॥ हरि ॐ॥
मैं सन 2002 से बापूजी के दर्शनों का लाभ उठा रहा हूं, केवल उन्हीं की कृपा से। पहले हम कॉटनग्रीन में रहते थे। एक अखबार में बापूजी के अनुभव पढकर लगता था कि एक बार बापूजी से मिलना चाहिए।
मेरे ससुरजी के चचेरे भाई एक बार यूं ही बान्द्रा गए थे। वह गुरुवार का दिन था। बान्द्रा में उन्होंने श्रीहरिगुरुग्राम (बापूजी का प्रवचनस्थल) में भीड देखी। अनिरुद्धबापू यहां हर गुरुवार के दिन प्रवचन करते हैं यह बात सुनकर वे उत्सुकता वश प्रवचन सुनने के लिए रुके। प्रवचन सुनकर पता नहीं क्यों वे बापूजी का एक फोटो खरीद लाए। तब से बापू हमारे घर के एक सदस्य बन चुके हैं और हर संकट में उनका आधार महसूस होता है।
बापूजी के सत्संग में आने के बाद हमारे जीवन में बहुत सुधार हुए हैं। अनुभव तो हर कदम पर होते रहते हैं।
एक बार ससुरजी के ही कहने पर मैं और मेरी पत्नी एक गुरुवार को बान्द्रा में श्रीहरिगुरुग्राम गए। वहां कैसे जाना है यह भी हमें पता नहीं था। रिक्षावाले को तो पता होगा, यह सोचकर हम बान्द्रा में रिक्षा की कतार में लग गए। पर अगर रिक्षावाला नहीं जानता होगा तो वहां तक कैसे पहुंचेंगे, यह चिन्ता भी थी। मगर जब बापू किसी को अपने पास लाना चाहते हैं तो वह होकर ही रहता है। हमारा बान्द्रा स्टेशन पर ऑटो रिक्षा के पास जाते ही एक बापूभक्त महिला ने आगे बढकर पूछा, ‘‘बापूजी के पास जाना है क्या?’’ हम ने ‘हां’ कहा और उनके साथ श्रीहरिगुरुग्राम पहुंचे। मगर हमें मेरी बहन के पास कांदिवली जाना था और भीड देखकर हम ने बाहर से ही दर्शन किए और चले गए।
इसके बाद जब भी मुझे समय मिलता था मैं गुरुवार को वहां जाया करता था।
हमारा पहला अनुभव ऐसा है कि, शादी के बाद 2-3 साल बीत चुके थे पर हमारी कोई संतान नहीं थी। डॉक्टरी उपाय चल रहे थे। बापूजी के दर्शन के दो ही महीनों बाद एक बार मेरी पत्नी बीमार थी इसलिए मैं उसे डॉक्टर के पास ले गया, तो डॉक्टर ने कहा - मुझे लगता है आपकी पत्नी गर्भवती है। आप टेस्ट करवा लीजिए।’
तत्पश्चात मैं ऑफिस चला गया। मैंने ऑफिस में बापूजी की उपासना की पुस्तिका लाकर रखी हुई थी। मैं बापूजी के फोटो को देखते हुए कहता रहा कि, ‘शाम को घर पहुंचने पर मुझे पत्नी शुभ समाचार सुनाए’.... और वैसा ही हुआ।
टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव थी। मैंने मन ही मन बापूजी का शुक्रिया अदा किया। इतने डॉक्टरी उपाय करने पर भी जो हासिल नहीं हो पाया था वह बापूजी के दर्शनों से हो गया। कोई इसे संजोग कहेगा, मगर मेरा विश्वास है कि सबकुछ ठीकठाक होते हुए भी हमें संतान नहीं हो रही थी, वे दिक्कतें बापूजी के दर्शन से ही दूर हो गई थीं। इस अनुभव की वजह से मेरे मन में बापूजी के प्रति श्रद्धा और भी बढ गई। अब तो मैंने बापूजी का फोटो हमारे गांव के घर में भी लगा लिया है।
मगर फिर भी मेरी पत्नी को बापूजी के प्रति इतना विश्वास नहीं था। मुझे बार बार लगता था कि पत्नी को भी मेरे बापू को सद्गुरु मानना चाहिए। पर यहां पर जो कोई आता है वह बापूजी की इच्छा से ही आ पाता, ऐसा मैं अपने मन को समझाया करता था। मगर यह पीडा भी बापूजी ने दूर कर दी। हमारा बेटा जब आठ-नौं महीनों का था तब हम गांव गए थे। एक बार मेरी पत्नी बोली कि, ‘सचमुच हम पर बापूजी की कृपा है।’ मैं अचरज से उसकी ओर देखता ही रहा। हमारा बेटा तो निरंतर बापूजी के फोटो को ही देखा जा रहा था।
हम दोनों का विश्वास है कि, वह बापूजी का ही प्रसाद है।
॥ हरि ॐ॥