॥ हरि ॐ ॥
मेरा परमेश्वर भे की पुकार सुनकर स्वयं प्रत्यक्ष किस तरह दौडकर आता है यह अनुभव मैंने स्वयं किया है।
शुक्रवार दिनांक 8 जानेवारी 2010 के दिन मैं, मेरी माँ और मेरा छोटा भाँजा, हम तीनों नासिक जिले के ‘नैताळे’ गाँव की यात्रा में, हमारे पिताजी, जिनकी नारियल की दुकान है, की मदद करने हेतु गये थे। दिन भर काम करने के पश्चात शाम 4 बजे मंदिर में देवी के दर्शन हेतु गये। शाम को 7 बजे तक कोपरगाँव पहुँचने का विचार कर, उस उद्देश से जल्दी कर रहे थे, परंतु वहाँ से निकलने में हमे देर हो गई क्योंकि दर्शन हेतु काफी भीड़ थी।
‘‘नैताळे’’ से हम विंचूर गाँव में आये। परंतु वहाँ से कोपरगाँव जानेके लिये हमें बस नही मिल रही थी। वही शाम के सात बज गये। वहाँ सुनसान रास्ते पर हम खडे थे। मैं और मेरी माँ बहुत डर रहे थे। हमने बापू का ध्यान किया, प्रार्थना की और उन्हे पुकारने लगे। तभी एक सफेद रंग की इंडिका कार हमारे सामने आकर खडी हो गई। रास्ते पर काफी आगे खडा एक जवान लडका दौडकर गाडी की तरफ आया और कहने लगा, ‘‘मुझे गाडी में बिठा लो।’’ तब गाडी में बैठा व्यक्ति बोला, ‘‘अरे तुम तो जवान हो, तुम्हे क्या जल्दी है? तुम्हे तो देर हो जाये तो भी कोई बात नही। परंतु ये दो लेडिज है और छोटा बच्चा भी इनके साथ है, मैं इन्हे पहले ले कर जाऊँगा।’’ उनका यह वाक्य सुन कर हम बापू का नाम लेकर गाडी में तुरंत बैठ गये।
गाडी 2-3 कि.मी. जाने के बाद आगे बैठा व्यक्ति पीछे मुड़ा और बोला, ‘‘आपके अभी हुये ऑपरेशन के बाद जो आपने आयुर्वेदिक ट्रिटमेंट शुश की हैं, उसे जारी रखिये, उन दवाईयों का आपको धीरे धीरे परंतु निश्चित लाभ होगा, आप उन्हे बंद मत करिये।’’
इन्हे यह जानकारी कैसे? यह सोचकर मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा और पूछा कि हमारी यह जानकारी आपको कैसे? तब वे बोले, ‘‘मैं कौन हूँ इस बात का पता आपको चल ही जाएगा परंतु आपकी दवाई में जो आप गोबर और गोमूख का इस्तमाल करते हैं; वह उचित है। उसे (गोबर को) आप 8 बार छान लिजिए। भगवान और गोमाता की कृपा से अगले 10-15 सालों तक आपको कुछ भी नही होगा।’’ बाद में उन्होंने हमे हमारी घर की काफी बाते बताई।
उनकी बातों से हमे बार बार लग रहा था कि, ‘‘यह आदमी है कौन? यह ठीक तो है, हमें फँसा तो नही रहा? इन्हे हमारे घर की सारी बाते कैसे मालूम?’’ जब मन में यह विचार चल रहा था, तभी उस व्यक्ति को ध्यान से, करीब से निहारा, पता चला कि उन्होंने सफेद शर्ट और काली पँट पहनी है, उनकी मूँछे सफेद थी, माथे पर केसरी तिलक था। संपूर्ण बातचीत में उन्होंने मुझे बार बार बताया कि तुरहारी माताजी जल्दी ही अच्छी हो जायेगी।
बातचीत करते करते हम कोपरगाँव के स्टँड पर आये। तब रात के नौ बजे थे। तब उन्होंने कहा कि, ‘‘मै आपको घर छोड देता हूँ।’’ और बिना हमारे कुछ बताये, हमारा पता जाने बिना, गाडी हमारे घरकी ओर लाने लगे। घर आने पर हम गाडी से उतरे और मेरी माँ ने पूछा कि कितने रुपये दे? तब वे बोले, ‘‘मैं रुपये नही लूँगा।’’ परंतु माँ के बहुत आग्रह करने पर उन्होंने दोनो का 1-1 रुपया अर्थात 2 रुपये का सिक्का उन्होंने लिया। गाडी को पुन: घुमाकर वे चले गये। जब हम घर में आ गये तब कुछ समय बाद वे पुन: आये और बोले, ‘‘बेटा, थोडा पानी मिलेगा?’’ मै पानी लेने गई और वापस आई तब वे नही थे। मैंने आसपास सारे परिसर में ढूँढा परंतु वह व्यक्ति और उनकी गाडी फिर कभी नही दिखे। गाडी में इतनी देर तक वे मुझसे, मेरी माँ से बाते कर रहे थे। परंतु हम उन्ही की बातों में इतने डूब गये थे कि उनसे पूछ भी न पाये कि वे कौन है? क्या करते है? इत्यादि
बाद में जब शांती से इस चमत्कारी घटना का विचार करने लगे तब अचानक दिमाग में मानो सब साफ साफ दिखाई देने लगा, जो व्यक्ति हमारी मदद करने आया, वह हमारे भगवान के सिवा कौन हो सकता है? मुझे तो इस बारे में कोई शंका नही। यह बापू देखिये कैसे है, कितना ही कठिन प्रसंग हो, मदद हेतु दौडे चले आते है, खुद की पहचान बताने से पहले ही इस तरह से बातों में भुला देते हैं कि सामने वाला उनका नाम-पता भी पूछ नही पाता। ऐसे यह नट नायक बापू, पवयं पर कोई कताल भाव नही लाना चाहते, जब कि हर बार वे स्वयं ही कर्ता करविता होते हैं।
॥ हरि ॐ ॥