॥ हरि ॐ॥
अनिरुद्धा तेरे द्वार जो आया, खाली हाथ न जायेगा।
तेरी कृपा से नाश होगा, मेरे एक एक संकट का॥
सर्वप्रथम मैं बापू, नंदाई और सुचितदादा के चरणों में नतमस्तक होकर, ‘वही मुझसे हाथ पकडाकर यह अनुभव लिखवा रहे है’, ऐसा मानती हूँ।
हम पिछले दो ढाई साल से बापू के सत्संग में है। वैसे तो मैं कभी भी किसी भी भगवान पर विश्वास नही करती थी। परन्तु बापू परिवार के श्री अनिरुद्ध उपासना केंद्र में जब आई तो पता नही क्यों मेरी श्रद्धा दृढ हो गई। अब तो संपूर्ण जीवन बापूकृपा से भर गया है।
‘‘कृपासिंधु’’ में आनेवाले अनेक बापूभक्तों के अनुभव पढ कर मेरा भी मन होता था कि मै भी एक अनुभव लिखूँ ! पर मेरे पास कोई अनुभव था ही नही। लगता था कि सदगुरु बापू का मेरी ओर ध्यान है भी या नही?
परन्तु बाद में मुझे जो अनुभव आया, उससे पता चला कि ऐसा सोचना भी कितना गलत है।
27 जुलाई 2010 के दिन मेरे पिताजी का निधन हुआ। कुछ दिनों तक कई लोग घर पर सांत्वना देने आते रहे। कोई भी जब आता था तो मेरा सिर जोर से दुखने लगता था। मैने सरदर्द की दवाई भी ली परन्तु फिर भी दर्द कम न होता था। फिर मै ससाणे नगर स्थित दवाखाने में गई और दो दिन की दवाई ली। वहाँ सलाईन भी लगाई थी। उसी दौरान मुझे चक्कर आने लगे। आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा, चीजे घुंघली दिखाई देने लगी। मै बुरी तरह डर गई और तुरंत बापू के मंत्र ‘‘ॐ मन:सामर्थ्यदाता श्री अनिरुद्धाय नम:। ’’ का जाप शुरु किया।
14 अगस्त के दिन मेरा दर्द इतना बढ गया कि मै सहन नही कर पाने के कारण हडपसर के ‘‘मोहिनीतारा हॉस्पिटल’’ में एडमिट हो गई। डॉक्टर द्वारा मुझे जो भी इंजेक्शन दिये गये उससे मेरे दर्द पर कोई असर नही हो रहा था। मेरी आँखों की पुतलियाँ घूम गई और मुझे सब दिखाई देना बंद हो गया डॉक्टर की सलाह के अनुसार स्कॅन के समय मेरे पति, भाई और भाभी वहाँ मौजूद थे। मेरा जाप निरंतर चल रहा था और वह बापू तक पहुँच रहा था, सारे टेस्ट होने के बाद रिपोर्टस नॉर्मल आये। इतनी तकलीफ, सरदर्द, चक्कर इ. के बावजूद रिपोर्टस नॉर्मल आना, यह केवल बापू की लीला ही थी।
मेरी आँखे फिर भी ठीक न होने के कारण डॉ. ने एम. आर. आय. करने के लिये और रिपोर्ट के अनुसार रीढ की हड्डी में से पानी निकालने की सलाह दी, ऐसा ही किया गया।
उस दिन (19 अगस्त 2010 गुरुवार) मेरे भाई के घर चक्री पादुका पूजन था। मैने वहाँ जाकर संस्था की उदी और प्रसाद लिया और मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मुझे आँखों से थोडा थोडा दिखाई देने लगा है। प्रथम सोचा कि यह भ्रम है, परन्तु धीरे धीरे कुछ ही देर में मुझे पूर्ववत साफ साफ दिखाई देने लगा।
ये कैसे हुआ? क्या हुआ? मुझे ही समझ नही आ रहा था। परन्तु इस घटना से मानो मेरा पुनर्जन्म हुआ था।
मै और मेरा भाई पास पास ही रहते है। बापू का कोई भी कार्यक्रम होने पर हम साथ साथ करते है, परन्तु इस बार पादुका पूजन के समय भाई ने उसका अकेले का ही नाम बुकिंग के समय पर दिया था। तो मुझे बुरा लगा। मेरा नाम क्यों नही दिया? बादमें शांती से विचार किया तो लगा कि प.पू. बापू ने ही उसे मानो ऐसी बुद्धि दी होगी क्योंकि पादुका पूजन के समय मै, पति, देवर सब हॉस्पिटल में थे। अत: जो हुआ अच्छे के लिये ही हुआ।
उपरोक्त ट्रिटमेंट के समय एक बापू भक्त मोहिनीतारा हॉस्पिटल में सेवा हेतु तैनात थे। अत: मुझे लग रहा था मानो मेरे साथ बापू ही है। डॉक्टर ने भी भगवान पर विश्वास रखने को कहा था। प.पू. बापू द्वारा भक्तों को दिया हुआ वचन ‘‘मै तुम्हें कभी भी त्यागुंगा नही’’ पूर्णरूप से निभाया और मेरी आँखे पूर्णत: ठीक होकर मै घर आई। इस अनुभव के कारण बापूचरणों में मेरी श्रद्धा और भी दृढ हो गई।
पादुका पूजन की इच्छा भी बापू ने पूर्ण की उनकी ही इच्छा से हमे पादुका पूजन के लिये 13/9/2010 यह तारीख मिली और मेरी बीमारी के कारण जो अवसर छूट गया था (पूजा का अवसर) वह भी उन्होंने प्राप्त करवा दिया।
सच मे ऐसी लीला केवल वही कर सकता है। बापू ! मुझ पर आया संकट केवल आपही के कारण टला और मै बच गई। अब शेष जीवन और अगले सारे जन्म सदगुरुतत्व की सेवा में समर्पित हो यही आपके चरणों में प्रार्थना है।
॥ हरि ॐ॥