॥ हरि ॐ ॥
यदि जीवन में पीछे मुडकर देखें तो महसूस होता हैं कि जीवन की कठीन राह सद्गुरु कृपा से सहज सुंदर बन गई है। और याद आती हैं, कई घटनाएं जहां सद्गुरु कृपा ने हमें बचाया है। ऐसी ही आकस्मिक घटी घटना की याद आते ही मेरी आंखों से सद्गुरु के प्रति कृतज्ञता के अश्रू बह निकलते हैं।
बापूजी मुंबई में, घटना घटी धुले में, मेरी बेफिक्री से मेरा बडा नुकसान हो सकता था जो टल गया। केवल कृपालु सद्गुरुतत्त्व की भक्तरक्षक व्यवस्था के कारण ही ।
धुले में 24 मई 2006 को मेरे भांजे की शादी थी। शादी के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए मैं साडियाँ तथा मँचींग सोने के गहने आदी ले जा रही थी। ऐन वक्त पर बेटे को गर्मी की तकलीफ हुइ और उसकी तबियत नासाज होने के कारण मुझे शादी में अकेले ही जाना पड़ा।
धुले के अग्रवाल हॉल में शादी होनी थी। तीन मंजिला ए.सी. हॉल में मुझे और मेरी बहन के परिवार को दूसरी मंजिल पर आखरी कमरा मिला जो बाल्कनी टेरेस से सटा हुआ था। मुख्य विवाह समारोह पहिली मंजिल पर था। इन कमरों में ताले नहीं थे। इस बात पर चर्चा भी हुई किंतु तालों की व्यवस्था न हो पाई। हम दरवाजे पर कुंडी अटकाकर समारोह में शामिल होने जाते थे।
हल्दी एवं सगाई विधि संपन्न हुई। मैं शादी के समय जो सिल्क की साडी पहनने वाली थी, उसके साथ सोने के गहने जंच नहीं रहे थे, अतः मैंने सारे सोने के गहने निकालकर, आर्टीफिशिअल गहने पहन लिए। सोने के गहनों में चूडियां, बडा मंगलसूत्र, छोटा मंगलसूत्र, चेन, कानचेन मोती सेट का ........। लगभग 10-12 तोला सोना था। वह गहनों का पाऊच बॅग में डालकर उसकी चेन लगाकर शादी के समारोह में गई और सहेलियां से गप्पें करने में व्यस्त थी तभी देखा हमारे परिवार के युवक दो अन्जान लोगों को पीट रहे थे। हम भी वहां पहुँचे। तो वे व्यक्ति कह रहे थे, ‘हमने कुछ नहीं चुराया हमें पुलिस के पास मत सौंपो।’ वहां से निकलकर हम खाने के बाद हॉल की तरफ गए।
सब कुछ होने के बाद जब मैं कमरे में पहुँची तो वहां पर सभी रिश्तेदारों को इक्कठा पाया। मुझे देखते ही बडी बहन ने कहा, ‘पार्टी चाहिए’। ‘तुम्हारा आज का दिन तो रोते ही बीतनेवाला था।’ उसके बाद पूरी घटना का पता चला। मेरी बैग खुली हुई थी और वह गहनों का पाऊच भी उपर ही पड़ा था।
विवाहोपरान्त मेरी बहन को माँ ने कमरे में आराम करने के लिए भेजा था। उसके कदमों की आहट पर उपरोक्त दो व्यक्तियों में से एक मेरे कमरे से बाहर खड़ा रहकर दूसरे को सावधान कर रहा था। स्थिती की गंभीरता जानकर बहन ने उन्हें कमरे में पकडा और उनकी तलाशी ली गई। कितना प्रसंगावधान ! उन्होंने मेरी कपडों के बैग खोली थी। यदि बहन को पहुँचने में 5 मिनट भी देर हो जाती तो उनके हाथ गहनों का पाऊच लग ही जाता।
मात्र एक ही क्षण में बापूजी ने सारे सूत्र अपने हाथों में ले लिए और ऐसा चक्र घुमाया कि मेरा बहुत बडा नुकसान होने से बच गया। मैंने सारे गहने शादी में लाए बिना ताले के कमरे में, बैग में उपर ही रखे और नीचे चली गई थी। इतनी सारी गलतियों के बावजूद भी यह ‘उसका’ अकारण कारुण्य ही था जो मेरा नुकसान होने से बच गया।
हम छोटी बडी गलतियां करते हैं। बेफिक्र रहते है। विभिन्न मोहों में फंसते हैं और पानी जब सर से ऊपर बहने लगता है तब बापू को पुकारते हैं। वह हमें तब भी संभाल ही लेते हैं। नुकसान तो मेरा होता ही और उस पर मायके में गहने चोरी होने का ताना भी सुनना पडता। बापूजी आपही ने बचाया । आपके इस ऋण को कैसे चुकाऊँ? जब भी यह घटना याद आती है तो मन में यह भाव उठता है, ‘अनिरुद्धा तेरा मैं कितना ऋणी हो गया...’
श्रीसाईसच्चरित में कितनी सत्य बात लिखी है कि गुरुमाय अचिन्त्यदानी है।
नुकसान से बचाते हुए मुझसे हुई गलती का अहसास दिलाकर परमार्थ की एक पायदान उपर चढा दी। बापू ने भक्तों से वादा किया है, ‘मैं तेरा कभी त्याग नहीं करूंगा।’
॥ हरि ॐ ॥