथ पुणे गया था। पैसे देकर हम घर लौट रहे थे तब अचानक बिजली चमकी और गडगडाहट के साथ धुँआधार बारिश होने लगी। इसलिए हम वहीं रुक गए। एक डेढ घंटे तक बारिश होती रही।
बारिश थोडीसी कम हुई और साढेनौं बजे हम शिवाजी नगर पहॅुंचे तो रास्ते पर हर तरफ पानी ही पानी दिखाई दे रहा था। हम पुणे-मुम्बई रोड पर न जाते हुए चतु:श्रुंगी रोड से होते हुए रेन्जहिल शॉर्टकट मार्ग से पुणे-मुम्बई रोड पर आने लगे। चारों तरफ से जंगल नालों से बारिश का पानी बह रहा था। पानी बढने लगा तो हम ने सोचा कि पानी अधिक बढने से पहले निकला जाए।
मेरा मित्र पीछे बैठा था और मैं बाईक चला रहा था। हम नाले में घुसे तो अचानक पानी की जोरदार लहर आई। हमें पीछे घूमने का भी मौका नहीं मिला। मेरा मित्र उतरकर जैसेतैसे बाहर निकला, मगर मैं बाईक चला रहा था तो तुरंत उतर नहीं पाया और पानी में फँस गया। मेरी बाईक बहने लगी। अब पानी मेरे सिर के ऊपर से बहने लगा था। मैं थोडा बहुत तैरना जानता था। हाथ हिलाते हुए किनारे तक जाने की कोशिश की लेकिन अचानक कीचड में फँस गया और मैं धीरज खो बैठा।
मेरी जेब में बापूजी का फोटो था। काल धीरे धीरे नजदीक आ रहा था। मैं बापू को पुकारने लगा। अचानक मेरे मुँह से तीन बार शब्द निकले, ‘बापू, मुझे बचाओ।’ और.....उसी वक्त एक बबुल की काँटोंवाली डाल मेरे हाथ में आ गई। उसे पकडकर मैं पानी में ही रहा। बहुत समय उसी स्थिति में था। रात के 11 बजे होंगे, पर पानी का प्रवाह कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
पानी के प्रवाह की तेज गति की वजह से एक बार मेरे हाथों से वह डाल छूट गई। मुझे लगा....बस, अब सबकुछ खत्म....। मगर बापू थे ना, दृढता से, मेरे साथ! उन्होंने मेरी पुकार सुन ली; इसलिए पानी का इतना प्रेशर होते हुए भी मैं उस जगह से जरासा भी नहीं सरका। इसकी वजह से मेरा धीरज बंधा और मैं पानी से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। अंत में, बापूजी की ही कृपा से, मैं पानी से बाहर निकल पाया। हाथों में और पैरों में कांटे चुभे थे फिर भी उस जंगल से अंधेरे में भाग निकला और किसी तरह मरीआई गेट के पास पहुँचा, तब कहीं जाकर मेरी जान में जान आई। सचमुच, बापू साथ न होते तो मैं आज जिंदा नहीं होता।
वहँ मेरे मित्र ने मेरे घर जाकर डरते हुए मेरे परिवार को सारी घटना की जानकारी दी और कहा कि मैं किसी तरह से बच निकला पर मयूर पानी में बह गया। मेरे माता-पिता पर तो मानो बिजली गिर पडी! मगर वे भी बापूभक्त हैं, इसलिए उनका भी बापूजी पर विश्वास था कि बापू जरुर उनके बेटे को संकट से बचाऍंगे। मेरे पिताजी इतनी तेज बारिश में मुझे ढूँढने निकल पडे और अचरज की बात तो यह है कि, पिताजी को मोबाईल पर बताया गया कि मैं ठीकठाक हूँ। किसने फोन किया था पता नहीं। मगर यह खबर सुनते ही मेरे माता-पिता ने प्रेमाश्रुओं से बापूजी के चरण धो डाले।
मौत को इतने नजदीक से देखने के बाद मेरा संपूर्ण जीवन बापूमय हो गया है।
बापू तेरी अगाध महिमा त्रिभूवन में फैलेगी संकट में तूने साथ निभाया यह दास्तान नहीं भूलेगी
॥ हरि ॐ॥