॥ हरि ॐ ॥
मेरे साले ने अपने घर को रंग लगवाकर भाडे पर देने हेतु बहुत कोशिशें कीं, मगर उसे सफलता नहीं मिल रही थी। वो हमारे पास रह रहा था और हमारे घर में उसकी वजह से निरंतर समस्याएँ एवं झगडे हुआ करते थे। घर में तनाव बढता जा रहा था। मेरी पत्नी को भी बहुत तनाव रहता था। वैसे तो छोटी समस्याएं ही थीं, मगर हररोज की किट-किट से हम परेशान हो गए थे।
ऐसे 6-7 महीने बीत गए मगर परिस्थिति में कोई फर्क नहीं पडा था। अंत में बेजार होकर मेरे बापूराया के फोटो के समक्ष बैठकर तहेदिल से प्रणाम करके उनकी करुणा मांगी। इस संकट को दूर करने के लिए उन से प्रार्थना की।
अचरज की बात तो यह है कि उस दिन से मेरा तनाव कम होने लगा। इस के बाद दो ही दिनों में मेरे साले को एक गृहस्थ द्वारा घर भाडे पर देने की मांग हेतु फोन आया और दोनों में 14 हजार प्रतिमाह भाडे की बात तय हुई। अब उसका दूसरा साल चल रहा है। उन पैसों से साले ने डोंबिवली में भाडे पर घर लिया और अब वो वहीं रह रहा है।
इस तरह से मेरे बापू ने मेरी पुकार सुनी और हम पर आए हुए संकटों से हमें छुटकारा दिलाया।
बापूराया, ‘दीनदयाल बिरिदु सँभारी’ यह तेरा ब्रीद तू ने निभाया और मेरे संकट हर लिए....तेरे चरणों में लोटांगण!
मेरा दूसरा अनुभव इस तरह है - व्यावहारिक जग में हम कई बार पूरे नहीं पडते। कार्यस्थल पर हमें जो लक्ष्य दिए जाते हैं वे जीतोड मेहनत के बावजूद यदि पूरे नहीं होते तो हमारे सहकर्मी हम पर ‘असफल’ की मोहर लगाकर एक तरफ हटा देते हैं। पर हम श्रद्धावान हों और हम ने अगर ईमानदारी से कोशिश की हो तो सद्गुरु हमारी असफलता को दूर करने के लिए अवसर देते ही हैं। दुनिया की दृष्टि में लंगडा दिखने वाले घोडे को जीवन की रेस जीतने का अवसर एवं शक्ति जरुर उपलब्ध कराते हैं।
मैं इन्शुरन्स कंपनी में एजंट की हैसियत से कार्यरत हूं। हमें हर साल 12 पॉलिसियों का कोटा पूरा करना होता है। एक साल मैं यह कोटा पूरा नहीं कर पाया। मैंने 14 मेंबर किए थे मगर उन में से एक मेंबर का चेक, उसकी दस्तखत सही न होने की वजह से डिसऑनर हो गया और अन्य दो मेंबर भी सेहत से जुडे कारणों की वजह से नामंजूर हो गए। इस तरह तीन मेंबर नामंजूर होने की वजह से मेरे द्वारा बारह की जगह पर केवल ग्यारह मेंबर ही हुए। हमारा मैनेजर बहुत ही सख्त स्वभाव का था और किसी की कोई भी बात नहीं सुनना चाहता था। मैंने उन्हें समझाना चाहा पर वे नहीं माने।
वे मुझ से बोले कि, ‘अगर मैं अगले छ: महीनों में 20 नए प्रपोजल ला सका तो ही वे मेरी एजन्सी बरकरार रखेंगे।’ आज के स्पर्धात्मक युग में यह कर पाना मुश्किल था और मुझे चिन्ता हो गई। वह लक्ष्य पूरा करने के लिए मैंने जीतोड मेहनत की मगर सफल नहीं हो पाया। अब एजन्सी बंद होने के डर से मैं चिन्ता सताने लगी क्योंकि मैं पिछले 18 सालों से यह कार्य कर रहा था और इस तरह से एजन्सी खोई जाने का मुझे दुख हो रहा था।
ऐसे समय में बापू के अलावा भला और कौन तारता? मेरे बापू मुझे इस संकट से बचाएंगे इसका मुझे विश्वास था। मैं हर रोज ‘ॐ मन:सामर्थ्यदाता श्री अनिरुद्धाय नम:’ यह जप तो करता ही था। एक महीने बाद मुझे पता चला कि हमारे सख्त ब्रांच मैनेजर की बदली हो चुकी है और अब एक समझदार मैनेजर उनके स्थान पर आए हैं। एक दिन धीरज करके मैंने उनसे मिलकर सत्य परिस्थिति बयान की। उन्होंने मेरी बात सुनकर कहा, ‘चिन्ता मत कीजिए, आपकी एजन्सी बंद नहीं की जाएगी। आप कोशिश करते रहिए।’ ऐसा कहकर मेरी एजन्सी की मुद्दत बढा दी और यह बात मेरे नाम उनकी दस्तखत वाला एक लेटर टाईप करवाते हुए उस में भी लिखी थी।
जो चिन्ता पिछले एक महीने से मेरे नींद उडाए हुए थी, वह बापूकृपा से यकायक दूर हो जाने की वजह से मुझे बडी खुशी हुई। मेरे सिर से एक बहुत बडा भार उतर गया और मैं बापूजी द्वारा दिए गए अवसर का अधिकाधिक इस्तेमाल करने में जुट गया। हे बापू, तेरी प्रेमकृपा अपरंपार है!
॥ हरि ॐ ॥