॥ हरि ॐ ॥
मेरी बेटी अमृता बापूकृपा से सन 2010 में बी.ई. (कॉम्प्युटर सायन्स) सॉफ्टवेअर इंजिनिअर बनी। उसे जब इंजिनीयरिंग में दाखला मिला था, तब मुझे शक था कि वह यह पढाई नहीं कर पाएगी। मगर उसका और मेरा विश्वास था कि बापू हमारे साथ होते ही हैं और ‘वे हमारे लिए जो उचित समझेंगे वही करेंगे’। और वास्तव में बापूजी ने हमारा वह विश्वास सच कर दिखाया और मेरी बेटी 4 सालों में अच्छी तरह से इंजिनीयरिंग पास कर पाई।
‘बापू हमेशा हमारे साथ होते हैं’ इस बात का अमृता को इतना विश्वास था कि वह हमेशा कॉलेज जाते समय बापूजी का फोटो साथ लेकर ही निकलती थी और उसे अपनी स्कूटी की डिक्की में रखने के बाद ही स्कूटी चलाती थी और गले में बापूजी के फोटो वाला त्रिपुरारि त्रिविक्रम लॉकेट हमेशा पहने रहती थी।
इस तरह बापूजी अमृता के इन्जिनीयरिंग के पहले साल से ही उसके साथ सुबह 8.30 बजे खाना खाकर फोटोरूप में कॉलेज और ट्यूशन के लिए जाते थे और शाम को उसे कुशलता से घर पहुंचाया करते थे, तथा पढाई में भी उसकी सहायता किया करते थे। बी.ई. के पहले साल से ही अमृता को 75% से अधिक मार्क्स मिलते रहे और अन्तिम सेमिस्टर में भी उसे 76.50% मार्क्स मिले, केवल बापूकृपा के कारण। सन 2009 में जब अमृता बी.ई. के तीसरे साल में थी तब भी विेशमंदि चल रही थी। इसलिए कंपनियां कॉलेज में कैम्पस सिलेक्शन के लिए आएंगी या नहीं यह निश्चित नहीं था। पर दिसम्बर 2009 में कॉलेज से खबर मिली कि, टाटा कन्सलटन्सी सर्विसेस कंपनी कैम्पस सिलेक्शन के लिए आएगी और कैम्पस इन्टरव्यू के लिए आवश्यक कसौटी में अमृता खरी उतरी थी इसलिए कॉलेज द्वारा अमृता का नाम कंपनी को भेजा गया था। इसलिए नवम्बर 2009 से अमृता अधिक ध्यान देकर पढने लगी। पर कितनी भी पढाई कर ले, फिर भी विेशमंदि के माहौल को देखते हुए इसका कितना लाभ होगा यह कहना मुश्किल था।
15-20 दिनों की पढाई के बाद कॉलेज से पता चला कि टाटा कंपनी के प्रतिनिधी 13 दिसम्बर को कैम्पस सिलेक्शन के लिए आ रहे हैं। अमृता ने मन लगाकर पढाई की और 13 दिसम्बर को कंपनी की चयनप्रक्रिया की पहली लिखित परिक्षा दी, तथा उसी शाम को उस ने घर फोन करके बताया कि वह पहली परिक्षा में पास हो गई है। हम ने मन ही मन बापूजी को बार बार प्रणाम किया और बापू अपने बच्चों का कितना खयाल रखते हैं इस भावना से हमारा गला रुंध गया।
तत्पश्चात दूसरे ही दिन अर्थात 14 दिसम्बर को सुबह के 9 बजे से चयनप्रक्रिया का अगला दौर शुरु होना था इसलिए वह सुबह को जल्द ही कॉलेज चली गई। पर रात के 8 बजे तक उसका इन्टरव्यू नहीं हुआ था। इन्टरव्यू देनेवालों की संख्या बहुत ज्यादा है, यह जानकर हमें चिन्ता होने लगी। रात को देर हो जाने के कारण लडकियों के इन्टरव्यू दूसरे दिन सुबह 9 बजे लिए जाने थे इसलिए अमृता रात को लौट आई। कहा जा रहा था कि इन्टरव्यू लेनेवाले प्रबंधक बहुत सख्त हैं, इसलिए अमृता सहमी हुई थी। थोडासा खाना खाकर वह रात के 3 बजे तक कॉम्प्यूटर पर पढाई करती रही। दूसरे दिन अर्थात 15 तारीक को अमृता हमेशा की तरह उदी लगाकर बापू का फोटो लेकर सुबह को कॉलेज गई। घर से निकलते समय अमृता ने कहा था कि दिनभर चयन की विभिन्न प्रक्रियाओं में सभी के 3 टेस्ट होनेवाले हैं।
सुबह को पूजा करते समय मैंने बापूजी से मन ही मन प्रार्थना की कि, ‘बापू, उसके लिए आप जो समझें वही कीजिएगा। ना तो हम आग्रह करते हैं और ना ही जिद कर रहे हैं कि उसे इसी कंपनी में नैकरी दिलवाएं।’
शाम तक जब अमृता घर नहीं लौटी तो मेरे पति ने उसे फोन किया। तब पता चला कि उस ने दो राऊंड क्लियर कर लिए हैं और अब उसका पर्सनल इन्टरव्यू शेष है और वह भी आज ही होगा इसलिए घर लौटने में देर हो जाएगी। हम शाम को घूमने निकले थे और लौटते समय अमृता के लिए उसका पसंदीदा चॉकलेट ले आए।
हम राते के 8.30 बजे घर लौटे थे। मैं पूजाघर में बापूजी को चॉकलेट अर्पण कर रही थी तभी अमृता का फोन आया और उसने कहा कि, ‘मेरा सिलेक्शन हो गया है और टी.सी.एस. कंपनी से मुझे सिलेक्शन लेटर भी मिला है।
खास बात तो यह है कि सिलेक्शन की बात बताते हुए उसने यह भी कहा कि कल जिस सख्त टीम ने इन्टरव्यू लिए थे वे आज नहीं थे, आज की टीम बहुत ही अच्छी थी। यह सुनकर हम दंग रह गए....यह सारे बदलाव हमारे बापूजी के अलावा कौन कर सकता है?
अमृता के कैम्पस सिलेक्शन की बात सुनकर हम फूले नहीं समा रहे थे। हम ने तुरंत भगवान के समक्ष खडे होकर बापूजी से कहा, ‘बापूजी, आपने हमें अच्छी खबर सुनाई और अमृता को उसकी इच्छा अनुसार इसी कंपनी में नौकरी दिलाई।’ यह कहते कहते हमारी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे और हम ने परमपूज्य बापूजी, नंदाई और सुचितदादा का तहेदिल से शुक्रिया अदा किया।
जब हम अपने सद्गुरु पर पूरा विश्वास रखते हैं तब वे हमारे लिए क्या कर सकते हैं इस बात को हम ने उस दिन अनुभव किया। ‘अनिरुद्धा मैं तेरा कितना ऋणि हो गया।’
जब हम अपनी हैसियत अनुसार सद्गुरुचरणों में श्रद्धा से सेवा और भक्ति करते हैं तब सद्गुरु नवविधा भक्ति में हमारी रूचि बढाते हैं और हमारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
अमृता ने बी.ई. के उन चार सालों में रामनाम की केवल 8 बहियां लिखीं थीं और मेरे साथ 2 गुधडियां बनाईं तथा जब भी उसे समय मिलता वह चरखा भी चलाती थी। वैसे तो यह बहुत ही अल्प सेवा कही जाएगी, मगर उसकी अतिव्यस्त दिनचर्या के बावजूद उसे सेवा की इच्छा होती थी और उस ने पढाई के साथ साथ जो सेवा के प्रयास किए वे बापूजी तक पहुंचे। उसकी अल्प सेवा होते हुए भी बापूजी ने उसे बहुत सफलता दी।
इस के बाद अमृता को कंपनी से ऑफर लेटर भी मिला और बापूकृपा से उसे टी.सी.एस. कंपनी में कार्य करने का मौका भी मिला। बापू, आई, दादा इसी तरह आपकी कृपा सभी भक्तों पर हर जन्म में बनी रहे और हमें आपके चरणों की सेवा एवं भक्ति का मौका मिले, यही आपके चरणों में प्रार्थना करते हैं।
‘हमारे बापू धीरे धीरे हमारे लिए सबकुछ ठीक कर रहे हैं’, यही सत्य है!
॥ हरि ॐ ॥