॥ हरि ॐ ॥
जब सभी मानवीय प्रयत्न विफल हो जाते है; तब वह केवल एक हमारे बापूराया हमारी पुकार सुनकर दौडे चले आते है और हमें उस संकट से बाहर निकालते हैं। बापूभक्त यह अनुभव बहुत बार ले चुके होते हैं, मुख्य बात यह है कि इस ‘‘नियम’’ में कभी भी कोई चूक नही होती चाहे हम सात समंदर पार हो!!
ऐसा ही एक अनुभव मुझे हाँगकाँग के हवाई अड्डे पर आया। मेरी भारतयात्रा खत्म होने पर मै जब वापस लॉस एन्जेल्स जा रही थी तब मुझे हाँगकाँग में विमान बदलना था। दूसरी फ्लाईट लेते समय सिक्युरिटी चेक से फिर से जाना होता है। उस समय सुरक्षारक्षक को मेरी बॅग में रखी (बबल प्लास्टिक में ठीकसे लपेटी हुयी) हमारी संस्थाद्वारा तैयार की गई ‘‘इकोफ्रेंडली गणेशमूर्ति’’ आपत्ती जनक लगी और उसने मूर्ति को बाहर निकालने को कहा। खूब अच्छी तरह पॅक की गई और हलके से रखी गई उस मूर्ति के लॉस एन्जेल्स तक ले जाने के विचार से मैं चिंतित थी। ठीक से पॅक कर के उसे हँड बँग में भरा था। अब सुरक्षा रक्षक सारी पॅकिंग निकालेगा, मूर्ति देखकर वह वापस भी देगा परंतु बाद में मै उसे फिर से कैसे पॅक करुँगी? यह सोचकर मैं परेशान थी। उस सुरक्षा रक्षक को ठीकसे अंगरेजी भी नही आती थी। वह वहाँ की (हाँगकाँग) स्थानीय भाषा बोल रहा था। मैं उसे जी जान से समझा रही थी कि यह हमारे भगवान की मूर्ति है, इकोफ्रेंडली है इ.इ. पर उसे कुछ समझ नही आ रहा था। कुछ देर तो इशारों से बाते करते रहे, बाद में वह सीधे बॅग में हाथ डालकर मूर्ति बाहर निकालने लगा। मेरी सांस मानों रुकने लगी, क्योकि वह मूर्ति का सिर पकड़कर खींच रहा था। मूर्ति आसानी से न निकलने के कारण वह उसे दाँये - बाँये घुमाकर निकालने लगा। मैं उससे बिनती कर रही थी कि मैं निकालती हूँ आप रुको। परंतु वह सुनने को तैयार ही नही था।
अब मूर्ति बाहर आने पर उसकी जाने क्या अवस्था होगी, इस डर से मैंने असहाय होकर बापू को पुकारा ‘‘बापू अब आप ही कुछ करो और गणपति बाप्पा की मूर्ति को बचाओ।’’
किसी का विश्वास हो न हो, जिस क्षण मैंने बापू को पुकारा उसी क्षण उस सुरक्षारक्षक ने बॅग में से हाथ बाहर निकाला और मुझे कहा कि जाँच हो गई। सच देखा जाये तो जिस मूर्ति को वह खींचकर बाहर निकालना चाहता था, उसे वह दिखी भी न थी, परंतु एक क्षण में उसका विचार बदल गया था। बाद में उसने बॅग में से निकाली गई अन्य वस्तुएँ भी वापस डालने में मेरी मदद की, ताकि मेरी बाकी सुरक्षा जाँच जल्द पूरी हो।
लॉस एन्जेल्स पहुँचने पर घर जाकर मैंने डरते हुए वह मूर्ति बाहर निकाली। मजे की बात यह थी कि अब वह बडी आसानी से बॅग से निकल आई और पॅकिंग खोलने पर देखा कि मूर्ति एकदम सही सलामत थी। उसे एक खरोंच तक न आई थी।
मेरे बापू की यह लीला देखकर मेरी आँखो से आँसू बहने लगे। उस सुरक्षा रक्षक ने बाप्पा की मूर्ति का सिर पकडकर खींचा था, सिर को इधर उधर घुमाया था, परंतु मूर्ति को खरोंच भी न आई थी।
यह लीला केवल बापू कर सकते है। एक बार किया हुआ संकल्प कि,‘‘यह मूर्ति सात समंदर पार हमारे घर व्यवस्थित रुप से पहुँचनी चाहिये’’ करने पर उसे प्रत्यक्ष रुप मे लाने का कार्य वह किये बिना रहेंगे क्या?
हे देव ! सत्यसंकल्पप्रभु बापूराया !! तुम्हे कोटी कोटी प्रणाम ! हमारी तरह सर्वसामान्य भक्तों को अपने चरणों से कभी दूर न करना यही प्रार्थना !!!
॥ हरि ॐ ॥