॥ हरि ॐ॥
जब हम सद्गुरु पर पूरे विश्वास से संपूर्ण जिम्मेदारी सौंप देते हैं तो वे निरंतर हमारी रक्षा करते हैं ऐसे अनुभव तो बापूभक्तों को नित नित मिलते रहते हैं। और इस कलियुग में तो मेरे परमात्मा, इस बापूराया का काम काफी बढ़ गया है। हमारी गलतियों के कारण, लापरवाही के कारण हमें कई बार ‘उसे’ ही पुकारना पडता है.... और हमारे द्वारा पुकारते ही ‘वे’ दौड़कर न आये ऐसा न तो कभी हुआ और ना ही कभी होगा।
मैं यहां पर आपको मेरा अनुभा बताना चाहती हूँ। हम लंदन में रहते हैं। मैं सन् 2005 में मेरे सात साल के बेटे को छुट्टियों में भारत लेकर आयी थी। परन्तु उसका आनंद शीघ्र ही समाप्त हो गया। मैं और मेरा बेटा दोनों व्हायरल फीवर से बीमार हो गये। फलस्वरूप 18 जुलाई को पहले से तय हमारी वापसी की यात्रा 24 जुलाई तक आगे बढ़ानी पडी।
22 तारीख तक हमारी तबियत काफी ठीक हो गयी थी। अत: मैं अपने बेटे को लेकर छोटीमोटी खरीदारी के लिए टैक्सी से जा रहे थे। हमारा परिवार टैक्सीवाले से अच्छी तरह परिचित था। मैं जब भी भारत आती थी, हर बार उसकी ही टैक्सी ले जाया करती थी।
अत: इस बार भी हम उसी की टैक्सी से बाहर निकले। मैंने मेरा पैसों का बटुआ साथ में लिया था। जिसमें 15 पौंड, क्रेडिट कार्ड्स और कुछ महत्त्वपूर्ण फोन नंबर थे। शॉपिंग करके घर लौटते समय मेरे ध्यान में आया कि मेरा बटुआ कहीं गिर गया है। मुझे अच्छी तरह याद था कि मैं इस टैक्सी से ज्यादा से ज्यादा दस कदम ही चली थी। और इसी दस कदमों की दूरी पर मेरा बटुआ गिरा था। मैं अपने पिताजी तथा भाई को लेकर फिर उस स्थान पर गयी और उस जगह पर काफी खोजा परन्तु कुछ भी हासिल नहीं हुआ। वह बटुआ नहीं मिला।
घर के सभी लोग निराश हो गये। माँ जी तो उस रात ठीक से सो ही नहीं पायी। उस दिन गुरुवार था। अत: हम प्रवचन सुनने के लिये बान्द्रा आये हुये थे। प्रवचन पूरा होने के बाद बापूजी के दर्शन करते वक्त मैंने मन ही मन उन से कहा, ‘बापू, मेरा पैसों का बटुआ गायब हो गया है। परन्तु मुझे कोई भी शिकायत नहीं है। आपने मुझे जीवन में इतना कुछ दिया है कि उसकी तुलना में यह बटुआ क्या चीज है! आपकी कृपा हम पर बनी रहे, यही आपके चरणों में प्रार्थना है।’
दूसरे दिन जब मैं हमेशा की तरह रामरक्षा का पाठ कर रही थी तभी फोन की घंटी बजी। भाभी ने फोन उ़ठाया। फोन मेरे भाई का था। भाभी ने फोन मुझे दिया।
भाई ने मुझे जो कुछ बताया, वो तर्क से परे ही था। उसे ‘हैपी होम’ से फोन आया था कि एक बापूभक्त को मेरा बटुआ किसी रेलवे स्टेशन के पास रेलवे ट्रॅक पर पड़ा मिला था। उसमें रखे बापू व नंदाई के फोटो को देखकर उस व्यक्ति ने उसे हैपी होम के सिक्युरिटी गार्ड के पास लाकर दिया।
सौभाग्य से हैपी होम के राजेंद्रसिंह जावले हमारे परिचित हैं। बटुए मे मिले विजीटींग कार्ड् को देखकर वे जान गये कि यह हमारा है और उन्होंनें भाई को फोन किया और शिनख्त करके बटुआ ले जाने को कहा। इस तरह इस चिंताजनक प्रसंग का अंत बापू नें ‘हैपी एंडींग’ से किया। बटुवे में रखे बापू-आई के फोटो एवं 15 पाऊंड गायब थे। शायद जो बड़ा नुकसान मेरे प्रारब्ध में लिखा था वह थोड़े में ही निपट गया था। तब मैं समझ गयी कि हैपी होम में यह बटुआ पहुंचानेवाला व्यक्ति कौन हो सकता है।
अर्थात यह सब घटित होते समय न जाने क्यों, मेरे मन शांत ही था। बापू किसी भी तरह मेरा बटुआ मुझे दिला ही देंगे, ऐसी मेरी अंतरात्मा की आवाज थी। मेरा भगवान-मेरे बापू कदापी मेरा त्याग नहीं करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास था और बापूजी ने उसे साबित कर दिया और उन्होंने यह भी जता दिया कि वे सदैव हमारे साथ ही होते हैं। यदि हम अपनी श्रद्धा और सबूरी के दो पैसे ही बापूराया को दे पाएं तो ‘वों’ उनके अकारण कारुण्य की वजह से आजीवन हमारी रक्षा करते रहते हैं, इसका यह एक उदाहरण है।
आनंदाचा हा महासागर
प्रेमकृपा अपरंपार
करीन रक्षण निरंतर
कैवल्य अपार दावतो
॥ हरि ॐ॥