॥ हरि ॐ॥
अपने भक्तों के प्रति अकारण कारुण्य एवं ‘‘मैं अपने भक्त का त्याग कभी नही करुंगा’’, अपने इस वचन को सदा निभानेवाले बापू को कोटी-कोटी प्रणाम। बापू चरण में नतमस्तक होकर मैं अपना यह अनुभव लिख रही हूं।
मेरे पति शरद जहाज पर काम करते हैं। घर में पूजन, अर्चन प्रेमपूर्वक न होते हुए भी भय और परम्परा के चलते एक औपचारिकता के रुप में होता रहता था। संपूर्ण शरणागति एवं श्रध्दा का नाम न था। सन १९९८ में सुषमावीरा सरनाईक (प्रमुखसेवक, मरोल उपासना केद्र) से भेंट हुई और उन से अनुभव सुनने के बाद बापू के सत्संग में आने की ईच्छा होते हुए भी, शायद उचित समय नही आया था अत: जाना न हुआ।
सन २००२ में पति की डॉक्टरी जांच के बाद विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाना पडा। तब बोनमेरो परिक्षण में ब्लड कैंसर की शु्रुआत का निशकर्ष निकला। हम ने अपने नजदीकी रिश्तेदारों को एवं अपने बच्चों को भी इस बारे मे नहीं बताया था। ताकि उनके कॅरियर एवं जीवन पर विपरित परिणाम न हो। पहले बेटे को और बाद में बेटी के विवाह के चार पांच साल बाद उन्हें बताया। दवाईयाँ चल ही रही थीं।
सन २००९ में पुन: सुषमावीरा से भेट हुई तब से बापूजी की उपासना में नियमित रुप से जाने लगी। रामनाम बही लिखना, मंत्रपाठ एवं सेवा मुझे आनंदित कर जाती थी। लेकिन पति की बीमारी से मन कांप भी जाता था। माह में ६,०००/- रुपये के पथान पर अब ५०,०००/- की दवाईयाँ देनी पड़ रही थी। तब अगतिक हो एक दिन दादा के पास पति के रिपोटल दिखाए। रिपोटल देखकर दादा ने कहा चिंता न करें और पुत्र के पास अमरिका जाने की इजाज़त दे दी। जून-सितंबर के बीच हमारी अमरिका यात्रा भी हो गई। बेटी की शादी तय हो गई। सन २००९ में वह भी निर्विघ्न हो गई। अब पैरों पर संकट आया, पैर और घुटने दु:खने लगे। यहां तक की नौकरी भी छोडनी पडी। पति कैन्सर से नहीं मगर पैरों के दर्द से अधिक त्रस्त हो गए थे। फरवरी २०१० में कलर डॉपस्टर टेस्ट में नसों के दर्द का निशकर्ष हुआ और दवाईयां आरंभ की गई जिसके रिएक्शन स्वरुप पैरों पर सूजन थी, खासकर दाएं पैर में। अत: उन्हे तुरंत होली स्पीरिट अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां पहला निशकर्ष गलत होने की बात सामने आई। पुन: सारे टेस्ट किए गए। इस दौरान बापूजी से कृपापार्थना, हनुमानचालिसा का पाठ, मंत्र जाप निरंतर चल रहे थे। हरएक रिपोर्ट नार्मल ही आ रहा था। तीन बार वॅन का फोटो निकाला गया। सभी रिपोर्ट नार्मल थे यह बापू कृपा ही थी।
२० अप्रैल २०१० में अस्थि रोग विशेषज्ञ को दिखाया। उन्होंने पहले एक्सरे, स्पाइइनल कॉर्ड आदी संबंधी चर्चा शुरु थी। मैं अत्यन्त दुखी थी लेकिन किससे अपने दिल की बात कहती? घर में, अस्पताल में हम दोनों ही थे और मुझे स्थिति का मुकाबला करने का साहस मिला। सुषमावीरा कहती किसी और को बताने से तो बेहतर है कि बापू के फोटो के समक्ष खडे होकर उनसे बात करो, वे ही इस में से तार सकते हैं।
उस रात मैं अस्पताल में अपने पति के पास वाले पलंग पर लेटी थी, नींद नहीं आ रही थी लेकिन सुषमावीरा के बताएनुसार बापू पर सारा भार डालकर मैं शांति से सो गई। तभी अहसास हुआ कि एक सुंदर पखी मेरे बगल में बैठ मेरे सिर को सहला रही ह! और २-३ डॉक्टर भी आए हैं। मैंने घबराकर नंदाई को पुकारा। उन डॉक्टरों में से एक उंचा था। जिसने मेरे पति के शरीर को हाथों से सहलाया, पेट और कमर पर कुछ किया और वहां से चले गए।
दूसरे दिन सारे रिपोर्ट नार्मल आए तथा से अस्पताल से छुई मिली। दादा के कहे अनुसार डॉ. कर्णिक से मिले तो पता चला कि सबकुछ ठीक है।
मई के महीने में पुन: दादा को दिखाने गए तो दादा तो पहले से ही जानते थे मेरे बिना कुछ बताए ही वे बोले, ‘‘हमनें सब चॅनलाइज कर सबकुछ निकाल दिया हैं। चिंता न करे, सब कुछ ठीक होगा।’’ यह सुनने के बाद मेरा विश्वास दृढ हो गया कि २० अप्रैल की रात को नंदाई, दादा और बापू स्वयं अस्पताल में आए थे। और उन्होंने ही सब क्लीयर किया। वह मेरा सपना नहीं था बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव था। नहीं तो इतनी खराब केस कैसे ठीक होती।
अनन्य शरणागति के साथ बापू पर भार सौंपने पर वही हमें संकट से बाहर निकालते हैं।
अन्तत: एक ही प्रार्थाना करती हूं बापू कि, आपके चरणों में श्रध्दा बढने दो, सबुरी दो, भक्ति करवा लो, मार्ग दिखाओ।
॥ हरि ॐ॥