॥ हरि ॐ ॥
4 जून 2009, को हमारा पूरा परिवार पूजा के लिए गांव जानेवाला था। पर हमारी स्कॉर्पियो निकली, बडी दिक्कतों में। रिमझिम बारिश हो रही थी। ऐसे में हमारी गाडी खारेपाटण के मोड पर पहुंची और अचानक गाडी पर से नियंत्रण छूट जाने की वजह से गाडी एक पथ्थर पर चढकर गढ्ढे में जाकर एक ओर झुक गई।
अपघात का झटका तो लगा था पर उसकी तीव्रता का अंदाजा नहीं हुआ था। पहले धक्के से जरा सम्भलकर इधर उधर नजर घुमाई तो देखा कि गाडी जिस ओर झुकी थी उसके पास ही मेरा बडा बेटा निमेश बैठा था और वह तो जोरदार धक्के की वजह से खिडकी से बाहर निकला हुआ था और पूरी स्कॉर्पियो गाडी उस के ऊपर थी। इसके अलावा गाडी में उपस्थित सभी लोग उस पर गिरे हुए थे। वह बुरी तरह से दबा हुआ था और सांस भी नहीं ले पा रहा था। यह भयानक दृष्य देखकर मेरे अंत:करण से एक ही आवाज निकल रही थी - ‘बापू, मेरा निमेश! बापू, मेरे निमेश को बचाई!’ सब को बाहर निकालकर, गाडी उठाकर उसे बाहर निकाला। पर उसे बेहोश देखकर मेरी तो जान ही निकल गई थी।
उस सुनसान जगह पर सुबह के वक्त कोई भी वाहन नहीं दिख रहा था। मैं बापूजी को पुकार ही रही थी। थोडी ही देर में बापूजी की कृपा से एक खाली रिक्षा आई। तुरन्त हमें खारेपाटण में प्राथमिक आरोग्यकेंद्र में ले जाया गया। पर चूंकि निमेश अधिक जख्मी था उसे जिला अस्पताल में ले जाने की हिदायत दी गई। वहां के सरपंच तथा अन्य स्थानीय लोगों ने ऐम्बुलन्स का बन्दोबस्त किया। बापूजी की कृपा से ऐम्बुलन्स बारिश में भी रफ्तार से दौड रही थी।
जिला अस्पताल में सब का इलाज होने लगा। पर मैं डॉक्टर से बिनती कर रही थी कि, ‘पहले मेरे निमेश का इलाज कीजिए।’ उसे खून की उलटी हुई थी इसलिए उसे आय.सी.यू. में दाखल किया गया। मुझे भी पीठ में बहुत लगा था। पर इस बात को नजरअंदाज कर मैं केवल ‘बापू, मेरे निमेश को बचाईए’ यह प्रार्थना करती रही। बडे डॉक्टरसाहब के आते ही उन्होंने निमेश की जांच करते ही बताया कि, इसके फेफडों को ईजा हुई है इसलिए इसे तुरन्त पणजिम-गोवा ले जाईए। हर जगह पर डॉक्टरों ने उसे बडे अस्पताल में ले जाने की सलाह दी तो निमेश की तबीयत की गंभीरता हमारी समझ में आई।
रात के बारह बजे का वक्त था। अब वाहन का बन्दोबस्त कहां से होगा, इस चिन्ता में थे कि अस्पताल ने ही ऐम्बुलन्स बुलवा ली। निमेश को 24 घंटों का समय दिया गया था इसलिए हम तुरन्त रवाना हुए। गाडी बडी रफ्तार से भाग रही थी। मैं हाथ में अनिरुध्द उपासना की किताब और गोद में बेटे का सर रखकर रामरक्षा और हनुमान चलिसा जप रही थी।
पणजिम पहुंचते ही इलाज शुरु किया गया। मन में केवल बापूजी को पुकार रहे थे। मौत से दो दिन झूझने के बाद जब डॉक्टरों ने बताया कि, ‘धोखा टल गया है’ तब विघ्नहर्ता बापूजी ही दिखाई दिए। हे बापूराया....मेरे दयाघना, मौत के मुंह से निकालकर तूने मेरे बच्चे को नया जीवन दिया है। केवल तेरी कृपा से ही मेरे बच्चे को नया जीवन मिला है।
बापू, सभी श्रध्दावानों पर ऐसी ही कृपादृष्टी बनाए रखना। तेरा नाम सदैव मेरे मुख में रहे। तेरा रुप सदैव आंखों में रहे। मेरी यह प्रार्थना पूरी करना।
ॐ मन:सामर्थ्यदाता श्री अनिरुध्दाय नम:।
श्री नंदापति अनिरुध्दा सिंह की जय ।
॥ हरि ॐ ॥