॥ हरि ॐ ॥
परमपूअय बापू के पंचगुरुओं को तथा बापू, नंदाई एवं सुचितदादा को मेरा तथा मेरे बच्चों का भावपूर्ण लोटांगण, क्योंकि उनकी कृपा से ही हम आज यह अनुभव कथन करने के लिये जीवित हैं। 26 अप्रैल 2010 का दिन हमारे लिये कालरात्री ही था। परंतु हमें वह सुनायी नहीं पड़ रही थी क्योंकि मॉं महिषासुरमर्दिनी के घंटानाद हमारा सुरक्षा करने के लिये तत्पर था।
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य सा जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो न: सुतानिव ॥
इस पवित्र जप का परमपूज्य बापू ने एक गुरुवार के दिन हमसे 108 बार जप तथा मॉं महिषासुरमर्दिनी की 9 बार आरती करवा ली थी। इसके फलपवरुप यद्दपि वो गुरुवार की रात हमारे लिये कालरात्री बनकर आयी थी फिर भी सद्गुरु ने संपूणल सुरक्षा कवच रदान करके ही हमें घर भेजा था।
घर के काम की चिंता, ऑफिस की भागदौड़, रामनवमी उत्सव में की गयी सेवा इत्यादि के चलते थके होने के बावजूद 26 अप्रैल के सवेरे 5.00 बजे घर में सिलिंडर के गैस की गंध के कारण मैं जाग उठी़। पहले तो मुझे लगा कि मेरी लड़की स्वाती ने सवेरे कॉलेज जाने से पहले नहाने के लिये पानी गरम करते समय सिलेंड़र चालू किया होगा। चूल्हे पर पानी गरम करने के लिये रखकर थोड़ा 2 मिनट की नींद लेने की उसकी आदत हैं।
परंतु जब मैंने उठकर देखा तो सब लोग सो रहे थे। फिर यह गंध क्यों आ रही है? मन में प्रश्न उठा। घर में अंधेरा होने के कारण लाईट जलाना ही था। लाईट जलाने के बाद गैस का चूल्हा, रेग्युलेटर बटन सब कुछ चेक किया। परंतु गंध कम नहीं हुई। 21 अप्रैल के दिन भरा हुआ सिलिंडर आया था। उसके ऊपर के ढक्कन चेक किये तो देखा सबकुछ ठीक था। फिर गंध कहॉं से आ रही है? गैस की बास अधिकाधिक बढ़ती ही जा रही थी। मेरे हाथ पैर कांपने लगे। मैं बापू की तस्वीर की ओर देखते हुये, प्रवचन स्थल पर होनेवाला जप जपने लगी.। चारों बच्चों को जगाया और उन्हें घर से बाहर जाने को कहा। दरवाजा व खिड़कियॉं खोल दी। किसी को फोन करने की सोच रही थी लेकिन मोबाईल की बॅटरी डाऊन थी। मोबाईल चार्जिंग पर लगाकर, मेरे एक रिश्तेदार जो अग्निशामक दल में कार्यरत हैं उधहें सारी हकीकत बतायी। उन्होंने सलाह दी कि नजदीक के अग्निशामक दल को फोन करके बुला लो।
परंतु मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था। इतनी गंध क्यों आ रही है? अत: खात्री करने के लिये भरे हुये सिलेंडर के बगल में रखे तेल कैन, गेहू ज्वार के आटे के डब्बे आदि हटाने के लिये आगे गयी तो क्या देखती हू कि सिलेंडर के नीचे के हिपसे मे जहॉं गोल जोड़ होता है वहॉं पर सफेद बर्फ जैसा पदार्थ जम चुका था.। ऐसा देखते ही अचानक मुँह से शब्द निकल पडे, ‘बापू! यह क्या?’ और मेरा पूरा शरीर थरथर कांपने लगा। उसी अवस्था में मैं मन:सामर्थ्यदाता का नाम लेती रही तथा उपरोक्त जप जपती करने लगी। फिर मेरे रिश्तेदारों का फोन आया और उन्होंने बताया कि सिलेंडर के चारों ओर गीली चादर लपेट दो अथवा सिलेंडर उठाकर बिल्कुल बाहर रख दो। परंतु ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी.। तभी मेरी बड़ी लड़की ने ‘जस्ट डायल’से मरोल अग्निशामक दल का नंबर लेकर उन्हें फोन किया। वे लोग मात्र 7-8 मिनट में ही आ पहुंचे.। वे वह सिलेंडर उठाकर हमारी इमारत के सामने खुले मैदान में खाली करने के लिये ले गये। पूरे दो घंटे गैस निकालने में लग गये। सिलेंडर की हालत देखकर उन्होंने मुझसे कहा कि यदि और 5 मिनट की देर हो गयी होती तो विस्फोट हो गया होता।
ऐसा सुनते ही आँखों के सामने कलियुग के इस त्राता का चेहरा दिखायी देने लगा। दौड़कर ही मैं घर में आयी और मेरे बापू की तसवीर से लिपटकर खूब रोयी; क्योंकि उस एक सिलेंडर के विस्फोट से तथा घर के अंदर ही चालू सिलिंडर के कारण भीषण विस्फोट होकर तीन मंजिली इमारत हिल गयी होती। उसमें हम तल मंजिल पर रहते हैं। हमारे घर की सीढियों के बगल में ही सभी निवासियों के इलेक्ट्रिक मीटर भीव हैं। बाप रे, कितनी भयंकर घटना घटती ।
अग्निशामक दल के लो 7-8 मिनट में ही आ गये थे। परंतु यह ‘कृपासिंधु बापू’ घटना शुरु होने से पहले से ही हमारे साथ ही थे। उस घबरायी हुयी स्थिति में हम गलतियाँ करते ही जा रहे थे। गैस की गंध के बावजूद मैंने फ्रिज, मोबाईल चार्जिंग पर लगाया था। वापतव में ऐसे वे इलेक्ट्रिक उपकरणों का उपयोग नहीं करना चाहिये, यह जानते हुये भी मैंने वह किया था। वहाँ पर तो एक चिंगारी ही काफी थी। आज उसने सिर्फ मेरा ही नहीं बल्कि इमारत के सभी लोगों के प्राण बचाये थे।
मेरी जिंदगी की वो ‘धोखे की घंटी’ मेरे अनिरुध्द राम ने हमें बहुत बड़े संकट से पूरी तरह बचा लिया। उनका जितना भी आभार मानें कम ही होगा। इस अभयदाता ने हमें जन्मजन्मांतर का ॠणी बना दिया। अत: उनके चरणों मे हम सब का भावपूणल लोटांगण।
॥ हरि ॐ ॥