॥ हरि ॐ ॥
प.पू. बापू दि. 12 दिसंबर 2010 के दिन औरंगाबाद में आने वाले थे, अत: सारे भे और केंद्र के कार्यकर्ता जोरदार तैयारी में लगे थे। कार्यक्रम में प. पू. बापू के पादुका पूजन, अनिरुध्द महिमा कथन, मुंबई से आने वाले प्रवचनकारों का प्रवचन, व्यक्तिगत स्तरपर प.पू. बापू की जानकारी बताना इ. कार्यक्रम थे।
दि. 2 अगस्त 2010 के रोज एक प्रवचन प्रतापनगर में आयोजित किया गया था। मुंबई से श्री विनोदसिंह वैद्य आकर प्रवचन देने वाले थे। मै और मेरी पत्नी शाम 6.30 बजे बाईक से प्रतापनगर गये। वहॉं बापू के बारे में व्यक्तिगत जानकारी, कुटुंब की जानकारी, सदगुरुत्व के लक्षण, बापू के सेवाकार्य और भक्तिकार्य, प्रवचन की जानकारी लोगों को बहुत अच्छी लगी। अनेक नये जिज्ञासु लोग यह जानकारी सुन रहे थे।
प्रवचन के बाद करीब 8.30 बजे सब धीरे धीरे जाने लगे। एक दूसरे को हरी ॐ कह कर बिदा होने लगे। आखिर मै भी अपनी बाईक पर निकला। पीछे पत्नी बैठी थी। कुछ अंतर के बाद हमें 3 महिलायें पैदल जाती दिखी। मेरी पत्नी ने उन्हे हरी ॐ कहा और हम आगे जाने लगे। परंतु मुझे विचार आया कि ये तीनों पैदल क्यों जा रही है? इन्हे रिक्षा नही मिली क्या? मैने अपनी बाईक आगे जाकर साईड में लगा दी और रुक गया।
गाड़ी चालू थी और एक पैर जमीन पर टेक कर मै उन तीनों की राह देख रहा था कि वे बाईक तक आयेंगी तो पूछुँगा। अचानक एक दूसरा मोटर सायकल चालक मेरी गाडी से आकर टकराया। यह टक्कर इतनी तीव्र थी, कि मेरी पत्नी और मै दोनो पृष्ठभाग पर जोर से गिर गये। वह चालक भी गिरा। तभी एक वेग से आती हुई रिक्षा हमारी दिशा में आती दिखी। सबकुछ इतनी तेजी से हो रहा था कि कुछ न सूझ रहा था। रिक्षा का वेग देखकर लगता था कि यदि इसने तुरंत ब्रेक न लगाये तो यह हम से ही जोरदार टकरायेगी।
इस स्थिति में बापू बिन कौन तारणहार? यह विचार दो सेकंड में आया, उन दो तीन पलों में ही रिक्षा हमतक पहुँची, अब यह हमपर चढेगी इस डर से दिल बैठ गया, तभी वह एक कट मारकर निकल गई। हमारे एकदम इतने पाससे निकल गई कि यदि उसके चालक का नियंत्रण जाता तो उसके पहिये हमारे सर पर से जाते। जान पर बन आई थी लेकिन थोड़े में टल गई।
मै उठा, गाडी खडी की। पत्नी को थोडा जर्क लगा था। मुझे कुछ भी न हुआ था। एक खरोंच तक न आई थी। गाडी भी ठीक थी। बापू ने हमे जरा भी तकलीफ़ न होने दी थी। दुर्घटना तो हमारे प्रारब्ध में थी। परंतु हम प.पू. बापू के छत्रछाया में, कृपाछत्र में रहने के कारण बच गये थे, यह त्रिवार सत्य है।
आज हम जन चारों ओर देखते है; तो पता चलता है कि दुर्घटनाएं बच्चण्ढ रही हैं। परंतु हम बापू के साथ है और वे जानलेवा दुर्घटनाओं से भी धीरे से किस तरह अपने भक्तों को बाहर निकालते हैं, यह अनुभव आया। जिसने उधहे ‘‘मेरा बापू’’ कहा उसके लिये इस अनिरुद्ध ने गवाही दी है, ‘‘मै तुम्हे कभी भी त्यागूंगा नही’’ और वह इस नियम को हमेशा निभाते ही निभाते है।
॥ हरि ॐ ॥