॥ हरि ॐ ॥
हम सभी जानते हैं कि 5 अगस्त 2010 में लेह-लद्दाक में 20-25 मिनट कुदरति विपदा में जन, धन की बडी मात्रा में हानि हुई थी। मैं वहां से 20-25 मिनट की दूरी पर ही था। हम 12 लोग वहां एक लॉज में ठहरे हुए थे। प्रत्यक्षदर्शी बापूभक्त का यह अनुभव इस प्रकार है ।
5-8-2010 मुंबई पोर्ट ट्रस्ट के हम 12 सहकर्मी साइट सीइंग के पश्चात अपने चोस्पा नामक लॉज पर शाम के 7 बजे पहुँचे । थकान तो थी ही और दूसरे दिन फिर से साईटसीइंग के लिए जाना था इसलिए हम खाना खाकर जल्दी सो गये। दूसरे दिन सुबह को पता चला कि नजदीक ही बादल फुटने से जान माल का भारी नुकसान हुआ है। सडकें बह गई है, रास्ते बंद हैं, अतः बाहर जाना संभव नहीं है और साईट सिइंग भी नहीं हो पाएगा ।
हम ने घटना स्थल का दौरा करने का निर्णय लिया । वहां का भीषण दृश्य देखकर हमारे होशोहवास खो गए और बापू के अकारण कारुण्य को देखकर आंखे भर आई। जहां हम कल साईटसिइंग हेतु गए थे, अब वहां सबकुछ नेस्तानाबूत हो चूका था। कल जहां हमने आकाशवाणी केंद्र देखा था वहां आज कुछ भी नहीं था । एक तीन मंजिला इमारत अपने खंभे सहित 50-60 फुट दूर फैंकी गई थी । पार्क किए हुए वाहन तो चकनाचूर हो गए थे। मृतकों की संख्या का अंदाजा लगाना मुश्किल था। स्थानीय लोग एवं पर्यटक सहायता के कार्यों में जुटे हुए थे। हम भी उसमें शामिल हो गए।
यह स्थान समुद्र से 14,500 फुट की उंचाई पर होने की वजह से ऑक्सीजन की कमी के कारण कम परिश्रम में भी ज्यादा थकान महसूस हो रही थी। प्रसार माध्यमों में खबर फैलते ही मुंबई से आनेवाले फोनों का तांता लग गया।
हम सुरक्षित थे क्योंकि हमारे बापूजी का वचन है कि, ‘आप सात समन्दर पार रहो, या घने जंगल में, या फिर रेगिस्तान में रहे; संकट में मुझे पुकारते ही, मैं 108% दौडा आऊंगा।’ परंतु उस रात तो मैंने उन्हें पुकारा भी नहीं। तथा बाहर चल रहे मृत्यु के तांडव से भी मैं अनभिज्ञ था । शायद उस दिन की निद्रा चिरनिद्रा बननेवाली थी। परंतु अकारण कारुण्य के महासागर मेरे बापू, पुकारे बगैर ही दौडे चले आए। और उनके वचन याद आ गए। मैं आपका मार्गदर्शक हूँ। तीनों लोक तीनों काल में। आप मुझे भूल भी जाओ मगर मैं आपको कभी न भुलूँगा।
॥ हरि ॐ ॥