॥ हरि ॐ ॥
अपने लिए, खुद के उद्धार के लिए सभी प्रार्थना करते हैं, मगर जब दूसरे के दुखनिवारण के लिए कोई व्यक्ति दिल से प्रार्थना करता है और वह फलती है तब उसकी खुशी कुछ अलग ही होती है। परमपूज्य बापू हमेशा यही सीख देते हैं, और इसी कारण आज सभी बापूभक्त एकदूसरे की सहायता हेतु हाथ बढाने में, एकदूसरे को संकट से छुडाने हेतु भगवान से प्रार्थना करने से कभी पीछे नहीं हटते। निम्नलिखित अनुभव इसी बात की साक्ष्य देता है।
दि. 3.10.2010 के दिन हमारे घर पर गोरेगांव में रहनेवाली मेरी मासी का फोन आया। उसके पति को नानावटी अस्पताल में भरती कराया गया था और वे वेंटिलेटर पर थे। जब फोन आया तब मैं घर पर नहीं था। घर पहुंचा तब मुझे पत्नि ने यह खबर सुनाई। हम खाना खाकर तुरंत अस्पताल के लिए निकल पडे। मैंने अपने साथ संस्था की उदी और हमारे अनिरुद्ध बापूजी द्वारा हस्तस्पर्श किया हुआ लॉकेट ले लिया था। वहां पर सभी लोग बहुत चिंतित थे।
मुझे मासी की बडी चिंता हो रही थी क्योंकि उनके बच्चे अभी छोटे थे। मेरे मन में विचार आया कि, यदि मासी के पति को कुछ हो जाता है तो इन बच्चों का क्या होगा? मैंने तुरंत मासी की बेटी को बापूजी के फोटोवाला लॉकेट और संस्था की उदी दी। उस ने तुरंत अपने पापा को वह उदी लगाई।
वे वेंटिलेटर पर थे इसलिए सब के मन में डर था। मैंने भी बापूजी से प्रार्थना की कि, ‘इन्हें जल्दी ठीक कर दो और अधिक दिनों तक अस्पताल में न रहने देना।
मैं हर दो दिनों बाद फोन करके उनका हालचाल पूछा करता था। एक दिन उनके बेटे से पता चला कि उनकी एन्जिओप्लास्टि हो चुकी है और अब वे ठीक हैं। उसके बाद रविवार के दिन (14.10.2010) जब मैं सुबह 10 बजे अस्पताल पहुंचा तब काऊंटर पर पता चला कि उन्हें डिसचार्ज किया गया है।
यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। मेरे बापू मुझ जैसे सामान्य भक्त की प्रार्थना पर दौडे चले आए और वेंटिलेटर पर मौत से झूझते हुए मेरे मौसा को मौत के मुंह से खींच निकाला।
बापूराया, तेरी लीला सचमुच अपरंपार है! हम भक्तों को हमेशा अपनी शरण में रखना।
॥ हरि ॐ ॥