॥ हरि ॐ ॥
‘कालनियंत्री महाकाली ’ की स्तुति करते हुए बापू ने एक गुरुवार को उपासना में बताया था कि, ‘‘महाकाली जिसका रंग घोर अंधकार से भी अधिक काला है व हमारे ‘अज्ञात’ का रक्षण करती रहती है । भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों कालों पर संपूर्ण नियंत्रण रखनेवाली अंधकाररुपी संकट में हमारी जीवन नौका तारने हेतु सदा तत्पर रहती है।’’ उसका इतना प्रभावी वर्णन सुनने के बाद मुझे लगा, कैसी होगी महाकाली? उसकी इस अपार शक्ति तथा अतुल मातृवात्सल्य के अनुभव का सौभाग्य मुझे इस जन्म में कभी मिलेगा कि नहीं? तब मुझे क्या पता था वह क्षण दूर नहीं है।
24 जून 2011 को दोपहर के लगभग सवा बारह बजे मैं अपनी गाडी से नई मुंबई के मेडिकल कॉलेज (महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज) की ओर जा रही थी। प.पू. सुचितदादा ने 5 बार आदिमाता शुभंकरा स्तवन कहने का नियम बांध दिया हैं। उस दिन भी हमेशा की तरह स्तोत्र पाठ के बाद पढाई की पुस्तक हाथ में उठाते ही एक बडे से ट्रक ने पीछे से हमारी छोटी सी गाडी (मारुति रिट्झ) को टक्कर मारी। टक्कर इतनी जबरदस्त थी की गाडी का पिछला पत्रा पिचक गया और शीशा चकनाचूर हो गया तथा गाडी को लगे धक्के की वजह से दाईं ओर फिसल कर रोड डिवाइडर से टकराई और गाडी का एक टायर फट गया। तथा गाडी डिवाइडर के ऊपर चढकर झटके से रुक गई।
ट्रक ड्रायव्हर बगल से ट्रक निकालकर फरार हो गया। मैं दंग रह गई। एक ही मिनट में ये क्या हो गया था? कुछ संभलने पर मैं ‘अनिरुद्ध अनिरुद्ध’ जोर जोर से चिल्लाने लगी, मेरा घबराया हुआ ड्रायव्हर बोला, ‘‘दीदी घबराओ मत, मैं देखता हूँ। आप मत रो’’ और मुझे धीरज बंधवा रहा था। मैंने मोबाईल निकालकर तुरंत इस भीषण अपघात की जानकारी अपनी माँ को दी। उसने कहा,‘‘तुम जहां हो वहीं रहो। मैं वहां पहुंच रही हूँ।’’ इतना होने पर भी मुझे सही सलामत गाडी से बाहर निकलते हुए देखकर, घटना के प्रत्यक्षदर्शियों ने दांतो तले उंगलियां दबा ली, ‘‘आप बची कैसे?आप पर निश्चित ही ईश्वर की कृपा है।’’ गाडी के पिछले काँच के टूटते ही टुकडे अंदर गिरने चाहिये थे, जिससे गंभीर चोट लगने की संभावना थी। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बापू तथा बडी माँ (चण्डिका माता) के सुरक्षा कवच मेरे पास था इसलिए कुछ भी अप्रिय नहीं घटा ऐसा मेरा मानना है।
कुछ ही देर में माँ वहां पहुंची। ड्रायव्हर चकनाचूर गाडी और पुलिस के रबाले पुलिस थाने में पंचनामा करने गए। मैं माँ के साथ दूसरी गाडी से घर आ गए।
अंतर्मुख होकर विचार करने योग्य बात है कि यदि उस दोपहर को मैं शुभंकरा स्तवनम् स्तोत्र का पाठ न करती तो क्या होता? क्या मैं यह अनुभव लिखने के लिए जीवित बचती? ये आदिमाता अपने बच्चों की रक्षा हेतु बिजली से भी तेज गति से दौडकर आती है। यही सच है!
मेरे साथ घटि इस दुर्घटना में मेरे लिए मृत्यु, विकलांगता जैसे संकट निश्चित थे। परंतु मुझे खरोंच तक नहीं आई। दुर्घटनारुपी अज्ञात से रक्षा हेतु वह महाकाली पहले से ही खडी थी और मेरी जान बच गई।
तब सर्व श्रद्धावानों को मेरा यहीं संदेश है कि आदिमाता के स्मरण में कतई कोताई न बरतें क्योंकि वह हमारे विघ्न टालने में कतई कोताई नहीं करती।
॥ हरि ॐ ॥