॥ हरि ॐ ॥
मैं एक अखबार में छपनेवाले श्रीअनिरुद्ध बापूजी के अनुभव हमेशा पढा करती थी। लोगों को आए हुए बापूजी के अनुभव मुझे अच्छे लगते थे। धीरे धीरे मेरी बापूजी के प्रति श्रद्धा बढने लगी। उन लोगों को जैसे अनुभव हुए हैं क्या वैसे अनुभव मुझे भी हो सकते हैं, कभी कभी मेरे मन में ऐसा विचार आता था।
और वह दिन भी आ गया जब मुझे मेरे सद्गुरु की सर्वव्यापकता का साक्षात अनुभव हुआ। हुआ यूं कि, एक दिन मेरी बहन का बेटा सुजय अचानक रूठकर घर से निकल गया। बहन ने यह बात हमें फोन पर रोते हुए बताई। यह सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन फिसल गई और मैं भी रोने लगी। इतने बडे शहर में उसे कहां ढूंढें? और कुछ अनहोनी हो गई हो तो? ऐसे कई विचार मन में उठ रहे थे।
अंत में हमारे जैसे तकलीफ में फंसे हुए लोगों का तो बापू ही सहारा हैं, है ना? मैं बापूजी का ‘ॐ मन:सामर्थ्यदाता श्रीअनिरुद्धाय नम:’ यह जप करती रही। रात को मैं बापूजी के फोटो के समक्ष बैठकर बहुत रोई। उन्हें मेरी व्यथा सुनाई और प्रार्थना की कि, ‘बापू, किसी भी तरह सुजय को कल तक घर ले आईए। यह केवल आप ही कर सकते हैं।’
मैंने रोते हुए बापूजी पर यह भार डाला और फिर अपने काम में मग्न हो गई। थोडी देर में दरवाजे पर दस्तक हुई। अब इस वक्त कौन हो सकता है, ऐसा सोचते हुए दरवाजा खोला और देखते ही अचंभा हुआ! दरवाजे पर सुजय था। इतने बडे शहर में ठीक हमारे पास कैसे आ गया? हम तो कुछ ही दिनों पूर्व डोंबिवली में रहने गए थे। सुजय के पास हमारा पता भी नहीं था। फिर वह अपनी मां के पास न जाते हुए हमारे पास कैसे आया? यह सोचकर मुझे हैरानी हो रही थी। फिर धीरे धीरे बात समझ में आई - यह सारी बापूजी की ही लीला है! मानो बापूजी ने ही उसे ठीक मेरे पास लाया था।
हमें बहुत खुशी हुई। इस अघटित लीलाद्वारा हमें सद्गुरुतत्व की अगाध शक्ति का अनुभव हुआ। बापूराया, तेरी कृपा इसी तरह हम सब पर बनी रहे। तेरे चरणों में यही प्रार्थना करती हूं कि, हम से अधिकाधिक भक्ति एवं सेवा कराते रहना।
॥ हरि ॐ ॥